राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने में कार्ययोजना का अभाव : सिसोदिया
-उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिग सम्मेलन में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रखे विचार -सिसोदिया ने कहा कि हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है परीक्षा परक शिक्षा का दबाव खत्म हो -नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे लागू करने की कार्ययोजना का अभाव -मैकाले को दोष देना अब बंद होना चाहिए पिछली दो शिक्षा नीतियों का क्या किया गया इस पर आत्ममंथन हो राज्य ब्यूरोनई दिल्ली उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका पर आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिग सम्मेलन हुआ। इनमें राष्ट्रपति प्रधानमंत्री विभिन्न राज्यों के राज्यपाल उपराज्यपाल और शिक्षामंत्री शामिल हुए।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि इस शिक्षा नीति में कार्य योजना का अभाव है। अगर इसे लागू करने से पूर्व अच्छे से चिंतन-मनन कर ठोस कार्य योजना बनाई जाती तो परिणाम और बेहतर होते और यह नीति महज एक अच्छे विचारों तक ही सीमित न रहती। सिसोदिया सोमवार को उच्चतर शिक्षा के रूपांतरण में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भूमिका पर आयोजित वीडियो कान्फ्रेंसिग में बोल रहे थे। इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विभिन्न राज्यों के राज्यपाल, उपराज्यपाल और शिक्षामंत्री शामिल हुए।
सिसोदिया ने कहा कि आजादी के 73 साल बाद भी हम लॉर्ड मैकाले का नाम लेकर अपनी सरकारों की कमियां छुपाते हैं, जबकि वर्ष 1968 और 1986 में नई शिक्षा नीति बनाई गई। उन नीतियों का कार्यान्वयन नहीं करने की नाकामियों को छुपाने के लिए मैकाले को बहाना बनाया जाता है। आजादी के इतने साल बाद तक हमें अपनी शिक्षा नीति लागू करने से मैकाले ने नहीं रोका है। आज हम संकल्प लें कि अपनी कमियों को छुपाने के लिए मैकाले का नाम अब कोई नहीं लेगा।
उन्होंने कहा कि आज ही एक अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार, हर एक घंटे के भीतर देश में एक छात्र आत्महत्या कर रहा है। हमें सोचना होगा कि शिक्षा नीति में कहां कमी रह गई, जिसके कारण बच्चों पर इतना तनाव और दबाव है।
सिसोदिया ने नई शिक्षा नीति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में वोकेशनल शिक्षा की बात कही गई है। अभी लगभग 80 फीसद डिग्रीधारी युवाओं को रोजगार के योग्य नहीं समझा जाता है। हमें सोचना होगा कि 20 साल की पढ़ाई के बाद भी हमारे बच्चे अगर रोजगार नहीं पा सके तो कमी कहां रह गई। बैचलर इन वोकेशनल की डिग्री को दोयम दर्जे पर रखा जाना उचित नहीं है। अन्य विषयों के स्नातक की तरह इसे भी समान समझा जाए। तभी वोकेशनल डिग्री का लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को व्यवहार में लाना जरूरी है। इसमें जीडीपी का 6 फीसद शिक्षा पर खर्च करने की बात कही गई है। ऐसा पहले भी कहा जाता रहा है। अब इस पर कानून बनाना चाहिए ताकि इसे लागू करना सबकी बाध्यता हो। बॉक्स
तोतारटंत शिक्षा की गुलामी से बाहर निकलना जरूरी
सिसोदिया ने कहा कि तोतारटंत शिक्षा और बोर्ड परीक्षाओं की गुलामी से बाहर निकलना बेहद जरूरी है। नई शिक्षा नीति में छोटे बच्चों की शिक्षा को शामिल करने का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि हमें शिक्षा के जरिये विकसित देशों का मुकाबला करना है। लेकिन, अगर अमेरिका के छोटे बच्चों को प्रशिक्षित शिक्षक पढ़ा रहे हों तो हमारे देश के बच्चों के लिए आंगनबाड़ी सेविका की शिक्षा पर्याप्त नहीं। उन्होंने इसे घातक बताते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति को बेहतर तरीके से लागू करके हमें एक विकसित राष्ट्र बनने का सपना साकार करना है।