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Delhi Kisan Protest 2011 vs 1988: 32 साल पहले का इस आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने लिया था कौन सा बड़ा फैसला

Delhi Kisan Protest 2011 vs 1988 गणतंत्र दिवस समारोह के दिन मंगलवार को उपद्रवी किसानों की शर्मसार करने वाली करतूत ने 1988 में हुए किसान आंदोलन की याद दिला दी है। जिसके बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने ऐसा फैसला लिया कि बोट क्लब पर धरना-प्रदर्शन इतिहास की बात हो गई।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 26 Jan 2021 06:45 PM (IST)Updated: Wed, 27 Jan 2021 12:35 PM (IST)
Delhi Kisan Protest 2011 vs 1988: 32 साल पहले का इस आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने लिया था कौन सा बड़ा फैसला
जहां नजर दौड़ाई जाती सिर्फ किसान ही किसान नजर आते थे।

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को रद कराने की मांग को लेकर पिछले 2 महीने से भी अधिक समय से चल रहा किसानों का धरना-प्रदर्शन 26 जनवरी के दिन पटरी से उतर गया। गणतंत्र दिवस के दिन मंगलवार सुबह से लेकर देर शाम तक समूची दिल्ली में किसानों के हिंसक प्रदर्शनों के चलते अराजक स्थिति बनी रही। इस दौरान 2 किसानों की मौत भी हो गई। हालात यह बन गए कि उपद्रवी किसानों ने लाल किला की प्राचीर पर शर्मनाक हरकत करते हुए अपना झंडा तक फहरा दिया। इसी के साथ वह लाल किला परिसर में भी घुस गए और फिर बड़ी मुश्किल से सुरक्षा बलों ने वहां से निकाला। वहीं, गणतंत्र दिवस समारोह के दिन मंगलवार को उपद्रवी किसानों की शर्मसार करने वाली करतूत ने 1988 में हुए किसान आंदोलन की याद दिला दी है। जिसके बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने ऐसा फैसला लिया कि बोट क्लब पर धरना-प्रदर्शन इतिहास की बात हो गई। उस दौर के आंदोलन को जानने वालों का यह कहना है कि उन्होंने 1988 में दिल्ली को तकरीबन बंधक बनते देखा था, लेकिन तब हिंसा नहीं हुई थी।

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1988 में किसानों के प्रदर्शन से पस्त हो गई थी दिल्ली

दरअसल, विभिन्न मांगों को लेकर 32 साल पहले दिल्ली में 1988 में एक विशाल किसान रैली का आयोजन हुआ था। इस रैली ने समूची दिल्ली को ठप कर दिया था। हुआ यूं कि दिल्ली के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और हरियाणा समेत कई राज्यों के हजारों किसानों ने राजधानी में एक बड़ा धरना प्रदर्शन किया था। उस दौरान किसान बैलगाड़ी से लेकर कार तक से आए थे। यह धरना-प्रदर्शन महीनों चला था। इसके चलते न केवल स्थानीय दिल्ली वाले, बल्कि प्रशासनिक अमला भी पस्त हो गया था। किसानों की मौजूदगी से इंडिया गेट, विजय चौक और बोट क्लब भर गया था।

1988 में हजारों की संख्या में यूपी-हरियाणा से किसान बसों, बैल गाड़ियों और ट्रैक्टरों के साथ अन्य वाहनों में भरकर दिल्ली आए थे। उनके इस विशाल आंदोलन के बाद ही तत्कालीन केंद्र सरकार यहां विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने पर विचार करने लगी थी, क्योंकि इससे दिल्ली वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इसके बाद साल आखिरकार 1993 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने कड़ा फैसला लेते हुए यहां प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी। इसके बाद अब दिल्ली के जंतर मंतर पर यह प्रदर्शन होता है।

महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में महीनों चला था आंदोलन

बता दें कि यह किसान आंदोलन भारतीय किसान यूनियन के दिग्गज नेता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में महीनों चला था, जिसके कारण पूरी दिल्ली ठप सी हो गई थी। यूपी और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान बसों, बैल गाड़ियों और ट्रैक्टरों में भरकर दिल्ली में आए थे। उनके इस विशाल आंदोलन के बाद ही सरकार यहां विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने पर विचार करने लगी थी। आखिरकार 1993 में केंद्र सरकार ने बोट क्लब पर प्रदर्शन की रोक लगा दी।

महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व वाली रैली को लेकर दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त नीरज कुमार का कहना है कि किसानों की भीड़ देखकर लगा  था कि बोट क्लब पर किसानों की सुनामी सी आ गई हो। किसानों पर नियंत्रण बिल्कुल भी आसान नहीं था। 

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