हिरासत में हुई थी युवक की मौत, पांच पुलिसकर्मी दोषी करार
पुलिस हिरासत में जिला बुलंदशहर निवासी युवक की मौत के लिए तीस हजारी की एक अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस के पांच कर्मियों को दोषी करार दिया है। अवैध हिरासत और गैर इरादतन हत्या सहित विभिन्न धाराओं में सब इंस्पेक्टर हिदवीर सिंह महेश मिश्रा और सिपाही प्रदीप पुष्पेंद्र और हरिपाल को अगले सप्ताह सजा सुनाई जाएगी।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) के खुर्जा में पुलिस हिरासत में एक युवक की मौत मामले में तीस हजारी अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस के पांच कर्मियों को दोषी करार दिया है। अवैध हिरासत और गैर इरादतन हत्या सहित विभिन्न धाराओं में सब इंस्पेक्टर हिदवीर सिंह, महेश मिश्रा और सिपाही प्रदीप, पुष्पेंद्र और हरिपाल को अगले सप्ताह सजा सुनाई जाएगी। इनमें से तीन दोषी नोएडा पुलिस की एसओजी (स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप) में थे। मामले में बिचौलिये कुंवर पाल सिंह को भी दोषी करार दिया गया है। सब इंस्पेक्टर विनोद पांडेय भी आरोपित थे, जिन्हें साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया। दोषियों को अधिकतम 10 साल की सजा हो सकती है। अदालत ने उत्तर प्रदेश के डीजीपी को आदेश दिया है कि वे तत्कालीन थाना प्रभारी इंस्पेक्टर दीपक चतुर्वेदी और सिपाही मनोज कुमार के खिलाफ भी कार्रवाई करें, क्योंकि युवक सोनू के साथ हुई वारदात के समय वे थाने में तैनात थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली की तीस हजारी अदालत में मामले का ट्रायल चला।
घटना खुर्जा के गांव हजरतपुर में वर्ष 2006 में हुई थी। मृतक सोनू के पिता दलबीर सिंह ने शिकायत दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि प्रॉपर्टी डीलर कुंवर पाल दो सितंबर 2006 को उनके घर आया। उसके साथ पांच अन्य लोग भी थे। सोनू भी प्रॉपर्टी का काम करता था, इसलिए उन्होंने कोई जमीन दिखाने की बात कही। सोनू कुंवर पाल व पांच अन्य लोगों के साथ उनकी गाड़ी में चला गया। जमीन के बहाने सोनू को स्थानीय थाने में ले जाकर पीटा गया। कुंवर पाल के साथ जो अन्य पांच लोग थे वे पुलिसकर्मी थे, जिनमें से तीन नोएडा पुलिस की एसओजी से थे। सोनू को कार लूट के एक मामले में संदिग्ध मानते हुए प्रताड़ना दी गई, जिससे उनकी मौत हो गई। इसके बाद पुलिस कर्मियों ने उन्हें लॉकअप में फंदे से लटका दिया और थाने के रोजनामचा में दर्ज किया कि सोनू ने आत्महत्या कर ली है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक सोनू के शरीर के कई हिस्सों पर चोट के निशान थे। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और उसके बाद दिल्ली की तीस हजारी अदालत में सुनवाई हुई।