जनसैलाब से टूटी घर पहुंचने की आस
घर-बाहर भक्ति के भाव में सराबोर होगा। हर जुबां छठ मइया के गीत गुनगुना रहे होंगे। मां पूजा में तल्लीन होंगी तो पिता, भाई, बहन और परिवार के अन्य सदस्य हंसी-ठिठोली के साथ पूजा की तैयारियों में जुटे होंगे। यह दृश्य उन युवाओं के मन में कौंध रहा है, जो घर से दूर परदेश में हैं। दिल्ली में पढ़ रहे या कामकाज से जुड़े उन युवाओं के दिल में हूक सी उठ रही है। स्मार्ट फोन ने भले ही दूरियां कम कर दी हैं, लेकिन घर न जाने की कसक तो मन में है। कुछ ने घर जाने का प्रयास भी किया, लेकिन रेलवे स्टेशनों पर भीड़ इतनी थी की वह ट्रेन तक नहीं पहुंच सके।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : घर-बाहर भक्ति के भाव में सराबोर होगा। हर जुबां छठ मइया के गीत गुनगुना रहे होंगे। मां पूजा में तल्लीन होंगी तो पिता, भाई, बहन और परिवार के अन्य सदस्य हंसी-ठिठोली के साथ पूजा की तैयारियों में जुटे होंगे। यह दृश्य उन युवाओं के मन में कौंध रहा है, जो घर से दूर परदेश में हैं। दिल्ली में पढ़ रहे या कामकाज से जुड़े उन युवाओं के दिल में हूक सी उठ रही है। स्मार्ट फोन ने भले ही दूरियां कम कर दी हैं, लेकिन घर न जाने की कसक तो मन में है। कुछ ने घर जाने का प्रयास भी किया, लेकिन रेलवे स्टेशनों पर भीड़ इतनी थी की वह ट्रेन तक नहीं पहुंच सके। पहली बार मैं छठ पूजा पर घर पर नहीं हूं। दिल्ली में इस वर्ष पढ़ने आया। पटना स्थित घर जाने की पूरी तैयारी कर ली थी। दीपावली के पहले से ट्रेन की टिकट बुक कराने का प्रयास किया। आखिरकार छह दिन पहले की टिकट मिली। मेट्रो में भीड़ से समझ में आ गया था कि आगे का सफर कैसा रहने वाला है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन उतरा तो वहां जन सैलाब दिखा। मैं प्लेटफार्म तक नहीं पहुंच सका। आखिरकार बिना ट्रेन पकड़े ही वापस आना पड़ा। मन बहुत दुखी है। छठ पर घर की तस्वीर रह-रहकर आंखों के सामने आ जा रही है।
विशाल राज, छात्र ::::::::::::::
पढ़ाई के कारण छठ पर घर नहीं जा सका। मन काफी दुखी है, क्योंकि घर का माहौल ही अलग होगा। घर पर अगर होता तो मां के साथ पूजा की सामग्री तैयार करने और खरीदारी में व्यस्त रहता। इसके साथ ही घाट की सफाई समेत काफी काम मेरे जिम्मे होते। कई दिन पहले से छठ की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। उसमें घर के लड़के जोर-शोर से भाग लेते हैं। दोस्तों संग मस्ती भी होती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है।
उज्जवल प्रकाश, छात्र पहले पढ़ाई और अब कामकाज के कारण छठ पर घर नहीं जा पाया। यह काफी मायूस करने वाला पल है। क्योंकि एक यही त्योहार है, जिसमें घर के सभी सदस्य जुटते हैं और मिलकर इसे मनाते हैं। इसलिए इसे महापर्व कहा गया है। घर पर लगातार बात हो रही है। इधर भी मन दुखी है और उधर भी।
सुधाकर, सीए रह-रहकर घर की याद आ रही है। मैं सीतामढ़ी में अपने घर पर नहीं हूं तो सारा काम बड़े भाई ही देख रहे होंगे। हर बार मैं शाम में डाला (पूजा सामग्री) लेकर घाट पर जाता था, जबकि बड़े भैया सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद वापस लाते थे। यह एक ऐसा पर्व है, जो जमीन से जोड़कर रखता है। कहीं भी हों, सब जुटते हैं। काम के सिलसिले में बाहर बसे दोस्त भी आते हैं। सबसे मिलना भी हो जाता है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो पाया।
दुर्गेश, नौकरी पेशा