तिहाड़ में 2जी का ताला, कैदी 4जी वाला
मोबाइल नेटवर्क की दुनिया में 4जी के बाद 5जी नेटवर्क की चर्चा शुरू हो चुकी है लेकिन दुनिया की बड़ी जेलों में से एक तिहाड़ जेल परिसर में अब भी 2जी जैमर से ही काम चलाया जा रहा है। कैदियों के पास विभिन्न तरीकों से जेल के भीतर पहुंच रहे 4जी नेटवर्क से लैस मोबाइल के आगे 2जी नेटवर्क वाले जैमर लाचार नजर आते हैं। कैदी जेल प्रशासन की इस मजबूरी को खूब समझते हैं और जमकर मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। यही नहीं कई गिरोहों के सरगना तो जेल के भीतर से मोबाइल फोन के जरिये अपना गिरोह ही संचालित कर रहे हैं। दिल्ली के सभी जेलों में कैदियों के पास से एक वर्ष में करीब 500 मोबाइल बरामद होते हैं। इतनी बड़ी संख्या में जेल परिसर में कैदियों द्वारा मोबाइल का इस्तेमाल एक बड़ा सिरदर्द होने के साथ-साथ जेल की पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर भी बहुत बड़ा सवाल है।
गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली
मोबाइल नेटवर्क की दुनिया में 4जी के बाद 5जी नेटवर्क की चर्चा शुरू हो चुकी है, लेकिन दुनिया की बड़ी जेलों में से एक तिहाड़ जेल परिसर में अब भी 2जी जैमर से ही काम चलाया जा रहा है। कैदियों के पास विभिन्न तरीकों से जेल के भीतर पहुंच रहे 4जी नेटवर्क से लैस मोबाइल के आगे 2जी नेटवर्क वाले जैमर लाचार नजर आते हैं। कैदी जेल प्रशासन की इस मजबूरी को खूब समझते हैं और जमकर मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। यही नहीं, कई गिरोहों के सरगना तो जेल के भीतर से मोबाइल फोन के जरिये अपना गिरोह ही संचालित कर रहे हैं। दिल्ली के सभी जेलों में कैदियों के पास से एक वर्ष में करीब 500 मोबाइल बरामद होते हैं। इतनी बड़ी संख्या में जेल परिसर में कैदियों द्वारा मोबाइल का इस्तेमाल एक बड़ा सिरदर्द होने के साथ-साथ जेल की पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर भी बहुत बड़ा सवाल है। जेल प्रशासन पिछले कई वर्षो से अत्याधुनिक जैमर लगाने की दिशा में प्रयास कर रहा है, लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिल सकी है। संख्या में भी शुरू से ही कम हैं जैमर
करीब एक दशक पहले राष्ट्रमंडल खेल के समय तिहाड़ में सबसे पहले 2जी नेटवर्क की क्षमता वाले जैमर लगाए गए थे। 200 एकड़ में फैले तिहाड़ परिसर के नौ जेलों में 30 जैमर लगाए गए थे। तब भी इसकी संख्या व क्षमता जरूरत के मुताबिक काफी कम थी। कम संख्या में जैमर होने के कारण प्रशासन ने जैमर जेल के भीतरी हिस्से में लगाने के बजाय जेल परिसर के मुख्य दरवाजे के नजदीक लगा दिए थे। सूत्रों का कहना है कि जैमर की रेंज में करीब 30 मीटर का दायरा आता है। वह भी तब, जब आसपास के इलाके में कोई व्यवधान मसलन बिजली का तार, कंक्रीट निर्मित ढांचे जैसी संरचना न हो, अन्यथा ये पांच से दस मीटर तक की रेंज में ही कामयाब होते हैं। जेल सूत्रों का कहना है कि 2जी जैमर कुछ दिनों तक तो सीमित जगहों पर ही सही, लेकिन कामयाब हुए। पर जैसे ही 3जी मोबाइल आए, ये जैमर शोभा की वस्तु बनकर रह गए। हालांकि बाद में कुछ 3जी जैमर की भी खरीद हुई, लेकिन 3जी जैमर बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हुआ और अब 4जी नेटवर्क के जमाने में तो तिहाड़ के जैमर सफेद हाथी बनकर रह गए हैं। कैदियों का नेटवर्क 4जी से भी तेज
जेल सूत्रों का कहना है कि कुछ वर्ष पहले मंडोली जेल परिसर में प्रायोगिक तौर पर एक कंपनी की ओर से जैमर लगाए गए थे। ये 4जी जैमर थे, लेकिन ये एक खास नेटवर्क पर कारगर साबित नहीं हो पाए। इसके बाद कुछ और कपंनियों की ओर से जैमर लगाए गए, लेकिन ऐसा जैमर कोई नहीं मिला जो सभी नेटवर्क पर कारगर साबित होता। ये तमाम बातें कैदियों को पता चल गई, फिर कैदियों ने उस नेटवर्क के सिम कार्ड का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया, जिसकी बातचीत रोक पाने में जैमर कारगर नहीं होता था। अंत में जेल प्रशासन की ओर से यह पूरा मामला तकनीकी विशेषज्ञों को सौंप दिया गया। अतिसंवेदनशील है तिहाड़ जेल
तिहाड़ जेल में कई कैदियों की सुरक्षा काफी संवेदनशील मानी जाती है। यहां कुख्यात गैंगस्टर छोटा राजन, नीरज बवाना हैं, वहीं दूसरी ओर पूर्व लोकसभा सदस्य शहाबुद्दीन भी यहां बंद है। इसके अलावा समय-समय पर यहां विभिन्न मामलों में आरोपित नेता भी कैदी बनकर आते रहते हैं। कई कुख्यात अपराधी जेल से चला रहे हें गैंग
कुछ ही दिन पहले पश्चिमी जिला पुलिस ने बदमाशों के एक ऐसे गिरोह को पकड़ा, जो झपटमारी से हासिल मोबाइल से सिम कार्ड निकालकर इस नंबर का इस्तेमाल वाट्सएप इंस्टॉल करने के लिए करता था। पुलिस के अनुसार, गिरफ्तार आरोपितों ने बताया कि वे तिहाड़ जेल में बंद कुख्यात बदमाश सतेंदर भिडा के लिए काम करते हैं। इसके अलावा भी समय-समय तिहाड़ के कैदियों की ओर से गिरोह संचालन की बात सामने आती रहती है।