संस्कृत हमारे पूर्वजों की धरोहर है : डॉ. जीतराम भट्ट
जीतराम कहते हैं कि संस्कृत में धर्म की चर्चा के साथ दर्शन न्याय विज्ञान व्याकरण साहित्य आदि विषयों का प्रतिपादन भी हुआ है।
जागरण संवाददात, पूर्वी दिल्ली : हम सब जानते हैं कि शिक्षा का मूल उद्देश्य बच्चों को संस्कारित करना है। संस्कार मनुष्य को कृतज्ञ बनाते हैं और कृतज्ञता मनुष्य के मन में माता, पिता, गुरु, पूर्वज, समाज, जन्मभूमि, देश व भाषा के प्रति प्रेम का भाव जगाती है। जबकि कृतघ्नता केवल स्वार्थपराणता, विद्वेष और घृणा को ही जन्म देती है। यह बातें दिल्ली संस्कृत व हिदी अकादमी के सचिव डॉ जीतराम भट्ट ने कही।
रक्षा बंधन व संस्कृत दिवस से अवसर पर अपने विचार रखते हुए जीतराम भट्ट ने कहा प्रसिद्ध कवि
मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है 'जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं पशु है निरा और मृतक समान है'। संस्कृत सिर्फ एक भाषा नहीं है, वह हमारा गौरव व हमारे पूर्वजों की धरोहर है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम जब ग्रीस गए, तब वहां के राष्ट्रपति कार्लोस पांपाडलीस ने उनका स्वागत संस्कृत भाषा में 'राष्ट्रपतिमहाभागा: सुस्वागतम् यवनदेशे' कह कर किया था। विश्व की ज्ञात भाषाओं में संस्कृत सबसे पुरानी है। भारत की सभी भाषाएं संस्कृत से ही निकली हैं। भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त फारसी, लेटिन, अंग्रेजी, श्रीलंका, नेपाल, अफ्रीका, इंडोनेशिया, मलेशिया व सिगापुर की भाषाओं पर भी संस्कृत का प्रभाव है।
जीतराम कहते हैं कि संस्कृत में धर्म की चर्चा के साथ दर्शन, न्याय, विज्ञान, व्याकरण, साहित्य आदि विषयों का प्रतिपादन भी हुआ है। उन्होंने कहा, यह हास्यास्पद है कि संस्कृत को आधुनिक भाषा नहीं माना जाता है और भारत में तो संस्कृत को पूजा-पाठ की भाषा या कठिन भाषा बताने का एक फैशन सा चल पड़ा है, जिस कारण युगों-युगों से ऋषियों की ओर से किए गए त्याग, तप, स्वाध्याय, अनुसंधान से भारतीय समाज आज भी वंचित हैं। इसलिए मैं पाठकों से निवेदन करता हूं कि संस्कृत ज्ञान-विज्ञान के विषय में सही जानकारी प्राप्त करें और भारत की इस प्राचीन धरोहर को उपेक्षित होने से बचाएं।