सिखों को जोड़ना भाजपा के लिए चुनौती
संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली दिल्ली में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही भाजपा के लिए सिखा
संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली
दिल्ली में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही भाजपा के लिए सिखों को अपने साथ जोड़ना बड़ी चुनौती है। पुराने नेता इस बात से नाराज हैं कि उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है। वहीं, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) बादल से आए कुलवंत सिंह बाठ ने नौ महीने में ही भाजपा का साथ छोड़ दिया है। जबकि पार्टी ने इन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष का ओहदा दिया था। साथ ही इनकी पत्नी के पार्षद बनने में भी अहम भूमिका निभाई थी। शिअद नेताओं की भाजपा विरोधी बयानबाजी से पार्टी की चिंता और बढ़ गई है। इसलिए सिखों में जनाधार बढ़ाने के लिए पार्टी को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।
दिल्ली प्रदेश भाजपा की कमान संभालने के बाद मनोज तिवारी ने जनवरी में जब अपनी टीम बनाई तो बाठ को सिख चेहरे के तौर पर उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी थी। जिसका पार्टी के कई पुराने सिख कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था। उनका आरोप था कि बाठ ने शिअद की सदस्यता नहीं छोड़ी है। ऐसे में किसी अकाली को पार्टी का पदाधिकारी बनाने से गलत संदेश जाएगा। कार्यकर्ताओं के विरोध का प्रदेश नेतृत्व पर कोई असर नहीं पड़ा और बाठ का कद लगातार बढ़ता रहा। नगर निगमों के चुनाव में बाठ की पत्नी गुरजीत कौर को टिकट भी दे दिया गया। इसके साथ ही वह शिअद बादल के चुनाव चिह्न पर दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) का चुनाव लड़कर कमेटी की सदस्य भी बन गई। इस पर भी कई नेताओं ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि बाठ की आस्था अकाली दल के प्रति है। पिछले दिनों दिल्ली प्रदेश भाजपा के सिख प्रकोष्ठ ने डीएसजीपीसी चुनाव में हिस्सेदारी की मांग की तो कई अकाली नेताओं ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। बाठ भी अकाली नेताओं के साथ खड़े दिखे। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित सिख संगत ने गुरु गोबिंद सिंह जी के 350 वें प्रकाशोत्सव के उपलक्ष्य में तालकटोरा स्टेडियम में कार्यक्रम की घोषणा की तो वह खुलकर भाजपा के खिलाफ खड़े हो गए। उन्होंने कहा कि अकाल तख्त ने सिखों को इस कार्यक्रम से अलग रहने का आदेश दिया है। इसलिए वह इस कार्यक्रम का बहिष्कार करेंगे। उनका इस्तीफा अब तक स्वीकार नहीं हुआ है। कुछ नेता बीच-बचाव में लगे हुए हैं। उनकी पत्नी ने भी अभी तक पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है। पार्टी के कई नेता इस स्थिति के लिए प्रदेश नेतृत्व को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले दिनों चार और सिख नेता जो कि डीएसजीपीसी के सदस्य भी थे, वह अकाली दल में शामिल हो गए हैं। इन सबके पीछे वे बड़े अकाली नेताओं की भूमिका से भी इन्कार नहीं कर रहे हैं। इसलिए पार्टी को पुराने सिख कार्यकर्ताओं को अहमियत देते हुए सिखों के बीच अपनी पैठ बढ़ानी होगी। इससे सिख वोट के लिए अकाली दल पर निर्भरता भी कम होगी।