मातृ और शिशु अस्पताल के बाहर अव्यवस्था से परेशान मरीज
जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : पालम-डाबड़ी रोड के किनारे स्थित दादा देव मातृ एवं शिशु अस्प
जागरण संवाददाता, पश्चिमी दिल्ली : पालम-डाबड़ी रोड के किनारे स्थित दादा देव मातृ एवं शिशु अस्पताल महिलाओं और बच्चों के लिए अपने आप में एक खास अस्पताल है। पिछले तीन साल से स्वच्छता के लिए शीर्ष स्तर पर अपनी जगह बनाने के लिए इस अस्पताल को सरकार ने पुरस्कृत भी किया है। यहां रोजाना काफी संख्या में गर्भवती महिलाएं अपने बच्चों के साथ इलाज के लिए आती हैं। हर महीने यहां करीब 850 डिलीवरी होती हैं। इन सबके बावजूद अस्पताल के आसपास अव्यवस्था पसरी हुई है। आसपास गंदगी, अतिक्रमण जैसी समस्याओं से मरीजों को काफी दिक्कत होती है। अतिक्रमणकारियों के कारण यहां गंदगी का माहौल बना हुआ है। साथ ही सरेआम तम्बाकू, सिगरेट आदि चीजों की बिक्री एनजीटी के नियमों की धज्जियां उड़ाती हैं, जिससे गर्भवती महिलाओं व नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर काफी गलत प्रभाव पड़ता है।
आसपास गंदगी का आलम
गंदगी के कारण अस्पताल के आसपास मच्छरों का प्रकोप बना रहता है, जो डेंगू, मलेरिया व चिकनगुनिया जैसी बीमारियों को दावत देती हैं। एनजीटी के नियमों की मानें तो किसी भी अस्पताल के 500 मीटर के दायरे में न तो गंदगी का माहौल होना चाहिए और न ही तम्बाकू आदि चीजों की बिक्री, लेकिन दादा देव मातृ एवं शिशु चिकित्सालय के बाहर यह स्थिति बीते काफी सालों से बनी हुई है।
फुटपाथ पर हो रही पार्किग
फुटपाथ के एक तरफ खान-पान से जुड़ी स्टॉल धड़ल्ले से चल रही है तो वहीं दूसरी तरफ फुटपाथ ट्रक-टंपों की पार्किग में तब्दील हो चुका है। वहीं अस्पताल का प्रवेश पर ई-रिक्शा वालों का जमावड़ा लगा रहता है। इसके कारण एंबुलेंस को अस्पताल से निकलने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इस दिशा में यातायात पुलिस की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। हालात यह है कि फुटपाथ के बाद अब सड़क पर भी लाइन से ट्रक खड़े रहते हैं। यातायात पुलिस की ओर से भी यहां उपेक्षित व्यवहार देखने को मिलता है। अस्पताल के आसपास कभी-कभार यातायात पुलिस के दर्शन हो भी जाते है, लेकिन ड्यूटी करने के बजाय वे आराम फरमाते नजर आते हैं। उन्हें कोई ¨चता नहीं रहती है कि अस्पताल के दरवाजे पर ई-रिक्शा चालक अव्यवस्थित ढंग से पसरे हुए हैं। वाहनों की रफ्तार पर रोक लगाने व सड़क पार करने के लिए यहां कोई सिग्नल की व्यवस्था यहां नहीं है। ऐसे में एक गर्भवती महिला के लिए सड़क को पार करना चुनौतीपूर्ण बन गया है।
फुटपाथ की जर्जर स्थित :
दुकानदार फुटपाथ का प्रयोग मन मुताबिक व सुविधा के अनुसार कर रहे हैं। अस्पताल के आसपास फुटपाथ पर खान-पान से जुड़ी कई स्टॉल लगाई जाती हैं। अतिक्रमणकारियों की चपेट से फुटपाथ का जो हिस्सा बच गया है वह पूरी तरह जर्जर है। जगह-जगह से टाइल्स उखड़ी पड़ी हैं। कई जगह तो फुटपाथ पर पूरी तरह टूट चुका है, जरा सी लापरवाही मौत को दावत दे सकती है। उस पर सड़क पर रोशनी के भी उचित इंतजाम नहीं है।
कहां है स्वच्छता अभियान :
अस्पताल से दस कदम की दूरी पर डलावघर बना हुआ है। जहां अव्यवस्थित ढंग से पसरा कूड़े का ढेर बीमारियों को दावत देता नजर आता है। वहीं अस्पताल से सटे खाली प्लॉट में भी गंदगी का अंबार पड़ा रहता है। लोग यहां खुले में शौच करते नजर आते हैं। गर्मियों के दिनों में स्थिति बद से बदतर हो जाती है। यहां से आने वाले मच्छरों व बदबू का मरीजों में इंफेक्शन की शिकायत का कारण बन जाता है। एक नवजात बच्चे व मां के अच्छे साफ माहौल दिया जाता है ताकि किसी भी तरह के इंफेक्शन होने का खतरा न हो, लेकिन अस्पताल के आसपास की स्थिति के चलते यह काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। एक तरफ स्वच्छता अभियान को लेकर अधिकारी तमाम तरह की योजनाएं चला रहे है, लेकिन स्थानीय स्तर पर देखा जाएं तो स्वच्छता अभियान के दर्शन भी दुर्लभ है। अस्पताल के आसपास लगे कूड़ेदान की तरफ भी स्थानीय जन प्रतिनिधि का भी ध्यान नहीं है।
बॉक्स
इन सभी समस्याओं के बाबत नजफगढ़ जोन के डिप्टी कमिश्नर संजीव कुमार व रोगी कल्याण समिति को कई बार लिखित रूप से शिकायत दी जा चुकी है, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है। समस्या के निस्तारण के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। डाबड़ी थाने में भी इसकी शिकायत करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने सरकारी एजेंसी की जिम्मेदारी बताते हुए शिकायत लेने से मना कर दिया।
डॉ. बृजेश कुमार, निदेशक, दादा देव मातृ एवं शिशु अस्पताल