'हवा' में ही प्रदूषण से जंग लड़ रही है 'आप' सरकार, हवा-हवाई साबित हुए दावे और वादे
सबसे ज्यादा प्रदूषित 20 शहरों की सूची पर निगाह डालें तो दिल्ली सातवें से छठे नंबर पर आ गई है। यही नहीं, पीएम 2.5 का स्तर भी 123 से बढ़कर 143 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गया है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। हवा-हवाई योजनाओं के सहारे प्रदूषण को मात देने में लगी आम आदमी पार्टी सरकार हर बार जंग हार रही है। साल दर साल दिल्ली की हालत खस्ता होती जा रही है जबकि मुख्यमंत्री और पर्यावरण मंत्री या तो जुबानी जंग लड़ते रहते हैं या चिट्ठी पत्री का खेल खलते रहते हैं। और तो और 54 हजार करोड़ का ग्रीन बजट भी कागजों में ही राजधानी की आबोहवा सुधार रहा है। आलम यह है कि दिल्ली की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए ही इस मसले पर पीएमओ तक को सक्रिय होना पड़ा है।
प्रदूषित 20 शहरों में छठे नंबर है दिल्ली
दिल्ली सरकार के तमाम दावों एवं वादों से परे हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी विश्व के सबसे ज्यादा प्रदूषित 20 शहरों की सूची पर निगाह डालें तो दिल्ली सातवें से छठे नंबर पर आ गई है। यही नहीं, पीएम 2.5 का स्तर भी 123 से बढ़कर 143 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गया है।
बढ़ते प्रदूषण को लेकर दिखी लापरवाही
बढ़ते प्रदूषण को लेकर दिल्ली में शुरू से ही लापरवाही बरती गई है। साल 2016 और 2017 के अक्टूबर-नवंबर माह में दिल्ली में स्मॉग इमरजेंसी लागू हुई और हफ्ते भर तक बनी रही, लेकिन दिल्ली सरकार इससे निपटने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुई। न तो ऑड इवेन ही लागू किया जा सका, न सार्वजनिक परिवहन में सुधार हो पाया और न ही ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के मानक लागू हो पाए। हर स्तर पर हर मानक का उल्लंघन देखा जा रहा है। सड़कों पर हेलीकॉप्टर से पानी के छिड़काव की बातें तो की गईं, मगर किया नहीं गया। एंटी स्मॉग गन भी आई, लेकिन ट्रायल तक सिमटकर रह गई। सख्ती के अभाव में ही ग्रेप के मानक भी सफेद हाथी साबित हुए।
अधिकार छीनने पर भी हो चुकी चर्चा
दिल्ली में वायु प्रदूषण के बिगड़ते हालात पर पीएमओ और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने सिर्फ समीक्षा बैठकें ही नहीं कीं, बल्कि इस पर भी मंथन किया कि अगर दिल्ली सरकार दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य का ख्याल नहीं रख पाती है तो क्या किया जाए? इस संबंध में तमाम अधिकार छीनने पर भी चर्चा हो चुकी है।
2018-19 का ग्रीन बजट भी हवा-हवाई
दिल्ली सरकार ने पिछले दिनों ग्रीन बजट में जिन योजनाओं की घोषणा की, उन्हें लेकर भी ढाई माह में कोई एक्शन प्लान तैयार नहीं किया जा सका है। एक हजार नई स्टैंडर्ड बसें खरीदे जाने की योजना पर हाई कोर्ट सवाल खड़े कर चुका है जबकि एक हजार इलेक्ट्रिक बसों की खरीद के लिए सरकार ने बजट का ही प्रावधान नहीं किया है।
एक हजार करोड़ के हरित कर में से केवल 1.23 करोड़ ही किए जा सके खर्च
दिल्ली की आबोहवा को बेहतर बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में कॉमर्शियल वाहनों पर जो हरित कर लगाया, उससे 'आप' सरकार को अभी तक 961 करोड़ रुपये प्राप्त हो चुके हैं। लेकिन इसमें से खर्च हो पाए हैं महज 1.23 करोड़ रुपये। यानी 'आप' सरकार यहां भी फिसड्डी ही साबित हुई है।
चुनाव में दिल्ली की जनता से किए गए वादे
1. यमुना को पुनर्जीवित करने के लिए एक व्यापक सीवरेज नेटवर्क और नए कार्यात्मक मल-जल उपचार संयत्रों का निर्माण किया जाएगा। साथ ही यमुना में अनुपचारित पानी और औद्योगिक अपशिष्ट के प्रवेश पर सख्ती से रोक लगाई जाएगी।
2. कचरा प्रबंधन के लिए दुनिया भर की तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। घरेलू स्तर पर कचरे की रिसाइक्लिंग को भी प्रोत्साहन दिया जाएगा। सार्वजनिक स्थलों पर कचरा या मलबा गिराए जाने पर भारी जुर्माने का प्रावधान होगा।
3. दिल्ली रिज को अतिक्रमण और वनों की कटाई से संरक्षित किया जाएगा। स्थानीय मोहल्ला सभा के सहयोग से दिल्ली के सभी हिस्सों में वन क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाएगा।
4. शहर को साफ करने के लिए वैक्यूम मशीनों का सहारा लिया जाएगा।
5. सीएनजी और बिजली की तरह कम उत्सर्जन वाले ईंधन के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
6. ईधन में मिलावट करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।
दावों की हकीकत रही कुछ ऐसी
-घोषणा पत्र के वादों में से एक पर भी काम नहीं किया गया।
-सर्दियों में दिल्ली के गैस चैंबर बनने पर हरियाणा और पंजाब को दोषी ठहराया गया।
-20 नए एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन अभी तक ठीक से काम नहीं कर पाए हैं।
-धूल-धक्कड़ वाले स्थानों पर हवाई जहाज से पानी के छिड़काव की योजना बनाई गई, जोकि हवा में ही उड़ गई।
-एंटी स्मॉग गन का ट्रायल किया गया जोकि पहले ही चरण में असफल करार दे दी गई।
-श्मशान घाट में प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को पत्र लिख डाला। इस पर भी 'आप' सरकार को खासी किरकिरी झेलनी पड़ी।
जमीनी स्तर पर नहीं दिखा असर
सीपीसीबी के सदस्य सचिव ए. सुधाकर का कहना है कि पर्यावरण को लेकर दिल्ली सरकार और दिल्ली सरकार नियंत्रित दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) का रवैया आमतौर पर लापरवाह ही बना रहता है। यही वजह है कि भले योजनाएं कितनी बनाई गई हों, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया। पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) भी इसी कारण सरकार से नाराज रहा है। सुप्रीम कोर्ट से भी दिल्ली को बार-बार फटकार पड़ती है।
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