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एम्स के डॉक्टर बोले, अस्पतालों में शुरू हो डेंगू कॉर्नर

डेंगू दस्तक दे चुका है। मानसून आने के बाद इसके मामले तेजी से बढ़ने की आशंका है। इसके मद्देनजर एम्स में आयोजित राष्ट्रीय डेंगू दिवस जागरूकता कार्यक्रम में डॉक्टरों ने संस्थान में किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट पेश की। जिसमें यह बताया गया कि एम्स में डेंगू पीड़ित मरीजों की मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से चार से पांच गुना अधिक है। हर साल एम्स में 20 से 30 मरीजों की डेंगू से मौत होती है। इसका कारण यह है कि निजी अस्पताल मरीज को तब एम्स रेफर करते हैं जब मरीज की स्थिति बेहद नाजुक हो जाती है। इसलिए एम्स ने सलाह दी है कि डेंगू की शुरूआत में ही पहचान जरूरी है। इससे मरीजों की जिदगी बचाई जा सकती है। एम्स के डॉक्टरों ने सभी अस्पतालों में डेंगू कॉर्नर शुरू करने की सिफारिश की है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 May 2019 07:39 PM (IST)Updated: Thu, 16 May 2019 07:39 PM (IST)
एम्स के डॉक्टर बोले, अस्पतालों में शुरू हो डेंगू कॉर्नर
एम्स के डॉक्टर बोले, अस्पतालों में शुरू हो डेंगू कॉर्नर

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : डेंगू दस्तक देने को है। मानसून के बाद इसके मामले तेजी से बढ़ने की आशंका है। इसके मद्देनजर एम्स में आयोजित राष्ट्रीय डेंगू जागरूकता दिवस कार्यक्रम में डॉक्टरों ने संस्थान में किए गए अध्ययन की रिपोर्ट पेश की। इसमें बताया गया है कि एम्स में डेंगू पीड़ित मरीजों की मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से चार-पांच गुना अधिक है। हर साल एम्स में 20 से 30 मरीजों की डेंगू से मौत होती है। दरअसल निजी अस्पताल मरीज को तब एम्स रेफर करते हैं, जब मरीज की स्थिति बेहद नाजुक हो जाती है। इसलिए एम्स ने सलाह दी है कि डेंगू की शुरुआत में ही पहचान जरूरी है। इससे मरीजों की जिदगी बचाई जा सकती है। एम्स के डॉक्टरों ने सभी अस्पतालों में डेंगू कॉर्नर शुरू करने की सिफारिश की है।

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मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. आशुतोष विश्वास ने कहा कि पिछले साल देशभर में एक लाख से अधिक लोग डेंगू से पीड़ित हुए थे। इस साल अभी तक चार हजार मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें से चार की मौत हो चुकी है। एम्स में 10 साल के आंकड़ों को एकत्रित कर अध्ययन किया गया है। इसमें यह पाया गया है कि एम्स में डेंगू से मृत्युदर सात से 10 फीसद है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा दो फीसद से भी कम है।

उन्होंने कहा कि हर अस्पताल में डेंगू कॉर्नर होना जरूरी है। जहां डेंगू के इलाज के लिए अधिकृत डॉक्टर व पैरामेडिकल कर्मचारी तैनात होने चाहिए। इससे मरीजों को बेहतर इलाज मिल सकेगा। एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि डेंगू के सभी मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं होती। ज्यादातर मरीज दवा से ठीक हो जाते हैं। डेंगू शॉक सिंड्रोम में मरीज की जान को खतरा बढ़ जाता है। शॉक सिंड्रोम की पहचान :

इसलिए शॉक सिंड्रोम की पहचान करना जरूरी है। ब्लड प्रेशर कम होने पर मरीज शॉक में चला जाता है और महत्वपूर्ण अंगों में रक्त संचार कम हो जाता है। इससे कम यूरिन आती है। डेंगू के गंभीर लक्षण :

तेज बुखार के साथ पेट में दर्द, उल्टी होना, भूख न लगना, यूरिन कम होना, शरीर के किसी हिस्से में रक्त स्त्राव व शरीर पर लाल रेशेज व मरीज का शॉक में जाना गंभीर लक्षण होता है। मरीज को आइसोलेट करना जरूरी : डेंगू के मरीजों को परिवार के अन्य सदस्यों से अलग रख जाना चाहिए। उस दौरान मरीज वायरस से संक्रमित रहता है। ऐसी स्थिति में यदि मच्छर मरीज को काटने के बाद किसी और को काटता है तो दूसरे लोग डेंगू के चपेट में आ सकते हैं। इसलिए डॉक्टर सलाह देते हैं कि मरीज को करीब एक सप्ताह तक अलग रखा जाना चाहिए। मच्छरदानी का इस्तेमाल करना चाहिए।

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