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अस्‍तपतालों की चूक से दिल्‍ली में 35 मरीजों की गई जान, विश्व मरीज सुरक्षा दिवस पर विशेष

मैक्स में जीवित नवजात को मृत घोषित करने का मामला हो या इसी साल फरवरी में सर्जरी में लापरवाही के कारण एम्स में नर्स राजवीर कौर की मौत का, ये तो चिकित्सीय लापरवाही का बस उदाहरण भर है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sat, 09 Dec 2017 09:13 AM (IST)Updated: Sat, 09 Dec 2017 06:58 PM (IST)
अस्‍तपतालों की चूक से दिल्‍ली में 35 मरीजों की गई जान, विश्व मरीज सुरक्षा दिवस पर विशेष
अस्‍तपतालों की चूक से दिल्‍ली में 35 मरीजों की गई जान, विश्व मरीज सुरक्षा दिवस पर विशेष

नई दिल्ली [ रणविजय सिंह ] । दिल्ली एनसीआर में इन दिनों निजी अस्पतालों में इलाज में लापरवाही व मरीजों से इलाज का भारी भरकम खर्च वसूलने का मामला सुर्खियों में है। इस बीच देश-विदेश के अस्पतालों में शनिवार को विश्व मरीज सुरक्षा दिवस मनाया जाएगा, ताकि अस्पतालों व डॉक्टरों को इलाज के दौरान मरीजों की सुरक्षा के प्रति सजग किया जा सके।

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इस विषय की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि मैक्स में जीवित नवजात को मृत घोषित करने का मामला हो या इसी साल फरवरी में सर्जरी में लापरवाही के कारण एम्स में नर्स राजवीर कौर की मौत का, ये तो चिकित्सीय लापरवाही का बस उदाहरण भर है।

पिछले साल विभिन्न अस्पतालों में सर्जरी व इलाज में खामी के चलते दिल्ली में 35 लोगों ने जान गंवाई। दिल्ली सरकार के ही जन्म व मृत्यु पंजीकरण के वार्षिक रिपोर्ट में ही इस बात का जिक्र है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इलाज के दौरान होने वाली चिकित्सीय गलतियों को बड़ी स्वास्थ्य समस्या ठहरा चुका है।

विकसित देशों में भी 10 में से एक मरीज इलाज में खामी से पीडि़त होता है। डब्ल्यूएचओ चिकित्सीय गलतियों को मौत का 10वां बड़ा कारण बता चुका है। इसलिए संगठन द्वारा अस्पतालों को इलाज के दौरान मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश भी जारी किया जाता है।

इसके तहत अस्पताल में किसी भी मरीज की मौत होने पर उसकी समीक्षा करने का भी प्रावधान है। इसके बावजूद इलाज में लापरवाही या छोटी-छोटी गलतियों के कारण देश भर के अस्पतालों में कितने मरीज प्रभावित होते हैं उसका वास्तविक मौजूद नहीं है। फिर भी मृत्यु पंजीकरण की रिपोर्ट सरकार के लिए आंखें खोलने वाली है।

वर्ष 2016 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में सर्जरी व मेडिकल केयर की पेचीदगी से 22 पुरुष व 13 महिलाओं की मौत हुई। इसमें से सात लोग 15-25 वर्ष के व छह मरीज 35-54 वर्ष की उम्र के हैं। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (डीएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय लेखी ने कहा कि विदेशों में सर्जरी के पहले कलर डॉप्लर जांच की जाती है।

जिससे नसों की स्थिति का पता चल जाता है और सर्जरी के दौरान दुर्घटना होने की आंशका कम रहती है। जबकि यहां ऐसा चलन कम है। इसलिए सर्जरी के दौरान गलती से मरीज की कोई नस कटने की आशंका रहती है।

अस्पतालों में संक्रमण बड़ी समस्या

डॉक्टर कहते हैं कि जब मरीजों की सुरक्षा की बात होती है तो इसमें गलत जांच, अस्पतालों में संक्रमण, गलत जगह पर सर्जरी आदि भी शामिल है। यहां के अस्पतालों के ऑपरेशन थियेटर व आइसीयू में संक्रमण बड़ी समस्या है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के अनुसार इलाज में गलती से अमेरिका में करीब 17 लाख लोग प्रभावित होते हैं। भारत में यह आंकड़ा इससे ज्यादा हो सकती है।


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