बारिश के कारण पुतला बनाने के रुके कार्य को गति देने में जुटे कारीगर, परिवार की महिलाएं भी दे रही हैं योगदान
विजय दशमी में अब छह दिन शेष रह गए है। इस बीच वर्षा के कारण दशानन के पुतले तैयार करने का कार्य काफी प्रभावित हुआ है। तितारपुर गांव में कारीगर अमित ने बताया कि बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ है।
मनीषा गर्ग, पश्चिमी दिल्ली। विजय दशमी में अब छह दिन शेष रह गए है। इस बीच वर्षा के कारण दशानन के पुतले तैयार करने का कार्य काफी प्रभावित हुआ है। तितारपुर गांव में कारीगर अमित ने बताया कि बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ है। पुतले पर लगाया गया कागज खराब हो गया है और अब फिर से कागज लगाने में हम जुटे है। समय कम और काम अधिक होने के कारण परिवार की महिलाएं भी घर का कामकाज छोड़कर पुतले बनाने में जुट गई हैं।
महंगाई की मार झेल रहे कारीगरों को बारिश से लगा दोहरा झटका
कारीगर राहुल ने बताया कि कागज की एक शीट पहले 12 रुपये में मिलती थी, पर उसका दाम अब 17 रुपये हो गया है। पहले ही हम महंगाई की मार झेल रहे थे, उस पर से वर्षा ने हमारे ऊपर आर्थिक दबाव को बढ़ा दिया है। इसके अलावा समय पर काम पूरा करने के लिए अत्यधिक कामगारों की सहायता लेनी पड़ रही है। उन्हें 500 रुपये प्रतिदिन की दिहाड़ी दे रहे हैं। पर अच्छी बात यह है कि वर्षा समय पर थम गई और दूसरा इस बार निगम व पुलिस की ओर से भी हमें परेशान नहीं किया जा रहा है। ऐसे में हम निश्चिंत होकर सड़क किनारे फुटपाथ पर पुतला तैयार कर पा रहे है।
पुतले तैयार करने में जुटे कारीगर
वर्ष 2019 में सभी पुतला कारीगरों को बेरी वाला बाग में पुतला बनाने के लिए निगम की ओर से जगह उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन वहां न सफाई व्यवस्था थी और न ही बिजली, पानी। जिसके कारण कारीगरों को काफी परेशानी हुई थी। इस वर्ष निगम ने जगह उपलब्ध कराने के सिलसिले में अभी तक भी कोई कदम नहीं उठाया है। कारीगर अमित ने बताया कि हम दिन-रात मेहनत कर पुतले तैयार करने के लिए जी जान से जुटे है।
बदले हालात
कारीगर महेंद्र पाल ने बताया कि अब पहले जैसी बात नहीं है। दशहरा व दीवाली के नजदीक आते ही प्रशासन ने पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके अलावा एक अक्टूबर से ग्रैप लागू हो रहा है। जिसके चलते आयोजक समितियों में संशय का माहौल है कि विजय दशमी पर पुतला दहन होगा की नहीं। यही कारण है की अधिकांश आयोजक समितियों ने अभी तक पुतला बनाने का आर्डर नहीं दिया है। विजय दशमी के नजदीक आने पर ये हाथोहाथ पुतला खरीदने के लिए आगे आएंगे। हालांकि पहले ऐसा नहीं होता था।
कारीगरों की संख्या में हुआ है इजाफा
कारीगरों का कहना हैं कि समितियों की ओर से पुतले बनाने के इतने आर्डर मिल जाते थे कि छोटे पुतले बनाने के लिए समय ही नहीं बचता था। हालांकि कोरोना महामारी के समय से पांच फुट के छोटे पुतलों की मांग काफी बढ़ गई है। स्कूल व माल से इसके काफी आर्डर मिल रहे है और कारीगर उन्हें हाथोहाथ ले रहे है। दूसरा पहले एकाध कारीगर थे, पर समय के साथ पुतला बनाने वाले कारीगरों की संख्या में भी इजाफा हुआ है।
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