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साइटोकाइन स्टॉर्म भी ले लेता है कोरोना संक्रमित मरीजों की जान, जानिए क्या है ये अवस्था

मेडिकल साइंस में इस अवस्था को साइटोकाइन स्टॉर्म नाम दिया। हो सकता है कि संक्रमित मरीजों या उनके तीमारदारों ने इस अवस्था के बारे में सुना हो मगर अधिकतर लोग अभी भी न तो इस अवस्था के बारे में जानते हैं ना ही उनको इसका दुष्परिणाम ही पता है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 12 May 2021 12:44 PM (IST)Updated: Wed, 12 May 2021 12:44 PM (IST)
साइटोकाइन स्टॉर्म भी ले लेता है कोरोना संक्रमित मरीजों की जान, जानिए क्या है ये अवस्था
कोरोना से संक्रमित होने वाले मरीजों में साइटोकाइन स्टॉर्म नाम की एक अवस्था विकसित हो जाती है।

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। कोरोना वायरस संक्रमण से देश भर में लोगों की मौतें हुई हैं। अलग-अलग देश में कोरोना संक्रमितों की मौत के पीछे अलग-अलग कारण पाए गए हैं। मगर कई बार ये पाया गया कि संक्रमित मरीज के शरीर के कई अंग काम करना बंद कर दे रहे थे जिससे उसकी मौत हो जा रही थी। मेडिकल साइंस में डॉक्टरों ने इस अवस्था को साइटोकाइन स्टॉर्म नाम दिया। हो सकता है कि संक्रमित मरीजों या उनके तीमारदारों ने इस अवस्था के बारे में सुना हो मगर अधिकतर लोग अभी भी न तो इस अवस्था के बारे में जानते हैं ना ही उनको इसका दुष्परिणाम ही पता है। इस खबर के माध्यम से हम आपको स्टॉर्म की घातकता के बारे में बताएंगे।

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क्या है साइटोकाइन स्टॉर्म

दरअसल कोरोना संक्रमित जो मरीज साइटोकाइन स्टॉर्म की अवस्था तक पहुंचता है उसका मतलब ये है कि उसके शरीर के अंदरूनी महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया है जिसकी वजह से उसकी मौत हो जाती है। इसको मल्टिपल-ऑर्गन फेलियर भी कहा जाता है। इस अवस्था की वजह से संक्रमित मरीज के शरीर के आवश्यक अंग काम करना बंद कर देते हैं वो उसकी मौत का कारण बन जाते हैं। साइटोकाइन हमारे शरीर की कोशिकाओं यानी सेल के अंदर एक तरह के प्रोटीन होते हैं।

ये हमारे शरीर के रोग प्रतिरोधात्मक तंत्र यानी इम्यून रिस्पॉन्स सिस्टम का एक हिस्सा होते हैं जो अमूमन किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करते हैं।

शरीर में कब बनने लगता है साइटोकाईन स्टॉर्म

साइटोकाईन स्टॉर्म तब होता है जब शरीर को संक्रमित करने वाला वायरस इम्यून सिस्टम पर ऐसा असर करता है। ऐसे में शरीर में आवश्यकता से ज्यादा मात्रा में और अनियंत्रित रूप से साइटोकाईन बनने लगते हैं। इतनी बाड़ी मात्रा में एक साथ जन्मे साइटोकाईन कोशिकाओं पर ही हमला करना लगते हैं जिससे शरीर पर बुरा असर पड़ता है और अंग काम करना बंद करने लगते हैं। एक तरह से समझिए कि इस अवस्था में वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम को ही शरीर का दुश्मन बना देता है। साइटोकाइन स्टॉर्म की वजह से फेफड़ों पर असर पड़ सकता है जिससे फिर शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होनी शुरू हो जाती है.

शरीर पर घातक असर

इसकी वजह से दिल की धमनियां फूल जती हैं, जिससे दिल का दौरा पड़ जाता है। नसों में खून का जमना या थ्रोम्बोसिस भी हो सकता है। डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना से संक्रमित मरीज के शरीर में ऐसा संक्रमण दूसरे हफ्ते में होने की संभावना रहती है और ऐसे में मरीज को स्टेरॉयड दिए जाने चाहिएं।

साथ ही दूसरे हफ्ते में मरीज को अपनी हालत पर लगातार निगरानी रखनी चाहिए और शरीर में ऑक्सीजन की कमी होते ही डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। साइटोकाइन स्टॉर्म जानलेवा हो सकता है लेकिन इसके घातक असर को लेकर अभी तक कोई व्यापक अध्ययन नहीं हुआ है। मगर इतना साबित हो चुका है कि संक्रमित मरीज की मौत के पीछे ये भी एक बड़ी वजह देखी गई है। हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि कई मामलों में कोविड-19 से संक्रमित और गंभीर रूप से बीमार लोगों में देखा गया है कि उनके शरीर में साइटोकाइन स्टॉर्म शुरू होने के बाद उनकी हालत तेजी से खराब हो गई।


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