International Mother Language Day 2021: अपनी मातृभाषा में बच्चे रोचक कहानियां सुनाकर अन्य बच्चों को कर रहे प्रेरित
International Mother Language Day 2021 पैरेंट्स अक्सर इस बात से परेशान होते हैं कि बच्चों को कैसे क्रिएटिव तरीके से व्यस्त रखा जाए। ऐसे में स्टोरीटेलिंग यानी कहानी सुनाना वह माध्यम बनकर उभरा है जिससे बच्चों को न सिर्फ व्यस्त रखा जा सकता है।
नई दिल्ली, अंशु सिंह। International Mother Language Day 2021 माना जाता है कि एक बच्चा जब कोई कहानी सुनाता है, तो इससे उसकी अभिव्यक्ति क्षमता भी मजबूत होती है। वह अपने विचारों को अच्छी तरह से पेश कर दूसरों पर प्रभाव डाल सकता है। अच्छी बात यह है कि तमाम बच्चे-किशोर अंग्रेजी व हिंदी के अलावा अपनी मातृभाषा में भी किस्से-कहानियां सुनाकर अन्य बच्चों को प्रेरित रहे हैं। इसके लिए उन्हें अब कुछ प्लेटफॉर्म भी मिलने लगे हैं...
21 फरवरी, 1952 को बांग्लादेश की ढाका यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की भाषायी नीति के विरोध में बड़ा आंदोलन किया था। आंदोलनकारी बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देने की मांग कर रहे थे, अंतत: जिसे सरकार को मानना पड़ा था। इस आंदोलन में अनेक युवा शहीद हो गए थे। उन शहीद युवाओं को श्रद्धांजलि देने के लिए ही यूनेस्को ने 1999 में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की। दरअसल, विश्व में भाषायी एवं सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हर वर्ष 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था।
भारत के मणिपुर, असम, त्रिपुरा के अलावा पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश एवं म्यांमार के कुछ भागों में बोली जाने वाली ‘बिष्णुप्रिया मणिपुरी’ भाषा को आर्य कुल की भाषा माना जाता है, जो मराठी, बंगाली, उड़िया, असमिया एवं वैदिक संस्कृत से मिलती-जुलती है। करीब दो सौ साल पहले मणिपुर में यह भाषा एक खास समुदाय के बीच अस्तित्व में थी, लेकिन बाद के वर्षों में उन लोगों की संख्या कम होने से यह विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई। ऐसे में ‘यंग इंडियन लैंग्वेज क्रूसेडर’ के रूप में त्रिपुरा की अलीना सिन्हा कहानियों के जरिये इस भाषा को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं।
अलीना कहती हैं, ‘मैं छोटी-सी कोशिश कर रही हूं। अच्छा लगता है जब मातृभाषा में अपने पैरेंट्स से बात करती हूं या दूसरों को कहानियां सुनाती हूं।’ तमिलनाडु की हर्शिता तमिल में, जबकि कोलकाता की नौ वर्षीय तीस्ता चौधरी भी अपनी मातृभाषा बंगाली में कहानियां सुना रही हैं। ऐसे दर्जनों बच्चों को ‘बिग बड्डी वर्ल्ड’ द्वारा हाल ही में आयोजित ‘भारतीय भाषा आर्ट, आर्किटेक्चर एवं कहानी’ (आइबीएके) प्रोजेक्ट के ‘यंग इंडियन लैंग्वेज क्रूसेडर’ अभियान के तहत अपनी मातृभाषा में कहानियां सुनाने का अवसर मिला। तीन महीने तक चले इस अभियान में हर महीने देश के करीब 24 बच्चों ने अपने-अपने प्रांतों के वीर पुरुषों, पर्व-त्योहार, स्थानीय संस्कृति, विरासत आदि से जुड़ी हुई कहानियां सुनाईं, वह भी अपनी मातृभाषा में। इस दौरान कुल 36 भाषाओं में 66 से अधिक कहानियां सुनाई गईं।
मंदिरों के शहर की रोचक कहानियां: गुवाहाटी की कृष्णा नारायण को भी जब एक दिन उनकी मां ने मातृभाषा में होने वाली स्टोरीटेलिंग अभियान के बारे में बताया, तो उन्हें वह काफी पसंद आया। वह बताती हैं, ‘मैं मूल रूप से ओडिशा से हूं। उड़िया भाषा बहुत पसंद है। लेकिन गुवाहाटी में रहने के कारण अपनी बोली कम ही सुनने को मिलती है। घर में ही माता-पिता से थोड़ी बातचीत हो जाती है। मुझे कहानियां, किताबें पढ़ने का शौक रहा है। अपने राज्य के बारे में जानने की इच्छा रहती है। इसलिए जब मातृभाषा में स्टोरीटेलिंग का मौका मिला, तो मैंने उसके लिए हां कर दिया।’
कृष्णा के अनुसार, उन्हें हर महीने अलग-अलग थीम पर कहानियां सुनानी होती थीं, जिसके लिए पढ़ना एवं रिसर्च करना जरूरी था। वह कहती हैं, ‘जैसा कि सभी जानते हैं कि भुवनेश्वर को ‘मंदिरों का शहर’ कहा जाता है। वहां का ‘केदार गोरी’ मंदिर भी काफी लोकप्रिय है, जिसके बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं। मैंने उससे जुड़े रोचक तथ्यों को कहानी के रूप में उड़िया में रिकॉर्ड किया, जिसे काफी पसंद किया गया।’ सातवीं कक्षा की छात्रा कृष्णा मानती हैं कि मातृभाषा का दर्जा सबसे ऊपर होता है, क्योंकि वह कहीं बाहर से नहीं, बल्कि अपने परिवार, माता-पिता से ही सीखी जाती है। इसलिए उसमें कुछ समझना या समझाना भी अपेक्षाकृत आसान होता है।
वैष्णवी ने अपनाया मैथिली को: छठी कक्षा में पढ़ने वाली बिहार के मधुबनी की वैष्णवी वैसे तो अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ती हैं, लेकिन अपनी मातृभाषा मैथिली से गहरा लगाव है इनका। विशेषकर मैथिली लोक गीत-संगीत में गहरी रुचि है, गाती भी हैं वह। कोरोना काल में उन्होंने कुछ नया करने के लिहाज से स्टोरीटेलिंग करनी शुरू की। वह कहती हैं, ‘पहले मैं अंग्रेजी में ही कहानियां सुनाया करती थी। मैथिली ज्यादा नहीं आती थी। इसलिए शुरू में थोड़ी दिक्कत जरूर हुई। लेकिन ‘प्रोजेक्ट आइबीएके’ से जुड़ने के बाद मैंने मैथिली में ही मिथिलांचल के सुप्रसिद्ध गोनू झा की कहानियां, यहां मनाए जाने वाले छठ पर्व से जुड़े किस्से सुनाए। यह एक बिल्कुल नया अनुभव था।’
वैष्णवी की मानें, तो अभियान में शामिल होने से कई प्रकार के फायदे हुए। जैसे देश के अन्य राज्यों में बोली जाने वाली भाषाओं की कहानियां खुद बच्चों से सुनने को मिलीं। किसी मंच पर प्रस्तुति को लेकर मन के अंदर जो डर रहता था, वह दूर हो गया। एक आत्मविश्वास आया है। वह कहती हैं,‘मैं अब उन दोस्तों को भी अपनी मातृभाषा जानने के लिए प्रेरित कर पा रही हूं, जो इससे भागते थे। उसे बोलने से शर्माते या कतराते थे।’
पंजाबी से हुआ प्यार : दोस्तो, नि:संदेह बच्चे और उनके अभिभावक आज भी अंग्रेजी को प्रगति का माध्यम मानते हैं। विदेशी भाषा सीखने पर भी पूरा जोर दिया जाता है, लेकिन अपनी मातृभाषा को लेकर वह उत्साह नहीं होता। लेकिन अच्छी बात यह है कि कुछ अभियानों से बच्चों में अपनी मातृभाषा को जानने को लेकर जिज्ञासा बढ़ रही है। उनमें उत्साह देखा जा रहा है। जैसे पंजाब के मोहाली की जैपलीन कौर को ही लें। एक समय था, जब उन्हें पंजाबी भाषा का कुछ भी ज्ञान नहीं था। वह अंग्रेजी में ही कहानियां पढ़ा या सुना करती थीं। लेकिन आज छठी कक्षा की छात्रा जैपलीन पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी मातृभाषा पंजाबी में कहानियां सुना रही हैं। उनका यू-ट्यूब चैनल भी है, जो अब काफी लोकप्रिय हो चुका है।
बताती हैं जैपलीन, ‘मेरी मां को पंजाबी नहीं आती थी। इसलिए घर में हम हिंदी में ही बात किया करते थे। मैंने चौथी कक्षा से पंजाबी बोलना सीखना शुरू किया। इसमें दादा-दादी और स्कूल के टीचर्स ने मदद की। ‘यंग इंडियन लैंग्वेज क्रूसेडर्स’ अभियान में भाग लेकर भी बहुत कुछ सीखने को मिला। अलग-अलग भाषाओं के अलावा पंजाब की संस्कृति एवं विरासत, राज्य के प्रमुख त्योहारों आदि की जानकारी मिली। इसके साथ ही मैंने जाना कि टीम वर्क क्या होता है? टीम बिल्डिंग क्या होती है?’ जैपलीन का कहना है कि पहले उन्हें लगता था कि जो बच्चे अंग्रेजी में बात करते हैं, वही सबसे अच्छे होते हैं जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। अपनी मातृभाषा में बात करने वाले भी किसी से कम नहीं होते। इसमें किसी को कोई शर्म नहीं महसूस होना चाहिए।
बच्चों के लिए शुरू किया अभियान : बिग बड्डी वर्ल्ड संस्थापक के लोपामुद्रा मोहंती ने बताया कि मैंने 2019 में ‘इंडियन लैंग्वेज स्टोरीटेलिंग मंडाला’ नाम से एक प्रोजेक्ट शुरू किया था, जिसमें क्षेत्रीय एवं अलग-अलग मातृभाषाओं में कहानियां सुनाई जाती थीं। फिर हमने बच्चों के लिए भी कार्यक्रम किए, जिसे नाम दिया गया ‘माई पैल’ यानी मेरे मदर-फादर की लैंग्वेज। वहीं, जब कोरोना काल में स्थितियां बदलीं,तो हमने भारतीय भाषा, आर्ट, आर्किटेक्चर एवं कहानी (आइबीएके) प्रोजेक्ट के तहत बच्चों के लिए ऑनलाइन ‘यंग इंडियन लैंग्वेज क्रूसेडर’ अभियान लॉन्च किया।
इसमें देश के अलग-अलग हिस्सों के बच्चों ने अपनी मातृभाषा में कहानियां रिकॉर्ड कर हमें भेजीं। चुनिंदा कहानियों को हमनेअपने यूट्यूब चैनल-बिग बड्डी वर्ल्ड पर अपलोड किया। दरअसल, हमारा मुख्य उद्देश्य यही था कि बच्चे अपनी मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा एवं अपनी स्थानीय संस्कृति को जानें। उसके बारे में रिसर्च करें, ताकि इन भाषाओं के प्रति जो भी हीन भावना या जागरूकता की कमी है, उसे दूर किया जा सके। शुरू में पैरेंट्स को समझाने में थोड़ी दिक्कत आयी, लेकिन फिर उनका पूरा सपोर्ट मिलने लगा।
‘मापा’ स्टोरीटेलिंग एप से रिकॉर्डिंग: अगर कोई बच्चा अपनी आवाज में कहानी रिकॉर्ड करना चाहे, तो वह मापा एप के जरिये ऐसा कर सकता है। इसकी मदद से बच्चे न सिर्फ कहानी रिकॉर्ड कर सकते हैं, बल्कि दूसरे बच्चों की कहानियां भी सुन सकते हैं। बच्चे अपने पैरेंट्स के साथ भी कहानियां रिकॉर्ड कर सकते हैं।