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दाखिला प्रक्रिया में चर्च के प्रतिनिधि को शामिल करने पर विवाद

दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध सेंट स्टीफंस कॉलेज में दाखिला प्रक्रिया में चर्च के प्रतिनिधियों को शामिल करने को लेकर विवाद छिड़ गया है। इस मामले में कॉलेज के प्राचार्य प्रो जॉन वर्गीस ने मंगलवार को कॉलेज के तीन शिक्षकों को पत्र लिखकर चेतावनी भी दे दी है। कॉलेज की मैथ्स विभाग की प्रोफेसर नंदीता नारायण ने दावा किया है कि कॉलेज के प्राचार्य प्रो जॉन वर्गीस ने घोषणा की है कि कॉलेज की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्रों के साक्षात्कार लेने वाले पैनल में शामिल होंगे। इस कॉलेज की सुप्रीम काउंसिल में कॉलेज की गर्वनिग बॉडी के छह सदस्य होते हैं। यह सभी सदस्य उत्तर भारत की चर्च के होते हैं। वहीं सुप्रीम काउंसिल और कॉलेज की गर्वनिग बॉडी के चेयरपर्सन दिल्ली के बिशप होते हैं। साथ ही सुप्रीम काउंसिल और कॉलेज की गर्वनिग बॉडी के मेंबर सेक्रेटरी कॉलेज के प्राचार्य होते हैं। प्रो नंदीता ने इस मामले को उठाते हुए सोमवार को विज्ञप्ति जारी की थी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 09:21 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 09:21 PM (IST)
दाखिला प्रक्रिया में चर्च के प्रतिनिधि 
को शामिल करने पर विवाद
दाखिला प्रक्रिया में चर्च के प्रतिनिधि को शामिल करने पर विवाद

जागरण संवाददाता , नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध सेंट स्टीफंस कॉलेज में दाखिला प्रक्रिया में चर्च के प्रतिनिधियों को शामिल करने को लेकर विवाद छिड़ गया है। प्राचार्य प्रो. जॉन वर्गीस ने मंगलवार को कॉलेज के तीन शिक्षकों को पत्र लिखकर चेतावनी भी दे दी है।

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गणित विभाग की प्रोफेसर नंदिता नारायण ने दावा किया है कि प्राचार्य प्रो. जॉन वर्गीस ने घोषणा की है कि कॉलेज की सुप्रीम काउंसिल के सदस्य सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्रों का साक्षात्कार लेने वाले पैनल में शामिल होंगे। सुप्रीम काउंसिल में कॉलेज की गवर्निग बॉडी के छह सदस्य होते हैं। ये सभी सदस्य उत्तर भारत के चर्च के प्रतिनिधि होते हैं। सुप्रीम काउंसिल और कॉलेज की गवर्निग बॉडी के चेयरपर्सन दिल्ली के बिशप होते हैं। सुप्रीम काउंसिल और गवर्निग बॉडी के मेंबर सेक्रेटरी कॉलेज के प्राचार्य होते हैं। प्रो. नंदिता ने इस मामले को उठाते हुए सोमवार को विज्ञप्ति जारी की थी।

वहीं मंगलवार को प्रो. जॉन वर्गीस ने मामले में प्रो. नंदिता व दो अन्य शिक्षकों को चेतावनी देते हुए पत्र लिखा है। उन्होंने प्रो. नंदिता के उस दावे को गलत करार दिया है, जिसमें उन्होंने यह कहा था कि चर्च के प्रतिनिधियों को साक्षात्कार के पैनल में शामिल करने का फैसला प्राचार्य का है। प्राचार्य ने पत्र में स्पष्ट करते हुए कहा कि जिस फैसले को प्रो. नंदिता प्राचार्य की घोषणा कह रही हैं, वह सुप्रीम काउंसिल की ओर से लिया गया फैसला है। सेंट स्टीफंस कॉलेज अल्पसंख्यक संस्थान है और सुप्रीम काउंसिल के पास कॉलेज की दाखिला नीति पर फैसला लेने की पूरी शक्ति है। दाखिला प्रक्रिया को लेकर सभी तरह के दिशा-निर्देशों की जानकारी 14 मार्च को कॉलेज की गवर्निग बॉडी में शिक्षकों के प्रतिनिधियों को दी गई थी। प्रो. नंदिता व अन्य दो शिक्षक भविष्य में कॉलेज से जुड़ी हुई इस तरह की गलत सूचना और गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य जारी न करें। ऐसा करने पर उचित कार्रवाई की जाएगी। प्रो. नंदिता ने किया था यह दावा

प्रो. नंदिता नारायण ने विज्ञप्ति में कहा था कि सोमवार को कॉलेज की स्टाफ काउंसिल की बैठक हुई थी, जिसमें सभी स्थायी सदस्य मौजूद थे। इसमें प्राचार्य ने यह घोषणा की कि दाखिला प्रक्रिया में छात्रों के साक्षात्कार के पैनल में सुप्रीम काउंसिल के प्रतिनिधि शामिल किए जाएंगे। इसका शिक्षकों ने विरोध किया और कहा कि यह निर्णय कॉलेज के संविधान का सरासर उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि सुप्रीम काउंसिल कॉलेज के अकादमिक कार्यो में दखलअंदाजी नहीं करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1992 में कॉलेज के अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखते हुए उसे डीयू से अलग अपनी दाखिला प्रक्रिया अपनाने की इजाजत इस शर्त पर दी थी कि दाखिले के लिए होने वाले साक्षात्कारों में शिक्षक ही बैठेंगे। कॉलेज के इतिहास में छात्रों के साक्षात्कारों में कोई गैरअकादमिक व्यक्ति शामिल नहीं हुआ है। इसी साल 14 मार्च को आयोजित गवर्निग बॉडी की बैठक में प्राचार्य की ओर से इस तरह की कोई घोषणा नहीं की गई थी। उन्होंने इस निर्णय की घोषणा स्टाफ काउंसिल की बैठक में की। इस हिसाब से प्राचार्य ने गवर्निग बॉडी की शक्तियों की अवेहलना की है।

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सेंट स्टीफंस मामले में शिक्षक आए विरोध में सेंट स्टीफंस कॉलेज में छात्रों के साक्षात्कार पैनल में चर्च के प्रतिनिधि को शामिल करने के मामले में डीयू के शिक्षक विरोध में उतर आए हैं। कार्यकारी परिषद (ईसी) के सदस्य राजेश झा ने कहा कि विश्वविद्यालय के मामलों में बाहरी प्रवृत्ति और हस्तक्षेप बढ़ रहा है, सेंट स्टीफंस कॉलेज का यह मामला उसका प्रमाण है। देश के संविधान के अनुसार अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को कुछ अधिकार जरूर प्राप्त हैं और वे अपने नियम के अनुसार कई फैसले कर सकते हैं, लेकिन डीयू के संबद्ध सभी कॉलेजों में डीयू का ही कानून व अधिनियम लागू होता है। इससे किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता है। सेंट स्टीफंस कॉलेज में दाखिले से जुड़े फैसलों को लेने का अधिकार स्टाफ काउंसिल का है। शिक्षकों को लगा कि बाहर के प्रतिनिधियों को दाखिला प्रक्रिया में शामिल किया जा रहा है तो उन्होंने विरोध किया। हम इस मामले के खिलाफ आगे भी आवाज उठाएंगे। अगर सेंट स्टीफंस कॉलेज प्रशासन ने कोई फैसला किया है तो उससे कॉलेज के शिक्षकों को भी अवगत कराना चाहिए था। डीयू शिक्षक संघ (डूटा) के सदस्यों ने भी विरोध जताया है। डीयू की स्टैंडिग कमेटी के सदस्य प्रो. रसाल सिंह ने कहा कि प्रवेश प्रक्रिया में चर्च के प्रतिनिधियों का बैठना अनुचित है। यह शिक्षकों का कार्यक्षेत्र है। कॉलेज के अकादमिक और प्रशासनिक मामलों में चर्च का सीधा हस्तक्षेप ठीक नहीं है। यह सेंट स्टीफेंस कॉलेज की प्रतिष्ठा को क्षतिग्रस्त करेगा।

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