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...यहीं से शुरू हुई थी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बुरे दिनों की शुरुआत

इंदिरा गांधी को इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से 24 जून को कुछ शर्तो के साथ स्टे मिला लेकिन अगले ही दिन इमरजेंसी का ऐलान कर दिया। 1977 में चुनाव करवाए तो इंदिरा गांधी अपनी सीट भी हार गईं और बंगला छोड़ना पड़ गया

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 12 Jun 2021 03:30 PM (IST)Updated: Sat, 12 Jun 2021 03:50 PM (IST)
...यहीं से शुरू हुई थी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बुरे दिनों की शुरुआत
इस बंगले में उनके बुरे दिनों की शुरुआत हुई 12 जून को, आखिरकार उन्हें छोड़ना ही पड़ गया

नई दिल्ली, विष्णु शर्मा। पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी को तीन मूर्ति भवन छोड़ना पड़ा था, उस घर में उनके दोनों बच्चे बड़े हुए थे। लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनीं, उनको एक सफदरजंग रोड के आवास में जाना पड़ा। पीएम के पहले कार्यकाल में भी वो इसी घर में रहीं, लेकिन दूसरी बार चुनाव लड़कर पीएम बनीं तो उनके बच्चे विदेश से पढ़ाई खत्म करके आने वाले थे, ऐसे में बड़े घर की जरूरत महसूस हुई तो, सिंटिग रूम को बड़ा कर दिया गया। इसमें एक स्लाइडिंग ग्लास डोर लगा दिया गया, जो सीधे बड़े से हरे भरे लान में खुलता था, बाद में निजी कार्यालय के लिए बगल वाले बंगले को भी ले लिया गया। लेकिन इस बंगले में उनके बुरे दिनों की शुरुआत हुई 12 जून को, आखिरकार उन्हें छोड़ना ही पड़ गया, वापसी भी हुई तो फिर जान भी यहीं गंवानी पड़ी।

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इंदिरा को लग रहा था कि उनके खिलाफ वाकई साजिश हो गई: दरअसल 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को रायबरेली के 1971 के चुनावों मे अनियमितताओं का दोषी ठहराते हुए संसद सदस्यता रद कर दी, छह साल के लिए चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। इंदिरा गांधी को ये खबर राजीव गांधी ने दी जब वो अपने स्टडी रूम की खिड़की से बाहर उसके साथ के छोटे से बगीचे को देखते हुए किसी सोच में डूबी हुईं थीं। इंदिरा को फौरन आंध्र प्रदेश के सीएम वेंगल राव की बात याद गई, जो उन्हें जेपी के नीलम संजीवा रेड्डी को भेजे एक गुप्त संदेश से पता चली थी कि इंदिरा पर छह साल के लिए प्रतिबंध लगना तय है। इंदिरा गांधी को शीला दीक्षित के श्वसुर उमाशंकर दीक्षित की वो बात भी याद आई, जब उनको बंगाल के तांत्रिक समुदाय आनंद मार्ग से जुड़े एक इनकम टैक्स आफिसर ने कहा था कि इंदिरा का इलेक्शन अवैध ठहराया जाएगा। इंदिरा को लग रहा था कि उनके खिलाफ वाकई साजिश हो गई है।

जब बंगाल के तत्कालीन सीएम सिद्धार्थ ने इंदिरा को इमरजेंसी लगाने की सलाह दी थी: इंदिरा ने इस्तीफे का मूड बना लिया था, लेकिन बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे उस दिन दिल्ली में थे। वो भी आए, इंदिरा गांधी को समझाया कि इतनी जल्दी फैसला नहीं लेना चाहिए। बाद में सिद्धार्थ ने ही इमरजेंसी लगाने की सलाह दी थी। इधर खबर सुनकर एक एक करके उनके बंगले में सभी दिग्गज नेता और करीबी पहुंचने लगे। कुछ लोग गुट बनाकर बंगले के अलग-अलग कौनों में आपस में चर्चा करने लगे तो कुछ लोग इंदिरा गांधी से ही चर्चा करने लगे। कुछ लोग अंदर से खुश भी थे कि चलो अब निजाम बदलेगा। उन दिनों कांग्रेस अध्यक्ष थे देवकांत बरूआ। वो भी वहां पहुंचे। उन्हें स्थिति अपने अनकूल लगी, तो उन्होंने सुझाव दे डाला कि कुछ दिन के लिए इंदिरा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाल लेनी चाहिए और तब तक बरूआ को पीएम बना देना चाहिए। संजय गांधी उस वक्त अपनी गुडगांव (गुरुग्राम) की मारुति फैक्ट्री में थे। संजय लंच के लिए घर आए थे, उनको किसी भी बात की खबर नहीं थी, लेकिन घर के हालात बहुत कुछ कह रहे थे। जब उन्हें ये पता चला कि वो इस्तीफा देने की भी सोच रही हैं, तो संजय, मां को अंदर वाले कमरे में ले गए और गुस्से में बोले कि कोई जरूरत नहीं इस्तीफा देने की। वह देवकांत बरुआ के आफर से भी नाराज थे और इंदिरा को समझाया कि ‘आपकी करीबियों में कोई भी विश्वासपात्र नहीं है, सबकी नजर आपकी कुर्सी पर है, देवकांत का आफर मानेंगी तो ये गद्दी से कभी नहीं उतरेगा’।

एक बुलंद नारा जो इसी बंगले से निकला था: देवकांत भी बंगले में ही थे, उनको ये एहसास भी हो गया कि सलाह उलटी पड़ गई है और तो उसी दौरन दिमाग दौड़ाया और एक नारा ईजाद कर दिया-‘इंदिरा इज इंडिया’ यानी इंदिरा के इसी बंगले में उसी तारीख को ये नारा जन्मा था। कांग्रेस नेताओं ने इस नारे को हाथों-हाथ लिया, बरूआ से सबका गुस्सा भी जाता रहा। उन दिनों जेल में बंद अटल बिहारी वाजपेयी को जब ये पता चला तो फौरन बरूआ को निशाने पर लेते हुए वहीं एक कविता रच डाली-

‘इंदिरा इंडिया एक है इति बरूआ महाराज, अक्ल घास चरने गई , चमचों के सरताज! चमचों के सरताज, किया भारत अपमानित, एक मृत्यु के लिए कलंकित भूत भविष्यत! कह कैदी कविराय, स्वर्ग से जो महान है, कौन भला उस भारत माता के सामान है??’

खैर, बाद में इंदिरा गांधी को इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से 24 जून को कुछ शर्तो के साथ स्टे मिला, लेकिन अगले ही दिन इमरजेंसी का ऐलान कर दिया। 1977 में चुनाव करवाए तो इंदिरा गांधी अपनी सीट भी हार गईं और बंगला छोड़ना पड़ गया और इस तरह बच्चन परिवार को विलिंगडन क्रीसेंट में उनके बगल में रहने का मौका मिला और अगले साल वहीं राजीव-सोनिया की शादी भी हुई और तब तक सोनिया गांधी बच्चन परिवार के बंगले में रहीं।

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