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केंद्र की पहल, अब गंगाजल से बनेंगी जीवनरक्षक दवाएं !

गंगा को स्वच्छ बनाने और उसके जल में मौजूद औषधीय गुणों का पता लगाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय ने मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर शोध कराने की घोषणा की है। कुछ शोधों में भी साबित हो चुकी है कि गंगा की धारा में ऐसे गुणकारी तत्व

By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 17 Nov 2015 01:58 PM (IST)Updated: Tue, 17 Nov 2015 04:54 PM (IST)
केंद्र की पहल,  अब गंगाजल से बनेंगी जीवनरक्षक दवाएं !

नई दिल्ली । गंगा को स्वच्छ बनाने और उसके जल में मौजूद औषधीय गुणों का पता लगाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और जल संसाधन मंत्रालय ने मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर शोध कराने की घोषणा की है। कुछ शोधों में भी साबित हो चुकी है कि गंगा की धारा में ऐसे गुणकारी तत्व हैं, जो हानिकारक जीवाणुओं का नाश कर देती हैं।

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इसके चलते गंगाजल में सडऩ नहीं होती। इस तथ्य को ध्यान में रखकर गंगाजल के औषधीय गुणों पर एम्स, आइआइटी कानपुर और रुड़की, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) तथा राष्ट्रीय वनस्पतिक अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) मिलकर समग्र शोध करेंगे कि कैसे उन औषधीय गुणों का इस्तेमाल चिकित्सा में किया जा सकता है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने गंगाजल में 'सडऩ न होने के गुणों पर एम्स में आयोजित कार्यशाला इसकी घोषणा की। यदि विशेषज्ञ इसमें कामयाब रहे तो आने वाले दिनों में गंगाजल से जीवनरक्षक दवाएं भी बन सकती हैं। छह महीने में विशेषज्ञ अनुसंधान की रिपोर्ट प्रकाशित करेंगे और यह बताएंगे कि गंगाजल में मौजूद इन औषधीय गुणों का ट्रायल मेडिसिन में हो सकता है।

जेपी नड्डा ने कहा कि दुनिया भर में दवा प्रतिरोधी जीवाणुओं से ऐसी बीमारियां सामने आ रही हैं, जिस पर दवा असर नहीं करती। दुनिया उन बीमारियों से लड़ रही है। ऐसे में अध्ययन करने की जरूरत है कि गंगा कैसे जीवाणुओं व रोगाणुओं को नष्ट कर खुद जल को स्वच्छ कर लेती है।

गंगा नदी की लंबाई लगभग 2600 किलोमीटर है। यह मैदानी इलाकों को सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराती है। सरकार का लक्ष्य न केवल गंगा को साफ करना बल्कि इसका उद्धार करना भी है। शोध के नतीजे आने पर वैज्ञानिक साक्ष्य से गंगाजल के औषधीय गुणों को समझने में मदद मिलेगी।

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कहा कि गंगा आस्था का विषय तो है, इस पर 50 करोड़ लोग आर्थिक रूप से भी निर्भर हैं। अब गंगा को स्वास्थ्य से जोड़कर भी देखा जा रहा है। इसलिए यह शोध होना जरूरी है। इससे दो चीजें पता चल जाएंगी।

पहला यह कि कौन सी चीजें गंगाजल को सडऩ से रोकती हैं। दूसरा यह कि नदी के उद्गम स्थल से लेकर अंतिम मुहाने तक किस जगह उन औषधीय गुणों की कमी है, जिससे गंगा की स्वच्छता प्रभावित हुई। इसलिए हरिद्वार से लेकर कोलकाता तक पानी के सैंपल लेकर शोध किया जाएगा। जिस जगह पानी की गुणवत्ता में कमी पाई जाएगी वहां उन औषधीय गुणों को बढ़ाने का प्रयास किया जाएगा।

गंगाजल में मौजूद जीवाणुभक्षी नष्ट करते हैं जीवाणुओं को
कार्यशाला में नीरी के निदेशक डॉ. एसआर वटे ने कहा कि शोध में यह पाया गया है कि गंगा के पानी में ऐसे जीवाणुभक्षी (बैक्ट्रियोफेगस) होते हैं, जो पानी में मौजूद जीवाणुओं को खा जाते हैं। शोध में यह भी पाया गया है कि यदि सीवरेज के पानी में गंगाजल को डाल दिया जाए तो खतरनाक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और वे दोबारा उत्पन्न नहीं हो पाते। इसलिए गंगाजल में मौजूद जीवाणुभक्षियों का मेडिकल ट्रायल में इस्तेमाल हो सकता है। इस कार्यशाला में आइआइटी कानपुर और रूड़की, बीएचयू आदि के विशेषज्ञों ने भी अपनी बातें रखी।


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