Delhi : महंगा पड़ा अदालत को गुमराह करना, भरना पड़ा जुर्माना
भूमि अधिग्रहण के इस मामले में स्पष्ट पता चला है कि याचिकाकर्ता ने अदालत को गलत जानकारी दी है। याचिकाकर्ता की भूमिका भी संदिग्ध है। ऐसे में उसे धारा 21 (2) भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनस्र्थापन, मुआवजा व पारदर्शिता अधिनियम 2013 का लाभ नहीं दिया जा सकता है।
नई दिल्ली [अमित कसाना] । भूमि अधिग्रहण के इस मामले में स्पष्ट पता चला है कि याचिकाकर्ता ने अदालत को गलत जानकारी दी है। याचिकाकर्ता की भूमिका भी संदिग्ध है। ऐसे में उसे धारा 21 (2) भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनस्र्थापन, मुआवजा व पारदर्शिता अधिनियम 2013 का लाभ नहीं दिया जा सकता है।
यह टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति बीडी अहमद व संजीव सचदेव की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता रोहताश सिंह पर दस हजार रुपये जुर्माना लगाया। याचिकाकर्ता ने दिल्ली सरकार द्वारा अधिग्रहण की गई जमीन को अदालत से वापस दिलवाने का आग्रह किया था।
खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अपना दावा साबित करने में विफल रहा है। अदालत के समक्ष पेश साक्ष्यों व अन्य दस्तावेजों से साफ होता है कि जिस जमीन की वह फोटो दिखा रहा है वहां किसी तरह की कोई नर्सरी या बगीचा नहीं है। मौके पर चारदिवारी है और निर्माण साम्रज्ञी पड़ी है।
सुनवाई के दौरान अदालत में दिल्ली सरकार ने अपना पक्ष रखा था कि याचिकाकर्ता ने जमीन के जो कागजात पेश किए हैं उसमें उन्होंने गलत जानकारी दी है। प्रशासन ने जमीन के मालिक उमरावसिंह को तो इसका मुआवजा भी दे चुका है। ऐसे में याचिका खारिज की जाए।
वहीं, दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने यह बताया कि जमीन 16 अगस्त 1983 में लोक निर्माण विभाग को सड़क बनाने के लिए दी गई थी और विभाग ने बकायदा यहां सड़क का काम भी पूरा कर लिया है। इसके अलावा यहां डीडीए ने अपनी जमीन पर चारदिवारी कर रखी है। जिसे पर याचिकाकर्ता हड़पना चाहता है। याचिकाकर्ता की मौके पर कोई नर्सरी होने जैसी बात भी झूठी है।
यह था पूरा मामला
इस मामले में रोहताश सिंह ने दिल्ली सरकार के खिलाफ याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार द्वारा गांव घोंडा चौहान खादर में स्थित 900 वर्ग मीटर की जमीन का अधिग्रहण धारा 24 (2) भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनस्र्थापन, मुआवजा व पारदर्शिता अधिनियम 2013 के तहत खत्म हो गया है। वह इस जमीन के मालिक है।
उन्होंने यह जमीन किसी से खरीदी थी। वह यहां नर्सरी चलाते थे। लेकिन 2013 में सरकारी कर्मचारियों ने उन्हें डरा-धमकाकर जमीन पर कब्जा ले लिया। इसके बाद उन्हें सूचना अधिकार के तहत जानकारी मिली है कि उक्त जमीन लोक निर्माण विभाग को सड़क बनाने के लिए दी गई है। ऐसे में उसे जमीन का मालिकाना हक दिलवाया जाए।