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EXCLUSIVE: इस एक सवाल ने बदल दी स्नेह की जिंदगी, भारत को दिलाया ऑस्कर

स्नेह ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि उससे कोई ऐसा सवाल करेगा। उस वक्त तो उसने उत्तर नहीं दिया लेकिन उस रात में सोने के पहले उसने अपनी मां उर्मिला से हिम्मत करके पूछ ही लिया।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 25 Feb 2019 12:31 PM (IST)Updated: Mon, 25 Feb 2019 09:04 PM (IST)
EXCLUSIVE: इस एक सवाल ने बदल दी स्नेह की जिंदगी, भारत को दिलाया ऑस्कर
EXCLUSIVE: इस एक सवाल ने बदल दी स्नेह की जिंदगी, भारत को दिलाया ऑस्कर

नई दिल्ली [आनंद सिंह]। उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के काठी खेड़ा गांव की रहने वाली युवती स्नेह पर बनी लघु फिल्म 'पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस' को ऑस्कर पुरस्कार मिला है। इसकी घोषणा हॉलीवुड के डॉल्बी थिएटर में रविवार देर को आयोजित 91वें ऑस्कर पुरस्कार समारोह में की गई।  वहीं, यह भी सच है कि अगर 22 साल की युवती स्नेह अपनी मां से एक सवाल नहीं करती तो क्या Period: End of sentence नामक फिल्म बनती और क्या उसे ऑस्कर मिलता? जवाब है-शायद नहीं।

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दरअसल, स्नेह एक परंपरागत किसान राजेंद्र की बेटी है जिसका सपना था दिल्ली या यूपी पुलिस में सिपाही बन जाना और माता-पिता की सेवा करना। वह पुलिस में भर्ती की तैयारी कर भी रही थी। रोज प्रैक्टिस करती थी। एक दिन उसकी एक सहेली ने उससे पूछा कि क्या वह सेनेट्री पैड बनाने वाली फैक्टरी में काम करना पसंद करेगी? यह सवाल स्नेह के लिए नया, अद्भुत और चौंकाने वाला था।

स्नेह ने कभी यह कल्पना भी नहीं की थी कि उससे कोई इस किस्म के सवाल करेगा। उस वक्त तो उसने उत्तर नहीं दिया, लेकिन उस रात में सोने के पहले उसने अपनी मां उर्मिला से हिम्मत करके पूछ ही लिया- 'मां, क्या मैं सेनेट्री पैड बनाने वाली फैक्टरी में काम करने जा सकती हूं? 2500 रुपये प्रतिमाह मिलेंगे। मैं अपनी तैयारी करती रहूंगी और इस दौरान थोड़ा काम करके 2500 रुपये भी कमा लूंगी।' थोड़ी हिचक के साथ मां ने हां कह दिया। मां के हां कहने के बाद स्नेह ने अपनी सहेली को हां कहा और वह कुछ ही दिनों के बाद से फैक्टरी में काम करने लगी।

दरअसल, अगर स्नेह भी आम लड़कियों की तरह सेनेट्री पैड के नाम से ही घिना जाती और चिढ़ जाती तो अपनी मां से सवाल नहीं कर पाती। ... लेकिन, स्नेह को सेनेट्री पैड के नाम से न चिढ़ हुई, न घिन आई और उसने काम शुरू भी कर दिया। उसने लगन से काम किया और जब फिल्म निर्माता गुनीत मोंगा ने उसे फिल्म के लिए रोल आफर किया तो वह सहज तैयार हो गई। उसके बाद जो हुआ, वह सभी के सामने है। स्नेह के एक सवाल ने उसकी जिंदगी बदल डाली है। 

गौरतलब है कि भारतीय फिल्म निर्माता गुनीत मोंगा की फिल्म 'पीरियड. एंड ऑफ सेंटेंस' को बेस्ट डॉक्युमेंट्री शॉर्ट कैटिगरी फिल्म के ऑस्कर अवॉर्ड 2019 मिला है। इस फिल्म को रयाक्ता जहताबची और मैलिसा बर्टन ने निर्देशित किया है।

वहीं, ईरानी-अमेरिकन फिल्म डायरेक्टर रयाक्ता ने ऑस्कर जीतने पर कहा कि 'उन्हें यकीन नहीं हो रहा है कि पीरियड्स पर बनी फिल्म ने ऑस्कर जीता है।' दिल्ली से बेहद करीब उत्तर प्रदेश के हापड़ जिले के गांव काठीखेड़ा निवासी स्नेह को लेकर बनाई गई 'पीरियडः एंड ऑफ सेंटेंस' फिल्म पिछले दिनों ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नॉमिनेटेड हुई थी।

इसे ऑस्कर्स के शॉर्ट डॉक्युमेंट्री श्रेणी में दुनियाभर की नौ और शॉर्ट डॉक्युमेंट्रीज़ के साथ नॉमिनेट किया गया था। समाज में पीरि‍यड्स के टैबू पर बनी यह डॉक्युमेंट्री ने बेस्ट डॉक्युमेंटी अवॉर्ड में ऑस्कर जीत लिया है|

ऑस्कर अवॉर्ड जीतने पर गुनीत मोंगा ने भी ट्वीट किया- 'हम जीत गए। इस धरती पर मौजूद हर लड़की यह जान ले कि वह देवी है... हमने @Sikhya को पहचान दिलाई है।'

यह फिल्म नारी स्वास्थ्य जागरूकता को लेकर बनी है। सहेलियों संग मिलकर स्नेह ने गांव में ही सेनेटरी पैड बनाने का उद्योग लगाया था और फिल्म हापुड़ जिले के गांव काठी खेड़ा की एक लड़की पर फिल्माई गई है। यह लड़की सहेलियों संग मिलकर अपने ही गांव में सबला महिला उद्योग समिति में सेनेटरी पैड बनाती है। यह पैड गांव की महिलाओं के साथ नारी सशक्तीकरण के लिए काम कर रही संस्था एक्शन इंडिया को भी सप्लाई किया जाता है। फिल्म में दिखाया गया है कि जब एक महिला से पीरियड के बारे में पूछा गया तो वह कहती है मैं जानती हूं पर बताने में मुझे शर्म आती है। जब यही बात स्कूल के लड़कों से पूछी गई तो उसने कहा कि यह पीरियड क्या है? यह तो स्कूली की घंटी बजती है, उसे पीरियड कहते हैं।

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