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सुनिए सियासतदान, जहरीले होते जल से खतरे में है जान

राजधानी में लोग भूजल का इस्तेमाल तो अधिक करते हैं लेकिन दिल्ली जल संचयन में फिसड्डी साबित हो रही है। स्थिति यह है कि दिल्ली के भूगर्भ में जितना पानी उपलब्ध है उसका 76 फीसद हिस्सा नमकीन होने के चलते इस्तेमाल के लायक नहीं है। सिर्फ 24 फीसद ही साफ पानी का स्टॉक है। पानी का दोहन अधिक व वर्षा जल संचयन कम होने के चलते भूगर्भ में मौजूद साफ पानी के स्टॉक से हर साल 105 एमसीएम (मिलियन क्यूसिक मीटर) पानी अधिक खर्च हो रहा है। यह बात केंद्रीय भूजल नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए गए सर्वे में सामने आई है। यदि इसी तरह भूजल के स्टॉक से पानी का दोहन होता रहा और जल संचयन नहीं बढ़ा तो 30 सालों बाद इस्तेमाल के लायक भूजल नहीं बचेगा। ऐसे में सर्वे की रिपोर्ट सरकार को भविष्य के प्रति सचेत करने वाली है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 10:52 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 10:52 PM (IST)
सुनिए सियासतदान, जहरीले होते जल से खतरे में है जान
सुनिए सियासतदान, जहरीले होते जल से खतरे में है जान

रणविजय सिंह, नई दिल्ली

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दिल्ली में पानी पर सियासत खूब होती है। फ्री पानी की बात कर आम आदमी पार्टी (आप) ऐतिहासिक जीत के साथ सत्ता में काबिज हुई। कांग्रेस व भाजपा भी घर-घर पानी पहुंचाने का वादा करती रही हैं। लोकसभा चुनाव में पानी दिल्ली में एक बार फिर बड़ा एजेंडा रहेगा। फिर भी सियासतदानों ने यहां के गिरते भूजल स्तर पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वोट की राजनीति में वर्षा जल संरक्षण की योजनाएं व अदालती आदेश दम तोड़ते रहे। आलम यह है कि पिछले दस सालों में दिल्ली के कई इलाकों में चार मीटर से अधिक भूजल स्तर गिरा है। फिर भी भूजल रिचार्ज की तुलना में दोहन ही अधिक हो रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अध्ययन रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।

रिपोर्ट चिंता बढ़ाती है। इसमें कहा गया है कि भूजल में सिर्फ भारी धातु, कई खतरनाक रसायनों के साथ ही पेस्टिसाइड की मौजूदगी भी पाई गई है। बोर्ड ने आगाह किया है कि भूजल में मौजूद जहरीले रसायनों के कारण कैंसर, हाईपरटेंशन व हृदय की जानलेवा बीमारियां होने का खतरा है। बोर्ड ने भूजल रिचार्ज बढ़ाने का सुझाव दिया है। बावजूद भूजल दोहन रोकने व रिचार्ज बढ़ाने के लिए खास गंभीर प्रयास नहीं किए गए। हालांकि अब दिल्ली सरकार ने जल बोर्ड के माध्यम से 376 करोड़ की लागत से 159 जलाशयों को झील में विकसित करने की योजना पर काम शुरू किया है। इससे सरकार को उम्मीद है कि भूजल स्तर में सुधार होगा।

केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार 2017 में मानसून से पहले दिल्ली का भूजल स्तर 1.13 मीटर से लेकर 99 मीटर तक था। बोर्ड द्वारा भूजल स्तर का पता लगाने के लिए लगाए गए 94 कुओं (वेल) के जल स्तर के आधार पर यह बातें कही गई हैं, जबकि यहां ऐसे 127 कुएं थे। कुछ इलाकों में भूजल स्तर इतना गिर गया है कि कुएं सूख गए हैं। दो फीसद कुओं में जल स्तर दो मीटर तक, 21 फीसद कुओं में दो से पांच मीटर तक, 26 फीसद कुओं में पांच से 10 मीटर, 27 फीसद कुओं में 10 से 20 मीटर तक, 16 फीसद कुओं में 20 से 40 मीटर और नौ फीसद कुओं में जल स्तर 40 मीटर से अधिक गहरा था। 2007 की तुलना में 2017 में 77 फीसद कुओं के जलस्तर में गिरावट दर्ज की गई। इसमें 45 फीसद कुओं में दो मीटर तक, 17 फीसद कुओं में दो से चार मीटर तक व 16 फीसद कुओं के जलस्तर में चार मीटर से अधिक गिरावट पाई गई थी। इन सबके बीच अच्छी बात यह रही कि 23 फीसद कुओं में जलस्तर दो से चार मीटर तक बढ़ गया। 76.23 फीसद हिस्सा खारा व इस्तेमाल के योग्य नहीं

केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा दिल्ली के भूगर्भ में उपलब्ध पानी का अध्ययन किया गया है। इसमें यह पाया गया है कि उपलब्ध पानी का 76.23 फीसद हिस्सा खारा हो चुका है। यह इस्तेमाल के लायक नहीं है। सिर्फ 23.77 फीसद पानी ही साफ है, फिर भी बड़े पैमाने पर भूजल दोहन जारी है। घरेलू इस्तेमाल से लेकर औद्योगिक इकाइयों में भूजल का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। वार्षिक भूजल रिचार्ज जल दोहन की तुलना में 4,872 हेम (हेक्टेयर मीटर) कम है। भूजल में सीवरेज का अंश मौजूद

अध्ययन के दौरान दिल्ली के विभिन्न इलाकों से भूजल के 97 सैंपल लेकर उनकी जांच की गई। इनमें से 12 सैंपल में जीवाणुओं की जांच की गई। खानपुर, जगतपुर जाट, महिपालपुर व ग्रेटर कैलाश इलाके के पानी के छह सैंपल में कोलिफॉर्म की मौजूदगी पाई गई, जो सामान्य तौर पर सीवरेज व नालों के गंदे पानी में पाए जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि सीवरेज का गंदा पानी सिर्फ यमुना को ही प्रदूषित नहीं कर रहा है बल्कि भूजल में पहुंच रहा है। पानी में बीमार बनाने वाले खतरनाक रसायन मौजूद

अध्ययन में कहा गया है कि दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली के बामनौली इलाके के भूजल में बाइकार्बोनेट की मात्रा अधिक पाई गई है। इसके अलावा कई इलाकों में क्लोराइड, सल्फेट, नाइट्रेट, फ्लोराइड, कैल्शियम, मैग्निशियम, सोडियम व पोटैशियम जैसे रसायन पाए गए हैं। इसके अलावा कई इलाकों के भूजल में भारी धातु मौजूद हैं। इसके अलावा पानी के सात सैंपल में डीडीटी व डेल्ड्रिन जैसे पेस्टिसाइड मिले हैं। डीडीटी की मात्रा सामान्य से दोगुना से लेकर आठ गुना तक पाई गई है।

नाइट्रेट से कैंसर का खतरा

रिपोर्ट में कहा गया है कि नालों, खेतिहर इलाकों, पार्कों व लैंडफिल साइट के नजदीक के भूजल में भारी मात्रा में नाइट्रेट की मौजूदगी है। इसमें उत्तर-पश्चिमी दिल्ली, उत्तर पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी, पूर्वी, मध्य, दक्षिण पश्चिमी, दक्षिणी व नई दिल्ली के इलाके शामिल हैं। इससे गैस्ट्रिक कैंसर, जन्मजात बीमारियां, हाइपरटेंशन व बच्चों में हीमोग्लोबिन की अधिकता की बीमारी हो सकती है। सल्फेट की अधिकता से आंतों व सांसों की बीमारियां होने का खतरा है। फ्लोराइड से दांतों व हड्डियों की बीमारी का खतरा

उत्तर-पश्चिमी, दक्षिण-पश्चिमी, उत्तर-पूर्वी, पश्चिम-उत्तरी, पूर्वी, मध्य व दक्षिणी दिल्ली के कुछ इलाकों में फ्लोराइड की अधिकता है। इस वजह से दांतों की बीमारियों के अलावा हड्डियों व रीढ़ की बीमारी होने की आशंका रहती है। कुछ इलाकों के भूजल में सोडियम की मात्रा भी सामान्य से अधिक है। इससे हाइपरेटेंशन, हृदय की जन्मजात बीमारी, तंत्रिका तंत्र व किडनी की बीमारी होने का खतरा है। लोगों में ये बीमारियां बढ़ भी रही हैं। उत्तरी, पश्चिमी, दक्षिण-पश्चिमी, दक्षिणी व मध्य दिल्ली के भूजल में कैल्शियम की भी अधिकता है, जिससे किडनी में स्टोन हो सकता है। अदालतों के आदेश पर अमल नहीं

राजधानी के गिरते भूजल स्तर के मद्देनजर वर्ष 2007 में हाई कोर्ट ने 100 वर्ग मीटर और उससे अधिक बड़े भूखंड के प्लाटों में बने भवनों में वर्षा जल संचयन बनाना अनिवार्य करने का आदेश दिया था। इसके बगैर नक्शा पास नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा जल बोर्ड ने जुर्माने का भी प्रावधान किया है। फिर भी कड़ाई से इस नियम का पालन नहीं किया गया। यहां के ज्यादातर फ्लाईओवर में वर्षा जलसंचयन की व्यवस्था नहीं है। स्कूलों व अस्पतालों का भी कमोबेश यही हाल है। हालांकि उत्तरी दिल्ली नगर निगम का दावा है कि उसके 382 स्कूलों के भवन में वर्षा जल संचयन की सुविधा है। सिर्फ 102 स्कूलों में यह व्यवस्था नहीं हो पाई है। वहीं पूर्वी दिल्ली के 232 स्कूल भवनों में से 210 स्कूलों में वर्षा जल संचयन की सुविधा है। महत्वपूर्ण आंकड़े

दिल्ली के भूगर्भ में उपलब्ध पानी- 13,491 (एमसीएम) मिलियन क्यूसेक मीटर

खारा पानी- 10,238 एमसीएम

साफ पानी- 3,207 एमसीएम दिल्ली में वार्षिक कुल भूजल रिचार्ज- 33,905 हेम (हेक्टेयर मीटर)

वर्षा से भूजल रिचार्ज- 10,127 हेम

अन्य स्रोतों से रिचार्ज- 23,778 हेम

वार्षिक कुल पानी दोहन- 38,777 हेम

घरेलू इस्तेमाल के लिए दोहन- 20,453 हेम

औद्योगिक ईकाइयों व पानी के कारोबार में दोहन- 4,560 हेम

सिचाई के लिए दोहन- 13,764 हेम वार्षिक पानी उपलब्धता- 30,650 हेम

वार्षिक पानी उपलब्धता की तुलना में दोहन- 8,127 हेम ----------

पानी माफिया पर सरकार अंकुश लगाने में नाकाम रही हैं। पानी माफिया ही भूजल स्तर गिरने के लिए जिम्मेदार हैं। पानी का अवैध कारोबार जारी है।

- जितेंद्र कोचर, प्रवक्ता, प्रदेश कांग्रेस

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सरकार ने जल संचयन व भूजल रिचार्ज के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। जलाशयों को झीलों में विकसित कर उनमें जल संचयन को बढ़ावा दिया जा रहा है। जलाशयों के पानी के शोधन के लिए छोटे सीवरेज शोधन संयंत्रों का निर्माण किया जाएगा, ताकि शोधित पानी जलाशयों में एकत्रित हो सके। इससे भूजल स्तर भी बढ़ेगा। इसके अलावा सीवरेज के शोधित पानी का इस्तेमाल बढ़ाकर जल संरक्षण के दिशा में पहल की गई है।

- गोपाल राय, प्रदेश संयोजक, आम आदमी पार्टी -------------

राजधानी की आबादी बढ़ने के साथ भूजल स्तर गिरता जा रहा है। दुर्भाग्य से दिल्ली सरकार ने इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। हमने अपने घोषणापत्र में कहा था कि दिल्ली में भाजपा की सरकार आने पर सोसाइटियों में वर्षा जल संचयन यंत्र लगाना अनिवार्य किया जाएगा। एक बड़ी समस्या यमुना में पानी बढ़ने पर उसके भंडारण का नहीं होना है। इसका सामाधान होना चाहिए।

- हरीश खुराना, प्रवक्ता, प्रदेश भाजपा


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