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भय, भूख और अनिश्चितता बनी पलायन की वजह

भय भूख और भविष्य की अनिश्चितत ने प्रवासी मजदूरों की चिता इस कदर बढ़ा दी है कि वह अपने गांव पहुंचने के लिए कोई भी खतरा मोल लेने को तैयार हैं। उन्हें कोरोना से ज्यादा भूख की चिता है कि लॉकडाउन में इतने दिन क्या खाएंगे। अभी तो लॉकडाउन के चंद दिन हुए हैं कि हालत खराब होने लगी लगी है आगे तो और मुसीबत बढ़ जाएगी।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Mar 2020 10:33 PM (IST)Updated: Sun, 29 Mar 2020 06:06 AM (IST)
भय, भूख और अनिश्चितता बनी पलायन की वजह
भय, भूख और अनिश्चितता बनी पलायन की वजह

जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली : भय, भूख और भविष्य की अनिश्चितता ने प्रवासी मजदूरों की चिता इस कदर बढ़ा दी है कि वह अपने गांव पहुंचने के लिए कोई भी खतरा मोल लेने को तैयार हैं। उन्हें कोरोना से ज्यादा भूख की चिता है कि लॉकडाउन में इतने दिन क्या खाएंगे। अभी तो लॉकडाउन के चंद दिन ही हुए हैं।

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लोग दिल्ली के कल्याणपुरी, पटपड़गंज, भजनपुरा, पांडव नगर, खिचड़ीपुर सहित अन्य इलाकों से बड़ी संख्या में अपने घर जाने के लिए आनंद विहार बस अड्डे पर पहुंच गए।

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मैं खिचड़ीपुर में रहता हूं और पटपड़गंज में एक दुकान पर सिलाई का काम करता था। अब लॉकडाउन होने से दुकान बंद हो गई है। इसलिए उन्नाव में अपने घर जा रहा हूं। जब तक यह खत्म नहीं होगा घर पर ही रहूंगा।

नाजिम, उन्नाव पांडव नगर में रहकर कबाड़े का काम करता था। लॉकडाउन होने के कारण काम बंद हो गया। इसलिए अब बदायूं में अपने घर जा रहा हूं क्योंकि यहां इतने दिन तक बिना काम के नहीं रह सकता। भोजन का भी पर्याप्त इंतजाम नहीं है। अपने घर जाकर खाने-पीने की कोई चिता नहीं रहेगी। घर से कई दिन से फोन भी आ रहे हैं।

सोनू, बदायूं कल्याणपुरी में रहकर कपड़े की फेरी लगाता था। अब लॉकडाउन होने से माल आना बंद हो गया। इसलिए आमदनी का कोई साधन नहीं है। साथ ही खाने-पीने की सभी चीजें यहां के दुकानदारों ने महंगी कर दी हैं। इसलिए घर जाना ही सबसे अच्छा है।

नबी शेख, संभल भजनपुरा में रहकर पेंटर का काम करता था। लॉकडाउन से पेंट की दुकानें भी बंद गई जिससे जो काम चल रहा था वो भी ठप हो गया। अब आगे भी कोई काम मिलना मुश्किल है। भोजन तक की व्यवस्था मुश्किल से हो पा रही है। इसलिए जब तक लॉकडाउन है तब तक अपने घर जाकर परिवार के साथ रहेंगे।

रवेंद्र कुमार, गोरखपुर हरियाणा के पानीपत में चिनाई का काम करता था। 25 मार्च के बाद से काम मिलना बंद हो गया। अब जब तक सब बंद रहेगा तब काम मिलना मुश्किल है। इसलिए अपने घर जाकर गांव में ही काम तलाशेंगे। वहां काम नहीं मिलेगा तब भी खाने की चिता नहीं रहेगी। गांव में तो उधार में आटा भी मिल जाता है।

मोहम्मद आदिल, शाहजहांपुर गीता कॉलोनी में एक हलवाई की दुकान पर काम करता था। 25 मार्च को लॉकडाउन के बाद मालिक ने दुकान बंद कर दी। दो दिन दूसरी जगह काम तलाशने की कोशिश की लेकिन सब बंद होने के कारण काम नहीं मिला। अब अपने घर जाने के अलावा कोई चारा नहीं है। अगर ये टाइम और बढ़ गया तो खाने-पीने का खर्चा चलाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अभी तो घर जाने लायक पैसे हैं जेब में।

सतबीर, हरदोई


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