Move to Jagran APP

World Family Day 2021: जो कभी अकेले रहते थे वे भी आज कह रहे परिवार है तो जीवन है...

World Family Day 2021 कोरोनाकाल में ऑक्सीजन की कमी जरूर हुई लेकिन परिवार ने जिस प्राणवायु का संचार किया वह अद्भुत है। जब कोई कोरोना संक्रमित के पास फटकना भी नहीं चाहता तब परिवार ने अपने सदस्य को बेहद गंभीरता और प्यार से संभाला।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 15 May 2021 10:48 AM (IST)Updated: Sat, 15 May 2021 10:52 AM (IST)
World Family Day 2021: जो कभी अकेले रहते थे वे भी आज कह रहे परिवार है तो जीवन है...
नतीजा सुखद है, जो कभी अकेले रहते थे वे भी आज कह रहे हैं कि परिवार है तो जीवन है..

नई दिल्ली, यशा माथुर। World Family Day 2021 पहले संध्या खंडेलवाल कोरोना पॉजिटिव हुईं। फिर पति समर्थ खंडेलवाल ने अस्पताल का रुख किया। समर्थ के पॉजिटिव आने और निमोनिया के बढ़ जाने की जांच के बाद डॉक्टर ने उन्हेंं अस्पताल में ही रोक लिया और कोविड-19 के उपचार हेतु भर्ती कर लिया। दूसरे ही दिन उनका ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा। यह तो अच्छा था कि वह समय से अस्पताल आ गए थे और उन्हेंं बेड व ऑक्सीजन मिल गई। अब बारी थी बेटे अहान की। उसे तो पॉजिटिव आना ही था, क्योंकि वही मां व पिताजी को लेकर अस्पताल के चक्कर काट रहा था। अब संध्या व अहान होम आइसोलेशन में अलग-अलग कमरे में रहने लगे और समर्थ अस्पताल में।

loksabha election banner

घर में कोई सहायक स्टाफ नहीं और कोविड-19 पोस्टर चस्पा होने से कोई सामान लेकर आने को तैयार नहीं। ऐसे में उनकी शादीशुदा बेटी ने घर आने और उन्हेंं संभालने के लिए कहा। पहले तो संध्या उसे कोरोना संक्रमण वाले घर में बुलाने से न करती रहीं, लेकिन जब समझा कि देखभाल के लिए कोई नहीं है और वह खुद बुखार और कमजोरी से बेहाल हैं तो उन्होंने उसे आने के लिए हां कह दी। बेटी आकांक्षा ने जब सब्जी, फल और जरूरत के राशन के साथ घर में दस्तक दी तो संध्या की जान में जान आई। बेटी ने एक कमरे को अच्छी तरह सैनिटाइज किया, अपना सामान रखा और लग गई रसोई में। मां व भाई को खाना दिया। पिता के डॉक्टर से सारे हाल लिए और कुछ ही घंटों में सब व्यवस्थित कर दिया।

परिवार की है असीम शक्ति

जब संध्या अपनी बेटी आकांक्षा को कोरोना से संक्रमित घर में आने को मना कर रही थीं तो बेटी का कहना था कि मम्मी हम परिवार हैं। आज हम एक-दूसरे के काम नहीं आएंगे तो कब आएंगे? आकांक्षा भाई और मां को समय पर दवाएं लेने के लिए कहतीं, प्रोटीनयुक्त खाना देतीं, सूप-जूस की फिक्र करतीं। मां से फोन पर घंटों बात करतीं ताकि वह अकेलेपन के कारण तनाव की शिकार न हों। आखिर आकांक्षा की सेवा रंग लाई और दसवें दिन दोनों की रिपोर्ट निगेटिव आ गई। इसी बीच अस्पताल के भी संपर्क में रहीं। पिता से वीडियो कॉल करतीं और डॉक्टर से अपडेट लेतीं। आखिर पिता का भी ऑक्सीजन लेवल स्थिर हुआ। फिर बढ़ने लगा और वह भी स्वस्थ होकर घर आ गए। अब घर में एक परिवार था हंसता-खेलता। परिवार की असीम शक्ति और आकांक्षा की मेहनत ने इस परिवार को कष्टों से जूझने का हौसला दिया।

सकारात्मकता और परिवार

जब घर में कई लोग बीमार पड़ जाते हैं तो परिवार का हौसला और सकारात्मकता ही सही रास्ता दिखाती है। बेंगलुरु के अपोलो अस्पताल की एसोसिएट कंसल्टेंट डॉ. तन्वी सूद के परिवार के लोग एक के बाद एक कोरोना संक्रमण से पीड़ित होते गए। डॉ. तन्वी कहती हैं कि परिवार में हम सब प्रोफेशनल्स हैं। कोई समस्या आती है तो हम उसका हल ढूंढ़ते हैं। एक बहन स्वस्थ थी, उसने ही हम सभी को संभाला। हमारा फोकस मम्मी-पापा की तबीयत पर था। रोज प्लाज्मा डोनर ढूंढ़ना, डॉक्टर से लगातार बात करना। हम उस समय भी मजबूत और पॉजिटिव बने रहे। हमने कभी सोचा ही नहीं कि यह क्या हो गया? क्यों हुआ और हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? हम यही सोच रहे थे कि अगला कदम क्या उठाना है। इस चीज से बाहर कैसे निकलना है। दो सप्ताह तक मम्मी-पापा अस्पताल में रहे। मुझे भी सांस लेने में दिक्कत आ रही थी। बिस्तर पर थी, लेकिन हम सबने फोन पर जुड़े रहकर मैनेज किया। एक घर में रहने के बाद भी हम सब आपस में तभी मिल पाए जब सब निगेटिव हुए। हमारे लिए तो यह एक आशीर्वाद की तरह था कि सब ठीक हो गए। इसलिए इसके आगे कुछ सोचा नहीं। सब कुछ ठीक होने में महीना लग गया। हम सकारात्मक थे, परिवार एकजुट था। इसलिए सही फैसले लेते रहे।

जरूरत संयुक्त परिवार की

कोरोनाकाल से पहले बहुत से लोगों का यह मानना था कि एकल परिवार अच्छा होता है, लेकिन कोरोनाकाल में लोगों को समझ में आया कि परिवार के क्या मायने हैं या परिवार का क्या महत्व है? गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय, नोएडा के मनोविज्ञान एवं मानसिक स्वास्थ्य विभाग ने एक सर्वे के लिए करीब दो हजार लोगों से टेलीफोन पर बातचीत की। इस सर्वे में पता लगा कि कई महीनों से परिवार के साथ घर पर समय बिताने से लोग पहले से अच्छा महसूस कर रहे हैं। मानसिक तनाव, अवसाद जैसी बीमारी से भी लोग उबर रहे हैं। इस सर्वे में करीब सात सौ लोगों ने माना कि वे चाहते हैं कि संयुक्त परिवार में परिजनों के साथ रहें ताकि बेहतर और सुरक्षित महसूस कर सकें। सर्वे में करीब छह सौ लोगों ने माना कि घर में ऑफिस जैसा तनाव महसूस नहीं करते हैं। वे परिवार के साथ समय बिताकर अच्छा महसूस कर रहे हैं। इसका सकारात्मक प्रभाव बच्चों पर भी पड़ा है। यह बदलाव कोरोना महामारी के चलते ही आया है।

डर का आभास तक नहीं हुआ

कोरोना संक्रमित होने पर लोग परिवार की मदद से इससे उबरे तो दूसरी ओर परिवार ने ही घर के बाकी लोगों की अच्छी तरह देखभाल की ताकि परिवार का कोई और सदस्य संक्रमित न होने पाए। एंटरप्रेन्योर नेहा मित्तल कहती हैं, जब मुश्किल समय था तब हम परिवार के साथ थे। इसने ही हमें आगे बढ़ाया। घर में बंद रहने पर हमें मुश्किलें तो आईं, बुजुर्गों और बच्चों को संभालना कठिन था, पर जब सभी को समझ आया कि यह समय मिलकर गुजारना है और ऐसे ही रहना होगा तो जिंदगी आसान हो गई। इसी संदर्भ में होममेकर सुरभि मलिक का कहना है कि हमको कोरोना संक्रमण से बिल्कुल भी डर नहीं लगा, क्योंकि मैं अपने परिवार के साथ थी। वह कहती हैैं कि 15 दिन बहुत आराम से निकले। मुझे आइसोलेशन में भी कोई दिक्कत नहीं हुई। घर में भी कोई पैनिक नहीं हुआ। सभी को विश्वास था कि सब सामान्य हो जाएगा। कोई मुश्किल है नहीं। मुझे बुखार रहा और स्वाद व गंध का एहसास खत्म हो गया था, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। मैंने भाप ली, गरारे किए और आयुर्वेदिक दवाएं लीं। इस दौरान मैंने भगवान बुद्ध के बारे में किताबें पढ़ीं। फिल्में देखीं। इसके साथ ही उन सब लोगों के लिए प्रार्थना की जिनको कोरोना संक्रमण हुआ है। इसलिए मैं बहुत जल्दी ठीक हो गई। परिवार पर मेरा भरोसा और विश्वास जीत गया।

कोरोनाकाल ने प्राथमिकताएं बदलीं: समाजसेवी पलका ग्रोवर ने बताया कि कोरोना संक्रमण ने हमें याद दिलाया है कि परिवार कितना महत्वपूर्ण है। परिवार का साथ होना हमें भावनात्मक और मानसिक रूप से मजबूती देता है। हमारा संयुक्त परिवार है। परिवार में सात लोगों को कोरोना हुआ, जो चार स्वस्थ थे उन्होंने ही सभी को संभाला। अगर हम साथ नहीं होते तो इस मुसीबत से कैसे निकलते? किसी ने रात के दो बजे अस्पताल में ऑक्सीजन और बेड ढूंढ़ा। किसी ने घर में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की व्यवस्था की। किसी ने दवाइयों का काम संभाला। किसी ने खाने-पीने का। परिवार के लोगों को अलग-अलग अस्पतालों में जगह मिली जिससे काफी भागदौड़ रही। पहले लोग घर के बुजुर्गों की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते थे, पर अब वे ही परिवार के साथ रहना चाहते हैं। कोरोनाकाल ने हमारे जीवन की प्राथमिकताएं बदल डालीं।

कोरोनाकाल में बांडिंग हुई मजबूत: ओकवुड डोर्स एंड इंटीरियो की एचआर प्रोफेशनल कशिश पराशर ने बताया कि कोविड-19 ऐसी बीमारी है जिसमें केवल परिवार के लोग ही पास आएंगे, साथ आएंगे। मेरी होने वाली ससुराल में सासू मां को कोविड हुआ तो परिवार के लोग ही ऑक्सीजन वगैरह का इंतजाम कर उनकी सेवा कर रहे हैं। मेरे पति कहते हैं कि मुझे संक्रमण हो गया तो क्या होगा? कम से कम मां तो बचेंगी। मेरे भाई को भी कोविड-19 हुआ है, हम परिवार के सभी सदस्य उसकी देखभाल कर रहे हैं और खुद को भी बचा रहे हैं।

कोरोना के समय में परिवार के अलावा कोई भी अपनी जान खतरे में नहीं डालेगा। हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग दंपती रहते हैं। उनके दोनों बेटे अमेरिका में हैं। अब दोनों को कोरोना हुआ है, लेकिन उन्हेंं देखने वाला कोई नहीं है और न ही वे किसी से अधिकारस्वरूप कुछ कह सकते हैं। पड़ोसी ही उनको देख रहे हैं, खाना भिजवा रहे हैं। बहुत मुश्किल में हैं दोनों। जिनके साथ परिवार नहीं है वे परिवार की जरूरत महसूस कर रहे हैं। अगर कोई एकल परिवार में भी है तो उनकी मदद रिश्तेदार ही कर रहे हैं। कोरोना में सबसे बड़ी समस्या अकेलापन है। संयुक्त परिवार ही इसका समाधान है। कोरोना ने परिवार की बांडिंग को मजबूत किया है।

कोरोना से जीती जंग परिवार के संग: होममेकर कविता नारंग ने बताया कि परिवार के साथ के कारण ही मैं कोरोना संक्रमण से लड़ पाई। अगर अस्पताल में जाती तो डरती रहती। होम आइसोलेशन में रहकर मैंने परिवार की हिम्मत के साथ हौसला बनाए रखा। पति ने केयर की, युवा बच्चों ने समय पर दवाइयां देने का भार संभाला। मेरे खानपान का ध्यान रखा। ससुराल के अन्य लोग समय पर खाना भेजते रहे। अगर परिवार साथ नहीं होता तो मैं भी नहीं होती।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.