दिल्ली में फिर निकल आए मास्क, गले में जलन, आंखों में चुभन बढ़ी; स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी से लोगों में नाराजगी
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है, जिससे लोगों को आँखों में जलन और साँस लेने में तकलीफ हो रही है। स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी से नागरिक नाराज हैं और तत्काल स्वास्थ्य सलाह जारी करने की मांग कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में श्वसन रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और अस्पतालों में मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली की हवा एक बार फिर असहनीय होती जा रही है। राजधानी में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है, लेकिन इस मुद्दे पर स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी बेचैनी पैदा कर रही है। चारों ओर फैली धुंध, गले में जलन, आँखों में जलन और बच्चों को खांसी व साँस लेने में तकलीफ के बावजूद, स्वास्थ्य मंत्रालय और विभाग ने अभी तक कोई ठोस जन स्वास्थ्य सलाह जारी नहीं की है।
अभिभावकों और नागरिक समूहों ने इस पर आपत्ति जताते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से 48 घंटों के भीतर स्पष्ट स्वास्थ्य सलाह जारी करने की माँग की है। मातृ अधिकार कार्यकर्ता समूह वॉरियर मॉम्स ने कहा है कि बच्चों का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन बिगड़ रहा है और अब सरकार को जवाब देना चाहिए।
वॉरियर मॉम्स समूह की संस्थापक भावरीन कंधारी ने कहा, "बच्चे हर सुबह जहरीली हवा में साँस लेते हैं, खांसते-छींकते हैं और स्कूल नहीं जा पाते। क्या यह सामान्य है? मंत्रालय को लोगों को यह बताना चाहिए कि वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के किस स्तर पर लोगों को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।"
माँग की गई कि जब AQI 200 से ज़्यादा हो जाए, तो बच्चों को बाहर खेलने या स्कूल जाने से रोका जाए। N-95 जैसे उच्च गुणवत्ता वाले मास्क अनिवार्य किए जाने चाहिए। अस्पतालों और डॉक्टरों को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे मरीज़ों के वायु प्रदूषण के संपर्क का इतिहास मेडिकल रिकॉर्ड में दर्ज करें।
सफदरजंग, आनंद विहार और रोहिणी जैसे इलाकों में दिल्ली का AQI "बेहद खराब" श्रेणी में है। विशेषज्ञों का कहना है कि हर तीन में से एक बच्चा किसी न किसी श्वसन रोग से पीड़ित है। पिछले दो हफ़्तों में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और एलर्जी के मामलों में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
लाजपत नगर निवासी और दो बच्चों की माँ सविता शर्मा कहती हैं, "मेरे बच्चे रात में रोने और खाँसने लगते हैं। मुझे उन्हें स्कूल भेजने में डर लगता है। सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।"
इस बीच, निजी अस्पतालों के पल्मोनोलॉजी और बाल रोग विभागों में मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है। डॉक्टरों का कहना है कि हवा में मौजूद महीन धूल के कण (PM 2.5) बच्चों के फेफड़ों में जमा हो सकते हैं और दीर्घकालिक नुकसान पहुँचा सकते हैं।
स्वास्थ्य विभाग ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया जारी नहीं की है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।