महानगरों में आधे से ज्यादा युवकों व 65 फीसद युवतियों को मधुमेह का खतरा
यूके (युनाइटेट किंग्डम) अमेरिका व एम्स के डॉक्टरों द्वारा मिलकर किए गए एक अध्ययन में यह बात समाने आई है कि देश में 20 साल की उम्र वाले 55.5 फीसद युवकों व करीब 65 फीसद युवतियों मधुमेह का खतरा है। उन्हें आगे चलकर यह बीमारी हो सकती है।
नई दिल्ली, रणविजय सिंह। महानगरों में लोगों की खराब जीवनशैली, खानपान में फास्ट फूड के बढ़ते इस्तेमाल से युवाओं में मधुमेह होने का खतरा अधिक है। यूके (युनाइटेट किंग्डम), अमेरिका व एम्स के डॉक्टरों द्वारा मिलकर किए गए एक अध्ययन में यह बात समाने आई है कि देश में 20 साल की उम्र वाले 55.5 फीसद युवकों व करीब 65 फीसद युवतियों मधुमेह का खतरा है। उन्हें आगे चलकर यह बीमारी हो सकती है। मोटापे से पीड़ित लोगों में यह जोखिम और भी ज्यादा है। इससे देश में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ सकती है। यह अध्ययन हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल डायबेटोलॉजिया में प्रकाशित हुआ है।
यूके, अमेरिका व एम्स के डॉक्टरों द्वारा किए गए अध्ययन में सामने आई बात
इस अध्ययन में यूके के विशेषज्ञ ने गणितीय आधार पर यह आंकलन किया है कि भारत के महानगरों में मधुमेह पीड़ितों की संख्या बढ़ने से देश में वर्ष 2045 तक इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या 13.4 करोड़ पहुंच सकती है। जो मौजूदा समय में करीब 7.7 करोड़ है। इस अध्ययन में शामिल एम्स के इंडोक्रिनोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. निखिल टंडल ने कहा कि अध्ययन में पाया गया कि मोटापे से पीड़ित 20 साल की उम्र के लोगों में मधुमेह होने का खतरा 85 फीसद है। जिसमें पुरुषों को यह जोखिम 86.9 फीसद व महिलाओं को 86 फीसद है। हालांकि उम्र बढ़ने के साथ मधुमेह होने जाेखिम कम होता जाता है।
वर्ष 2045 तक देश में मधुमेह के मरीजों की संख्या हो सकती है 13.4 करोड़
40 साल की उम्र वाले महिलाओं को मधुमेह होने का खतरा 59 फीसद व पुरुषों को 47 फीसद है। वहीं 60 साल के उम्र वाले बुजुर्ग महिलाओं को मधुमेह होने का खतरा 47 फीसद व पुरुषों को 27 फीसद है। जबकि पतले व कम वजन वाले लोगों में मधुमेह होने की आशंका कम रहती है। पतले व कम वजन वाले युवा अपने जीवन का करीब 85 फीसद हिस्सा मधुमेह रहित गुजार सकते हैं।
डॉ. निखिल टंडल ने कहा कि देश में समस्या यह है कि मधुमेह से पीड़ित 50 फीसद लोगों को ही बीमारी के बारे में जानकारी होती है। उनमें से 50 फीसद लोग ही इलाज कराते हैं और इलाज कराने वालों में से सिर्फ 50 फीसद मरीजों का मधुमेह नियंत्रित रहता है। इस तरह मधुमेह से पीड़ित करीब 12.50 फीसद लोग ही मधुमेह नियंत्रित रख पाते हैं। इस स्थिति में सुधार की जरूरत है और यह कोशिश होनी चाहिए कि स्क्रीनिंग के जरिये 90 फीसद मधुमेह पीड़ित मरीजों को उनकी बीमारी के बारे में पता चल सके। ताकि कम से कम 70 फीसद मधुमेह पीड़ितों की बीमारी नियंत्रित रह सके।
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