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फर्जी तरीके से निकाले थे रोजगार लोन, छह पर आरोपपत्र दायर

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : चप्पल-जूतों का व्यवसाय करने के बहाने बैंक से फर्जी तरीके से रा

By JagranEdited By: Published: Sat, 30 Sep 2017 08:01 PM (IST)Updated: Sat, 30 Sep 2017 08:01 PM (IST)
फर्जी तरीके से निकाले थे रोजगार लोन, छह पर आरोपपत्र दायर
फर्जी तरीके से निकाले थे रोजगार लोन, छह पर आरोपपत्र दायर

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली :

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चप्पल-जूतों का व्यवसाय करने के बहाने बैंक से फर्जी तरीके से रोजगार लोन के नाम पर 50 हजार रुपये निकालकर गबन करने वाले छह आरोपियों के खिलाफ दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने 10 साल बाद तीस हजारी कोर्ट में आरोप पत्र दायर किया है। एसीबी प्रमुख विशेष आयुक्त मुकेश कुमार मीणा ने मामले की पुष्टि की है।

जिन्हें आरोपी बनाया गया है उनके नाम सुशील कुमार (गोकुलपुरी), बीरपाल सिंह (मीठापुर एक्सटेंशन, बदरपुर), दिनेश गुप्ता (ज्योति कॉलोनी, शाहदरा), अनिल कुमार गुप्ता (बागपत, उप्र), जितेंद्र कुमार शर्मा (बलबीर नगर एक्सटेंशन, शाहदरा) व विनोद कुमार शर्मा (बलबीर नगर एक्सटेंशन, शाहदरा) है। 9 अक्टूबर 2007 को घटना के समय सुशील कुमार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यक आयोग के नंदनगरी स्थित आफिस में चपरासी था। अब वह उस आफिस में अपर डिवीजनल क्लर्क है। बीरपाल सिंह उस दौरान नंद नगरी आफिस में फील्ड सुपरवाइजर था। अब वह सेवानिवृत्त हो चुका है। दिनेश गुप्ता आयोग के नंद नगरी ऑफिस में डीलिंग असिस्टेंट था। अभी वह अपर डिवीजनल क्लर्क है। अनिल कुमार गुप्ता कोऑपरेटिव बैंक की चांदनी चौक शाखा में कर्मचारी था। घटना प्रकाश में आने के बाद उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। इसी ने आयोग के कर्मचारियों के साथ साजिश में शामिल होकर फर्जी नाम व पते से खाता खुलवाया था। जितेंद्र व विनोद दोनों बैंक में दलाली करते थे।

एसीबी अधिकारी के मुताबिक अनुसूचित जाति, जनजाति, अति पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यक आयोग से छोटे-मोटे व्यवसाय के लिए बैंक से लोन देने का प्रावधान है। 2007 में आयोग के तीन कर्मचारियों ने बैंक के एक कर्मचारी व लोन दिलाने का काम करने वाले दो दलालों के साथ साजिश रचकर ऋषिपाल के नाम पर 50 हजार रुपये निकाल लिए थे और उस रकम को वे लोग गबन कर गए थे। फर्जी तरीके से लोन निकालने की जानकारी जब आयोग के तत्कालीन अधिकारी सुभाष चंदर को मिली तब उन्होंने एसीबी में सभी छह के खिलाफ 9 अक्टूबर 2007 को मुकदमा दर्ज करवा दिया था। एसीबी ने सभी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। कुछ साल बाद सभी को जमानत मिल गई। इस मामले में एसीबी को आरोपियों के खिलाफ सुबूत जुटाने में 10 साल लग गए। करीब 8000 पेज के आरोप पत्र में एसीबी ने दावा किया है कि आरोपियों को सजा दिलाने के लिए उनके पास पर्याप्त सुबूत हैं।


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