यमुनापार के रिहायशी इलाकों में चलती हैं जींस रंगाई और तेजाब की फैक्ट्रियां
यमुनापार सघन आबादी वाला क्षेत्र है। यहां रिहायशी इलाकों में बड़ी संख्या में अवैध फैक्ट्रियां हैं। यहां शायद ही कोई ऐसा मकान हो जिसमें ऊपर की मंजिल में रिहायश और नीचे फैक्ट्री न चलती हो। इन इलाकों में जींस व चूड़ी की रंगाई तेजाब निकल पॉलिश प्लास्टिक के खिलौने बनाने समेत अन्य फैक्ट्रियां हैं। ये फैक्ट्रियां जहां हवा में जहर घोल रही हैं साथ ही लोगों को भी बीमार बना रही हैं। शिव विहार इलाके में जींस रंगाई से कैंसर फैलने का मुद्दा 2017 में जब मीडिया ने उठाया तो स्थानीय लोगों ने फैक्ट्रियों इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने सीबीआइ को इसकी जांच करने के आदेश दिए साथ ही निगम को फैक्ट्रियां सील करने को कहा। फिलहाल यह मामला कोर्ट में लंबित है।
शुजाउद्दीन, पूर्वी दिल्ली
यमुनापार सघन आबादी वाला क्षेत्र है। यहां रिहायशी इलाकों में बड़ी संख्या में अवैध फैक्ट्रियां हैं। यहां शायद ही कोई ऐसा मकान हो, जिसमें ऊपर की मंजिल में रिहायश और नीचे फैक्ट्री न चलती हो। इन इलाकों में जींस व चूड़ी की रंगाई, तेजाब, निकल पॉलिश, प्लास्टिक के खिलौने बनाने समेत अन्य फैक्ट्रियां हैं। ये फैक्ट्रियां जहां हवा में जहर घोल रही हैं, साथ ही लोगों को भी बीमार बना रही हैं। शिव विहार इलाके में जींस रंगाई से कैंसर फैलने का मुद्दा 2017 में जब मीडिया ने उठाया तो स्थानीय लोगों ने फैक्ट्रियों इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने सीबीआइ को इसकी जांच करने के आदेश दिए, साथ ही निगम को फैक्ट्रियां सील करने को कहा। फिलहाल यह मामला कोर्ट में लंबित है।
चुनाव चाहे विधानसभा के हों या लोकसभा के। अवैध फैक्ट्रियों का यह मुद्दा कोई नेता और पार्टी नहीं उठाती। यमुनापार में निम्न व मध्यम वर्ग के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। दिनभर जो कमाते हैं, उससे परिवार चलता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अवैध फैक्ट्रियां रिहायशी इलाकों में नहीं चल सकतीं, जनप्रतिनिधि और अधिकारी भी यह बात जानते हैं। यह यमुनापार का बड़ा मुद्दा है, लेकिन इसपर चर्चा तक नहीं होती। इन इलाकों में चल रही हैं फैक्ट्रियां
सीलमपुर, वेलकम, चौहान बांगर, ब्रह्मपुरी, उस्मानपुर, मुस्तफाबाद, शास्त्री पार्क, करावल नगर, मौजपुर, सभापुर गांव, घोंडा, जाफराबाद, मंडोली-सबोली, हर्ष विहार, शिव विहार, गढ़ी मेंडू, गाजीपुर गांव, गांधी नगर, कांति नगर, न्यू अशोक नगर, जनता कॉलोनी, कर्दमपुरी, सुंदर नगरी सहित अन्य इलाके। कोर्ट के डंडे के बाद दिखा थोड़ा असर
सर्वाेच्च न्यायालय की ओर से गठित निगरानी समिति के आदेश पर सीलिग की सबसे बड़ी कार्रवाई विश्वास नगर में की गई। अगस्त 2018 में कमेटी के आदेश पर पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने करीब 600 फैक्ट्रियों को सील कर दिया, इसमें अधिकतर फैक्ट्रियां तार बनाने वाली थीं। इस कार्रवाई के बाद से इलाके में सन्नाटा पसरा हुआ है। दूसरे इलाकों में भी समिति के आदेश पर कार्रवाई की गई, लेकिन वहां इसका विशेष असर नहीं दिख रहा। लोगों ने कार्रवाई के दौरान फैक्ट्रियां बंद रखीं और उसके बाद खोल लीं। ट्रोनिका सिटी और नोएडा में स्थानांतरित की फैक्ट्रियां
अगस्त 2018 से कई महीनों तक समिति के आदेश पर यमुनापार में नगर निगम ने समय-समय पर सीलिग की कार्रवाई की। उस वक्त बड़ी संख्या में फैक्ट्री संचालकों ने कार्रवाई से बचने के लिए उत्तर प्रदेश के ट्रोनिका सिटी और नोएडा में किराये पर जगह ली। स्वच्छ हवा के लिए तरसते हैं यहां के लोग
अन्य राज्यों के मुकाबले राजधानी में अधिक प्रदूषण हैं, लेकिन दिल्ली में सबसे ज्यादा प्रदूषण यमुनापार के आनंद विहार इलाके में है। यहां का एयर इंडेक्स अमूमन खतरे के पार ही रहता है, अन्य इलाकों में भी प्रदूषण का स्तर कुछ कम नहीं है। यमुनापार के लोगों का कहना है कि उन्हें भी स्वच्छ हवा में सांस लेने का अधिकार है, लेकिन फैक्ट्रियों के कारण हवा में जहर घुल रहा है। इस कारण वह कभी स्वच्छ हवा में सांस नहीं ले सकते। कार्रवाई करने पर अधिकारी का हो जाता है तबादला
दिल्ली में सबसे अधिक अनाधिकृत कॉलोनियां यमुनापार में हैं। इन कॉलोनियों में धड़ल्ले से अवैध फैक्ट्रियां चलती हैं। लोग इन फैक्ट्रियों के कारण परेशानियां झेलते हैं। दूसरी ओर जब निगम की टीम कार्रवाई करने पहुंचती है तो उसे रोक दिया जाता है। लोगों का कहना है कि नेताओं के इशारे पर ऐसा किया जाता है। अधिकारियों का मानना है कि नेताओं के आदेश के ऊपर जाकर कोई कार्रवाई करता है तो उस अधिकारी का तबादला कर दिया जाता है। फैक्ट्रियां चलाने के लिए निगम, पुलिस व नेताओं को जाता है मोटा पैसा!
यमुनापार के लोगों का कहना है यहां पर रिहायशी इलाके में फैक्ट्रियां चलाना गैरकानूनी है। पुलिस, निगम और अधिकारियों की मिलीभगत के बिना इन फैक्ट्रियों का संचालन नहीं हो सकता। ऐसा तभी मुमकिन है जब संबंधित विभाग के अधिकारी मौके पर जाकर स्थिति का जायजा नहीं लेते।