अब JNU ने 3 प्रोफेसरों पर छत्तीसगढ़ में देशद्रोह का आरोप!
JNU के तीन प्रोफेसर देशद्रोह के आरोप में घिरते नजर आ रहे हैं। इन पर बस्तर में आदिवासियों को नक्सलवादियों की सहायता के लिए भड़काने का आरोप लगा है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के तीन प्रोफेसर देशद्रोह के आरोप में घिरते नजर आ रहे हैं। इन प्रोफेसरों पर बस्तर में आदिवासियों को नक्सलवादियों की सहायता के लिए भड़काने का आरोप लगा है।बताया जा रहा है कि इस मामले की पूरी तफ्तीश के बाद ही आरोपी प्रोफेसरों की गिरफ्तारी होगी। बता दें कि छत्तीसगढ़ पुलिस ने अपनी प्राथमिक जांच में जेएनयू के 3 प्रोफेसर्स को देशद्रोह और छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम के तहत दोषी पाया है।
जेएनयू स्लोगन विवाद मामलें में जानें कब क्या हुआ
प्रोफेसरों को नोटिस होगा जारी
छत्तीसगढ़ पुलिस ने अपराध दर्ज करने से पहले पुलिस ने तीनों प्रोफेसरों को उनके बयान दर्ज करने के लिए नोटिस जारी करने का फैसला किया है। इन तीनों प्रोफेसरों ने 12 से 16 मई के बीच बस्तर के कुछ गांव का दौरा किया था और वहां ग्रामीणों से नक्सलिओं का साथ देने वरना गांव जलाने की धमकी दी थी। ग्रामीणों की शिकायत के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस के आठ अधिकारियों की टीम ने ग्रामीणों के आरोपों की जांच कर रही है।
गुजरात लैब ने खोला राज, JNU में देश विरोधी नारेबाजी के 4 वीडियो असली
ग्रामीणों को दी धमकी
बस्तर एएसपी विजय पाण्डे के मुताबिक जेएनयू प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी के बारे में ग्रामीणों ने बताया कि वो साफतौर पर नक्सलिओं का साथ देने के लिए उन्हें भड़का रहे थे। इनमें में से एक प्रोफेसर ने उनसे कहा कि ना तो केंद्र और ना ही राज्य सरकार उनके लिए कुछ कर सकती है। सिर्फ नक्सली ही उनकी मदद कर सकते हैं। एक प्रोफेसर ने तो उन्हें धमकी भी दी की वे नक्सलिओं के साथ रहें, नहीं तो नक्सली उनके गांव को जला देंगे।
सोशल मीडिया में भी चर्चा
अध्ययन दल के इस दौरे की सोशल मीडिया में जमकर चर्चा शुरू हो गई है। वॉट्सएप ग्रुप के जरिए आरोप लगाए जा रहे हैं कि अध्ययन दल के सदस्यों ने नक्सलियों के समर्थन में गुप्त बैठक की थी। इलाके में कभी सक्रिय रही और अब भंग सामाजिक एकता मंच के सदस्यों ने प्रोफेसरों को नक्सली समर्थक बताते हुए थाने में शिकायत की है। जिसकी जांच भी की जा रही है।
बस्तर पुलिस अधीक्षक राजेंद्र नारायण दास ने कहा है कि सोशल मीडिया में जो चल रहा है, उसकी जांच की जा रही है। गौरतलब है कि जेएनयू के प्रोफेसरों के दल ने 12 से 16 मई तक बस्तर संभाग के अलग-अलग गांवों का दौरा किया था। दल में प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, प्रो. नंदिनी सुंदर के साथ विनीत तिवारी तथा माकपा के राज्य सचिव संजय पराते शामिल थे।
अध्ययन दल की फैक्ट फाइडिंग है कि राज्य सरकार और माओवादियों के बीच युद्घ में आदिवासी पिस रहे हैं। वनाधिकार कानून को दरकिनार कर जगह-जगह पुलिस कैंप खोलने के लिए आदिवासियों की जमीन पर कब्जे की शिकायत मिली है। उनका यह भी आरोप है कि बड़े पैमाने पर फर्जी आत्मसमर्पण, गिरफ्तारियों तथा नक्सलियों द्वारा की जा रही हत्याओं की वजह से आदिवासी पलायन के लिए मजबूर हैं।
ये कहा गया है शिकायत में
अंग्रेजी में हस्ताक्षरयुक्त ग्रामीणों की शिकायत में कहा गया है कि 14 मई को गांव पहुंचे पांच लोगों ने मीटिंग ली जिसमें कहा कि तुम लोग नक्सलियों का साथ दो। यहां पुलिस कैंप मत आने देना। अगर नक्सलियों का साथ नहीं दोगे तो तुम्हें जान माल का खतरा है।
प्रोफेसर नंदिनी ने कहा दिल्ली विवि की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर बस्तर दौरे में ऋ चा केशव के नाम से गई थीं। उन्होंने कहा कि मैं स्वतंत्र नागरिक हूं और कहीं भी जा सकती हूं, लेकिन जब भी बस्तर गई पुलिस काम नहीं करने देती।
मेरी ड्यूटी है कि याचिकाकर्ता के रू प में मैं सुप्रीम कोर्ट को बस्तर के हालत से अवगत कराऊं। कुमाकोलेंग में अच्छी बैठक हुई थी। हम रात भी वहीं रुके थे। पुलिस अब झूठे आरोप लगा रही है, ताकि लोग डर जाएं।