COP-14: विशेषज्ञ बोले- बढ़ते तापमान से ग्लेशियरों का भी हो रहा मरुस्थलीकरण
COP-14 ग्लेशियरों का पिघलने और मरुस्थल में तब्दील होने से बचाने के लिए चैकडेम (दीवार) बनाने होंगे। ग्लेशियरों के निचले हिस्से में दीवार बनाई जाए और इसमें छोटे-छोटे छेद बनाए जाएं।
ग्रेटर नोएडा (चंद्रशेखर वर्मा)। COP-14: बढ़ते तापमान का असर केवल जलवायु पर ही नहीं पड़ रहा है, बल्कि इसका असर ग्लेशियरों पर भी हो रहा है। ग्लेशियरों से पिघलने वाली बर्फ के बाद बची हुई जमीन मरुस्थलीकरण की चपेट में आ रही है। यह एक गंभीर समस्या है। इसका जल्द निराकरण नहीं हुआ तो हिमालय क्षेत्र का बहुत बड़ा हिस्सा ठंडे मरुस्थल में तब्दील हो जाएगा। यह बातें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रामनाथन व भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के जोधपुर केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. विनोद मैना ने इंडिया एक्सपो मार्ट में चल रहे कॉप-14 में दैनिक जागरण से कहीं।
वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान चिंता का विषय
उन्होंने बताया कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान चिंता का विषय है। इसकी वजह से कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। वहीं, इसका असर ग्लेशियरों पर भी पड़ रहा है। ग्लेशियरों में बर्फ अधिक मात्रा में पिघलने से मरुस्थलीकरण को बढ़ावा मिल रहा है। उपजाऊ जमीन की खासियत उसमें अन्य खनिजों के साथ कार्बन का होना भी होता है। ग्लेशियरों की ठोस बर्फ कार्बन को जमीन में ही संरक्षित करती है।
पिघल रहे ग्लेशियर
तापमान में बढ़ोतरी से ग्लेशियर पिघल रहे है। इससे वहां संरक्षित कार्बन नष्ट हो जाता है। इसके बाद वह जमीन किसी काम की नहीं रहती। वह मरुस्थल में तब्दील हो जाती है। यह खासकर भारत में काफी चिंता का विषय है। यहां के हिमालय क्षेत्र में स्थित ग्लेशियर मरुस्थलीकरण का शिकार हो रहे हैं।
चैकडेम के जरिये की जा सकती है रोकथाम
उन्होंने बताया कि ग्लेशियरों का पिघलने और मरुस्थल में तब्दील होने से बचाने के लिए चैकडेम (दीवार) बनाने होंगे। ग्लेशियरों के निचले हिस्से में दीवार बनाई जाए और इसमें छोटे-छोटे छेद बनाए जाएं। इससे बर्फ पिघलने से बचेगी। गर्मी में छेदों को खोल दिया जाए, जिससे पानी की निकासी हो सके।
बुग्यालों पर पड़ रहा है असर
मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले बुग्यालों (एक तरह के घास के मैदान) पर भी भूक्षरण का असर पड़ रहा है। इंसान इन जगहों पर भी दोहन करने लगा है। पशुओं को यहां चारे के लिए छोड़ दिया जाता है। इससे यहां के खास तरह के पौधे दुर्लभ होते जा रहे हैं, जो मरुस्थलीकरण की बड़ी वजह बन रहे है।