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मानसून में बदलाव को लेकर सामने आई कई चौंकाने वालीं बातें, सोमालिया से जुड़ा लिंक

मौसम (weather) के बदलते स्वरूप के बीच न केवल साल दर साल मानसून देश में देरी से दस्तक दे रहा है बल्कि मानसून के पूर्व और बाद की बारिश भी कम होने लगी है।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 18 Sep 2019 09:17 AM (IST)Updated: Thu, 19 Sep 2019 06:31 AM (IST)
मानसून में बदलाव को लेकर सामने आई कई चौंकाने वालीं बातें, सोमालिया से जुड़ा लिंक
मानसून में बदलाव को लेकर सामने आई कई चौंकाने वालीं बातें, सोमालिया से जुड़ा लिंक

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। मौसम (weather) के बदलते स्वरूप के बीच न केवल साल दर साल मानसून देश में देरी से दस्तक दे रहा है, बल्कि मानसून के पूर्व और बाद की बारिश भी कम होने लगी है। मानसून के पैटर्न में आ रहे इस बदलाव पर गौर करें तो बहुत से चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। अरब सागर से मानसून उठने की शुरुआती स्थिति ही बिगड़ने लगी है। वृहद परिप्रेक्ष्य में समस्या की जड़ जलवायु परिवर्तन (Climate change) ही पता चल रही है।

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भारतीय मौसम विभाग (India Meteorological Department) से जुड़े विज्ञानियों के अनुसार मानसून के समय पर पहुंचने के लिए आवश्यक है कि दक्षिणी गोलार्ध में उच्च दबाव का क्षेत्र बड़े दायरे और प्रभाव वाला हो। साथ ही सोमालिया कोस्ट से 30 से 35 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली कम दबाव वाली हवाएं भारत की ओर समय से आएं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से ऐसा नहीं हो पा रहा। यही वजह है कि मानसून की दस्तक और विदाई दोनों देरी से होने लगी है।

जलवायु परिवर्तन से पूरी तरह गर्म नहीं हो पा रही धरती

मौसम विज्ञानी आरके दत्ता सरल शब्दों में बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के ही कारण धरती पूरी तरह से गर्म नहीं हाे पा रही और आसमान में हवा के निम्न दबाव का क्षेत्र भी नहीं बन पाता। दूसरी तरफ समुद्र में हवाओं का रुख लगातार गर्म हो रहा है। इसी से अलनीनो प्रभावी होता है और अच्छी वर्षा में बाधक बनता है। आरके दत्ता के मुताबिक, जब धरती गर्म होती है और समुद्र से ठंडी हवाएं आती हैं तो आसमान में हवा के निम्न दबाव का क्षेत्र बनता है। हवा का दबाव पाकर बादल बनते भी हैं और अच्छे से बरसते भी हैं।

गर्मी का दायरा बढ़ा, घटा सर्दी का समय

प्रादेशिक मौसम विज्ञान विभाग के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन से मौसम चक्र बहुत हद तक प्रभावित हो रहा है। गर्मी का दायरा बढ़ रहा है, जबकि सर्दी व वर्षा ऋतु का घट रहा है। देश में दक्षिणी पश्चिमी मानसून केवल देरी से ही नहीं आ रहा अपितु बारिश के दिन भी कम हो गए हैं। जून से सितंबर के बीच पहले जहां 80 से 100 दिन तक बारिश होती थी वहीं अब यह आंकड़ा बमुश्किल 40 से 60 दिन का रह गया है।

हिंद महासागर रहता है ठंडा

दूसरी तरफ भारतीय मानसून का असर सिर्फ भारत पर ही नहीं बल्कि इंडोनेशिया एवं ऑस्ट्रेलिया पर भी पड़ता है। दरअसल भारतीय मानसून अल निनो सदर्न ऑस्लिेशन (एन्सो) से सीधा जुड़ा हुआ है। गर्मियों के महीने में भारत के ज्यादातर हिस्सों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के ऊपर चला जाता है, जबकि हिंद महासागर का पानी ठंडा रहता है। तापमान में इसी परिवर्तन की वजह से गर्म हवाएं हिंद महासागर की तरफ से बहने लगती हैं जिसकी वजह से कुछ इलाकों में बाढ़ आ जाती है। वहीं कुछ इलाके बारिश से मरहूम रह जाते हैं।

जलवायु परिवर्तन से मौसम चक्र प्रभावित

डॉ. एम महापात्रा (महानिदेशक, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग) की मानें तो जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप सर्दी, गर्मी और बारिश के मौसम की अवधि में भी बदलाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है। इसके कारण पिछले कुछ सालों से सर्दी और गर्मी का असर आमतौर पर देर से महसूस होना शुरू हो रहा है और यह असर अधिक समय तक रहता है। इसका सीधा प्रभाव मानसून की गतिविधियों पर भी पड़ा है।

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