National War Memorial शहीदों के सम्मान में पहला युद्ध स्मारक देश को समर्पित, जानें इसकी खासियत
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक इंडिया गेट के पास 40 एकड़ में बने इस युद्ध स्मारक की लागत 176 करोड़ रुपये आई है और यह रिकार्ड एक साल में बनकर पूरा हुआ है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देश के सैनिकों का 60 बरस पुराना इंतजार सोमवार को पहले नेशनल वार मेमोरियल के उद्घाटन के साथ खत्म हो गया। वीर शहीदों की याद में दिल्ली के इंडिया गेट के नजदीक तैयार किए गए नेशनल वॉर मेमोरियल को प्रधानमंत्री ने सोमवार को देश को समर्पित किया। यह वॉर मेमोरियल करीब 22,600 जवानों के प्रति सम्मान का सूचक है, जिन्होंने आजादी के बाद से अनेकों लड़ाइयों में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। 40 एकड़ में फैला यह स्मारक 176 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है।छह भुजाओं (हेक्सागोन) वाले आकार में बने मेमोरियल के केंद्र में 15 मीटर ऊंचा स्मारक स्तंभ है।
जिसके नीचे अखंड ज्योति जलती रहेगी। मेमोरियल में भित्ति चित्र, ग्राफिक पैनल, शहीदों के नाम और 21 परमवीर चक्र विजेताओं की मूर्तियां भी लगाई गई हैं। साथ ही स्मारक को चार चक्र पर केंद्रित किया गया है, जिसे अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र, रक्षक चक्र नाम दिया गया है। इसमें थल सेना, वायुसेना और नौसेना के शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गई है।
शहीदों के नाम दीवार की ईटों में उभारकर लिखे गए हैं। स्मारक का निचला भाग अमर जवान ज्योति जैसा रखा गया है। स्मारक के डिजाइन में सैनिकों के जन्म से लेकर शहादत तक का जिक्र है। ऐसी गैलरी भी है जहां दीवारों पर सैनिकों की बहादुरी को प्रदर्शित किया गया है। ये स्मारक उन बलिदानियों की कहानी बयां करेगा जिनकी बदौलत हम सुरक्षित हैं।
रोज खुलेगा और प्रवेश भी मुफ्त
नेशनल वॉर मेमोरियल आम जन के लिए हर दिन खुलेगा। यहां प्रवेश मुफ्त रखा गया है। नवंबर से मार्च तक खुलने का समय सुबह 9 बजे से शाम साढ़े छह बजे तक रखा गया है, वहीं अप्रैल से अक्टूबर तक यह सुबह 9 बजे से शाम साढ़े सात बजे तक खुलेगा। खास दिनों में फूल चढ़ाने के समारोह का आयोजन भी होगा। हर रोज सूर्यास्त से ठीक पहले रिट्रीट सेरेमनी होगी। रविवार सुबह 9.50 बजे चेंज ऑफ गार्ड सेरेमनी होगी जो करीब आधे घंटे चलेगी।
आइए जानते हैं इस स्मारक की 11 खूबियां।
- इस स्मारक की कुल लागत 176 करोड़ रुपये है।
- एक वैश्विक प्रतिस्पर्धा के माध्यम से इसका डिजाइन चुना गया था।
- मुख्य संरचना को चार चक्रों के रूप में बनाया गया है, जिनमें से प्रत्येक सशस्त्र बलों के विभिन्न मूल्यों को दर्शाया गया है।
- चक्रव्यूह की संरचना से प्रेरणा लेते हुए इसे बनाया गया है।
- इसमें चार वृत्ताकार परिसर होंगे और एक ऊंचा स्मृति स्तंभ भी है, जिसके तले में अखंड ज्योति दीप्तमान रहेगी।
- स्मारक में आजादी के बाद शहीद हुए 25,942 भारतीय सैनिकों के नाम इन पत्थरों पर लिखे गए हैं।
- सशस्त्र बलों के भविष्य के समारोहों के लिए भी यह स्मारक स्थल के रूप में काम करेगा।
जानें स्मारक में अन्य विशेषताएं
- आर्टिफिशियल लाइटिंग और वॉकिंग प्लाजा।
- राष्ट्रीय युद्ध स्मारक परिसर में प्रवेश सभी के लिए निशुल्क है।
- अपवाद रूप में मुख्य क्षेत्र और परम योदा स्टाल में समय की पाबंदी होगी। हर शाम रिट्रीट सेरेमनी भी होगी।
- प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान इसका वादा किया था और 2015 में स्वीकृति दी थी।
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, इंडिया गेट के पास 40 एकड़ में बने इस युद्ध स्मारक की लागत 176 करोड़ रुपये आई है और यह रिकार्ड एक साल में बनकर पूरा हुआ है। इसकी 16 दीवारों पर 25,942 योद्धाओं का जिक्र किया गया है। ग्रेनाइट पत्थरों पर योद्धाओं के नाम, रैंक व रेजिमेंट का उल्लेख किया गया है।
इन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1947, 1965, 1971 व 1999 के भारत-पाकिस्तान युद्ध तथा श्रीलंका में शांति बहाल कराने के दौरान अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इसका निर्माण गत वर्ष फरवरी में शुरू हुआ था। प्रधानमंत्री ने रविवार को 'मन की बात' कार्यक्रम में युद्ध स्मारक का जिक्र करते हुए कहा था कि इसका न होना उन्हें अक्सर दुखी और आश्चर्यचकित करता था।
जलती रहेगी अमर जवान ज्योति
लेफ्टिनेंट जनरल राजेश्र्वर ने बताया कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए जवानों की याद में इंडिया गेट के नीचे 1972 में प्रज्ज्वलित की गई अमर जवान ज्योति भी जलती रहेगी।
60 साल पहले उठी थी स्मारक की यह मांग
प्रथम विश्व युद्ध और अफगान अभियान में करीब 84,000 सैनिक शहीद हुए थे। उनकी याद में अंग्रेजों ने इंडिया गेट बनवाया था। बाद में 1971 में अमर जवान ज्योति का निर्माण हुआ। अमर जवान ज्योति 1971 के भारत-पाक युद्ध में बांग्लादेश की आजादी में शहीद हुए 3,843 सैनिकों को समर्पित है। ये दोनों स्मारक कुछ खास अवधि के शहीदों को समर्पित है।
आजादी के बाद भी कई युद्धों और अभियानों में सैनिकों ने त्याग और बलिदान की मिसाल कायम की है। उनकी कुर्बानी को याद करने और सम्मान देने के लिए एक राष्ट्रीय स्मारक की जरूरत महसूस की गई। इसको बनाने की मांग तो करीब 60 साल पहले उठी थी। लेकिन इसे अंतिम मंजूरी साल 2015 में मोदी सरकार ने दी। अब यह स्मारक बनकर तैयार है।
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