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असंवैधानिक रूप से प्रमुख निदेशक पद पर की जा रही थी नियुक्ति

डी-इन-सी और इंजीनियर इन चीफ के पदों पर नियुक्ति को लेकर करीब ढाई साल से चल रहा झगड़ा अब समाप्त होने वाला है। जिस पद को लेकर इतने समय से बवाल हो रहा था उस पद का सृजन ही असंवैधानिक रूप से किया गया था। यह मामला अब पकड़ में आया है। निगम पार्षद राजीव चौधरी ने सदन में कई कागजात पेश करते हुए प्रस्ताव लाया जिसे सदन ने मंजूरी दे दी।

By JagranEdited By: Published: Mon, 25 Feb 2019 10:34 PM (IST)Updated: Mon, 25 Feb 2019 10:34 PM (IST)
असंवैधानिक रूप से प्रमुख निदेशक पद पर की जा रही थी नियुक्ति
असंवैधानिक रूप से प्रमुख निदेशक पद पर की जा रही थी नियुक्ति

सुधीर कुमार, पूर्वी दिल्ली: डी-इन-सी और इंजीनियर इन चीफ के पदों पर नियुक्ति को लेकर करीब ढाई साल से चल रहा झगड़ा अब समाप्त होने वाला है। जिस पद को लेकर इतने समय से बवाल हो रहा था, उस पद का सृजन ही असंवैधानिक रूप से किया गया था। यह मामला अब पकड़ में आया है। निगम पार्षद राजीव चौधरी ने सदन में कई कागजात पेश करते हुए प्रस्ताव लाया, जिसे सदन ने मंजूरी दे दी।

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गौरतलब है कि उपरोक्त दोनों ही पद समान वेतनमान के हैं, लेकिन अधिकारों के बंटवारे में इंजीनियर इन चीफ का पलड़ा भारी रहता है। इस वजह से इंजीनियर इन चीफ के पद पर वरिष्ठ अधिकारी को तैनात किया जाता है, लेकिन पूर्वी निगम में शुरू से वरिष्ठ अधिकारी को डी-इन-सी पद थमा दिया जाता है। इस कारण यहां पहले डी-इन-सी रहे केपी ¨सह ने तबादला भी करवा लिया था, अब वह उत्तरी नगर निगम में इंजीनियर इन चीफ हैं। इस मामले में प्रस्ताव रखते हुए राजीव चौधरी ने कई नियमों का हवाला दिया। दिल्ली में एक निगम था, तब इलाका बहुत बड़ा होता था। इससे इंजीनिय¨रग के कामों को दो भागों में बांटकर दो पद बनाए गए थे। लेकिन जब तीन निगम हुए तो डी-इन-सी के पद की जरूरत नहीं रही, क्योंकि तीनों निगमों में एक-एक इंजीनियर इन चीफ हो गए। 17 अक्टूबर 2016 को पूर्वी निगम ने डी-इन-सी को सृजित करने का प्रस्ताव पास किया और इस पद को स्थायी मानकर इस पर नियुक्ति कर दी गई। राजीव चौधरी कहते हैं कि इस प्रस्ताव को सदन से पास होने के बाद इसे आरआर यानी रिक्रूटमेंट रूल एप्वाइंटमेंट कमेटी से पास करवाने होंगे, फिर सदन से इसे दोबारा पास कराने के बाद निदेशक स्थानीय निकाय को भेजा जाएगा, जहां से इसे यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) से मंजूरी लेकर उपराज्यपाल को भेजा जाना चाहिए। अंत में उपराज्यपाल द्वारा इस संबंध में अधिसूचना जारी की जाएगी, तब यह पद वैधानिक होता। लेकिन डी-इन-सी के पद सृजन में पूरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, जिससे यह पद असंवैधानिक है।

चौधरी का कहना है कि पूर्वी निगम की आर्थिक स्थिति दिल्ली सरकार ने पूरी तरह से कमजोर कर दी है। इस कारण महापौर सरकारी गाड़ी व डीजल का उपयोग तक नहीं कर रहे। स्थायी समिति ने सभी समितियों को खर्च कम करने के सुझाव दिए। आयुक्त ने भी खर्च कटौती के लिए कई उपाय किए हैं। उस स्थिति में डी-इन-सी पद के लिए सालाना एक करोड़ रुपये खर्च करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि पूर्वी निगम में सिर्फ 64 वार्ड हैं, वहीं उत्तरी व दक्षिणी निगम में 100-100 से ज्यादा वार्ड हैं। ऐसे में पूर्वी निगम में कम स्टाफ से काम चल सकता है। इसलिए यहां प्रमुख निदेशक, डेम्स के पद की जरूरत ही नहीं है।


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