Move to Jagran APP

गणपति बप्पा मोरया...जानिए मोरया का अर्थ क्या है और यह शब्द कैसे बप्पा के साथ जुड़ा

ganesh chaturthi 2019 सोशल मीडिया पर इस पर चर्चा हो रही है कि मोरया का अर्थ क्या है। यह शब्द कहां से आया कैसे बप्पा के साथ जुड़ा।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 08 Sep 2019 07:29 PM (IST)Updated: Sun, 08 Sep 2019 07:29 PM (IST)
गणपति बप्पा मोरया...जानिए मोरया का अर्थ क्या है और यह शब्द कैसे बप्पा के साथ जुड़ा
गणपति बप्पा मोरया...जानिए मोरया का अर्थ क्या है और यह शब्द कैसे बप्पा के साथ जुड़ा

नई दिल्ली [सुधीर कुमार पांडेय]। देश में इस समय गणेश उत्सव की धूम है। लोग विघ्नविनाशक, मंगलमूर्ति की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। उन्हें मोदक चढ़ा रहे हैं। पंडालों में गणपति बप्पा मोरया का उद्घोष भी सुनाई देता है। वहीं सोशल मीडिया पर भी मोरया, गणपति बप्पा मोरया हैशटैग से लोग अष्टविनायक के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट कर रहे हैं।

loksabha election banner

सोशल मीडिया पर इस पर भी चर्चा हो रही है कि मोरया का अर्थ क्या है। यह शब्द कहां से आया, कैसे बप्पा के साथ जुड़ा। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी प्रेमी और हिंदी अनुवाद में रुचि रखने वाले विजय नगरकर ट्विटर पर इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं। इसके लिए उन्होंने लेखक अजित वडनरेकर के ब्लॉग शब्दों का सफर, सुरेश चिपलुनकर से मिली जानकारी को आधार बनाया। मोरया को लेकर उन्होंने विस्तार से जानकारी दी।

विजय नगरकर ने दी ये जानकारी
विजय नगरकर ट्वीट करते हैं कि गणपति बप्पा मोरया यह उदघोष बड़ा ही सर्वसुलभ एवं जन-प्रचलित है... लेकिन अधिकांश लोगों को इसमें मोरया (विकृत होकर-मोरिया, मोर्या) शब्द का अर्थ मालूम नहीं है। मोरया गोसावी चौदहवीं शताब्दी के संत थे। वे भगवान गणेश के एकनिष्ठ एवं अनन्य भक्त थे। गोसावी का जन्म पुणे के पास मोरगांव में हुआ था। उन्होंने मोरगांव में ही तपस्या करके मोरेश्वर (भगवान गणेश) की पूजा की थी।

मोरया गोसावी के पुत्र चिंतामणि को भी गणेश का अवतार माना जाता है। मोरया गोसावी ने संजीवन समाधि ग्रहण की... चिंचवड में आज भी मोरया गोसावी की समाधि एवं उनके द्वारा स्थापित गणेश मंदिर है। उन्हें अष्टविनायक (महाराष्ट्र के प्रसिद्ध आठ गणेश मंदिर) यात्रा शुरू करने का का श्रेय दिया जाता है। ऐसे ही महान एवं परम गणेश भक्त की अदभुत भक्ति-समर्पण एवं तपस्या के कारण उनका नाम गणपति बप्पा से एकाकार होकर गणपति बप्पा मोरया कहलाने लगा... मोरया मोरया... गणपति बप्पा मोरया...

इसलिए पड़ा मोरगांव नाम
आबादी को मोरगांव नाम इसलिए मिला क्योंकि समूचा क्षेत्र मोरों से समृद्ध था। यहां गणेश की सिद्धप्रतिमा थी जिसे मयूरेश्वर कहा जाता है। इसके अलावा सात अन्य स्थान भी थे जहां की गणेश-प्रतिमाओं की पूजा होती थी। थेऊर, सिद्धटेक, रांजणगांव, ओझर, लेण्याद्रि, महड़ और पाली अष्टविनायक यात्रा। अष्ट विनायक यात्रा की शुरुआत ही मोरगांव के मयूरेश्वर गणेश से होती है, इसलिए भी मोरया नाम का जयकारा प्रथमेश गणेश के प्रति होना ज्यादा तार्किक लगता है। मयूरासन पर विराजी गणेश की अनेक प्रतिमाएं उन्हें ही मोरेश्वर और प्रकारांतर से मोरया सिद्ध करती हैं।

मराठियों की प्रसिद्ध गणपति वंदना सुखकर्ता-दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची.. की रचना संत कवि समर्थ रामदास ने चिंचवड़ के इसी सिद्धक्षेत्र में मोरया गोसावी के सानिध्य में की थी।

गणेश का मयूरेश्वर अवतार
मोरगांव में गणेश का मयूरेश्वर अवतार ही है। इसी वजह से इन्हें मराठी में मोरेश्वर भी कहा जाता है। कहते हैं कि वामनभट और पार्वती को मयूरेश्वर की आराधना से पुत्र प्राप्ति हुई। परंपरानुसार, उन्होंने आराध्य के नाम पर ही संतान का नाम मोरया रख दिया। मोरया भी बचपन से गणेशभक्त हुए।

गणेश उत्सव की ऐसे हुई शुरुआत
महाराष्ट्र में सर्वप्रथम लोकमान्य तिलक ने हिंदुओं को एकत्र करने के उद्देश्य से पुणे में वर्ष 1893 में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की। तब यह तय किया गया कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (अनंत चतुर्दशी) तक गणेश उत्सव मनाया जाए।

यह भी पढ़ेंः इंजीनियर जिसने सिखाई बड़ी-बड़ी हस्तियों को हिंदी, ये सेलिब्रिटी भी रह चुके हैं स्टूडेंट

दिल्‍ली-एनसीआर की खबरों को पढ़ने के लिए यहां करें क्‍लिक


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.