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गैस्ट्रिक को हल्के में लेने पर पड़ा दिल का दौरा

पेट में गैस होने पर लोग अक्सर उसे नजरअंदाज कर देते हैं। कई बार लोग खुद से ही दवा लेकर खा लेते हैं। ज्यादातर लोग तो गैस्ट्रिक होने पर जल्दी अस्पताल नहीं जाते। ऐसा ही एक मामला एम्स में सामने आया है। डॉक्टर कहते हैं कि हार्ट अटैक को गैस्ट्रिक समझकर नजरअंदाज करना 35 वर्षीय युवक को भारी पड़ी। एम्स में इलाज के बाद उनकी जिदगी तो बच गई लेकिन वह हार्ट फेल्योर के मरीज हो गए। इसलिए यदि देर तक पेट के उपरी हिस्से में गैस की समस्या हो तो उसे नजरअदांज करना जानलेवा हो सकता है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 09:53 PM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 06:27 AM (IST)
गैस्ट्रिक को हल्के में लेने पर पड़ा दिल का दौरा
गैस्ट्रिक को हल्के में लेने पर पड़ा दिल का दौरा

-देर से अस्पताल पहुंचने के कारण युवक का हार्ट फेल, एम्स के डॉक्टरों ने बचाई जान

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राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली

पेट में गैस होने पर लोग अक्सर उसे नजरअंदाज कर देते हैं। कई बार लोग खुद से ही दवा लेकर खा लेते हैं। ज्यादातर लोग तो गैस्ट्रिक होने पर जल्दी अस्पताल नहीं जाते। ऐसा ही एक मामला एम्स में सामने आया है। डॉक्टर कहते हैं कि हार्ट अटैक को गैस्ट्रिक समझकर नजरअंदाज करना 35 वर्षीय युवक को भारी पड़ी। एम्स में इलाज के बाद उसकी जिदगी तो बच गई लेकिन वह हार्ट फेल्योर का मरीज हो गया, इसलिए यदि देर तक पेट के ऊपरी हिस्से में गैस की समस्या हो तो उसे नजरअदांज करना जानलेवा हो सकता है।

एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय ने कहा कि उस युवक के पेट में गैस्ट्रिक जैसा महसूस हो रहा था। स्थानीय डॉक्टर भी यही समझते रहे। जब हालत ज्यादा खराब हो गई तब उसे एम्स लाया गया। तब तक काफी देर हो चुकी थी। इलाज में देरी के कारण दिल की मांसपेशियां कमजोर हो गई। इस वजह से उनके दिल ने ठीक से काम करना कम कर दिया है। उस मरीज का दिल 25 फीसद काम कर रहा है।

ईसीजी से बीमारी की पहचान संभव :

उन्होंने कहा कि मरीज अक्सर देर से अस्पताल में पहुंचते हैं। पेट में गैस महसूस होने पर यदि पेट के ऊपरी हिस्से में व चेस्ट में पीछे की आधे घंटे से अधिक समय तक दर्द हो तो यह हार्ट अटैक हो सकता है, इसलिए ईसीजी जांच तुरंत करानी चाहिए। अक्सर छोटे अस्पतालों में डॉक्टर भी इस बात को नजरअंदाज करते हैं। उन्होंने कहा कि हार्ट अटैक होने पर छह घंटे के बाद अस्पताल पहुंचने पर 80 फीसद मरीजों पर दवाओं का असर एक चौथाई से भी कम हो पाता है, इसलिए उनमें खास सुधार नहीं हो पाता और दिल की मांसपेशियां कमजोर रह जाती हैं, जबकि शुरुआती एक घंटे में इलाज होने पर ज्यादातर मरीज ठीक हो जाते हैं।


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