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स्मारकों की जगह एएसआइ के खजाने की ही हो रही थी सफाई

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की जिस शाखा को स्मारकों की सफाई करने की जिम्मेदारी दी गई है। यह शाखा स्मारकों की सफाई जगह एएसआइ के खजाने की सफाई कर रही थी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 11:34 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jan 2019 11:34 PM (IST)
स्मारकों की जगह एएसआइ के 
खजाने की ही हो रही थी सफाई
स्मारकों की जगह एएसआइ के खजाने की ही हो रही थी सफाई

वी.के. शुक्ला, नई दिल्ली

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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की जिस शाखा को स्मारकों की सफाई करने की जिम्मेदारी दी गई है, वह स्मारकों की जगह एएसआइ के खजाने की ही सफाई करती जा रही थी। एएसआइ द्वारा शुरू की गई जांच में प्रथम स्तर पर सात करोड़ का घोटाला सामने आया है। यह खेल पिछले कई वर्षो से चल रहा था। मगर, अब पकड़ा गया है। इसे गंभीरता से लेते हुए संस्कृति मंत्रालय ने जांच बैठा दी है। मंत्रालय के निर्देश पर एक टीम बनाई गई है। वहीं एएसआइ ने की शिकायत पर दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने भी मुकदमा दर्ज कर लिया है। दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त (अपराध शाखा) शुभाशीष चौधरी का कहना है अभी किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। यह बड़ा घोटाला लग रहा है। काम कराने के नाम पर फर्जी बिल बनाए जा रहे थे। जल्द ही इस मामले में आरोपितों को पूछताछ के लिए बुलाया जाएगा और आगे की कार्रवाई की जाएगी।

एएसआइ के सूत्रों का कहना है कि यह घपला कभी नहीं खुलता, यदि केंद्र की मोदी सरकार जीएसटी लागू नहीं करती। बताया जा रहा है कि एएसआइ की रसायन शाखा द्वारा श्री जी. इंटरप्राइजेज कंपनी के नाम से वर्षो से सामान खरीदने व मजदूर लगाने के नाम पर बिल बनाए जा रहे थे और उनका भुगतान हो रहा था। मगर, जीएसटी लागू हो जाने के कारण इस कंपनी का एक बिल भुगतान के लिए पे एंड अकांउट विभाग में भेजा गया था। विभाग ने बिल को यह कहते हुए वापस रसायन शाखा में भेज दिया कि इसे ठीक कर भेजें। इस पर जीएसटी नंबर दें। बिल जब रसायन शाखा पहुंचा तो वहां के कर्मचारियों ने पाया कि इस नाम से तो कोई कंपनी का बिल पे एंड अकाउंट शाखा के पास भेजा ही नहीं गया था। उन दिनों बिल बनाकर भेजने वाला रसायन शाखा का बाबू प्रेमप्रकाश अवकाश पर चल रहा था। जांच करने पर पता चला कि श्री जी. इंटरप्राइजेज नाम की एक कंपनी के बिल आ रहे हैं और उनका भुगतान भी हो रहा है। कुल मिलाकर अभी तक इस कंपनी के नाम पर सात करोड़ का भु्गतान हो चुका है, जबकि इस नाम की कोई कंपनी थी ही नहीं। जांच में यह बात सामने आई है कि इस कंपनी का संचालन रसायन शाखा में कार्यरत बाबू प्रेम प्रकाश कर रहा था। प्रेम प्रकाश पिछले तीन माह से मेडिकल लीव लेकर गायब है। रसायन शाखा के उपाधीक्षक रघु प्रकाश ने इस संबंध में मुकदमा दर्ज कराया है। हालांकि भुगतान के लिए बनाए जाने वाले बिलों पर रघु प्रकाश के हस्ताक्षर से मिलते-जुलते हस्ताक्षर भी बताए जा रहे हैं। पुलिस का मानना है कि इतना बड़ा घोटाला कोई एक बाबू नहीं कर सकता है। इसमें कई बड़े अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं। इस मामले की तह तक जाया जाएगा।

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स्मारकों की सफाई का काम देखती है रसायन शाखा

एएसआइ की रसायन शाखा के पास स्मारकों की सफाई का काम है। यह शाखा कैमिकल ट्रीटमेंट द्वारा स्मारकों की सफाई करती है। इसके लिए बड़े स्तर पर रसायन की खरीद होती है और सफाई के लिए बड़ी संख्या में मजदूर भी लगाते जाते हैं। सफाई के नाम पर ही यह घपला हो रहा था।


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