400 करोड़ रुपये के हीरे की चौंकाने वाली स्टोरी, जानिए- कौन रखता था इसे जूती में
दिल्ली में आयेजित प्रदर्शनी में जैकब हीरा भी है जो कोहिनूर से दोगुने आकार का है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस हीरे की कीमत 400 करोड़ से ज्यादा है।
नई दिल्ली [लोकेश चौहान]। दुनिया के सबसे बड़े हीरों में शामिल जैकब हीरा इस समय नेशनल म्यूजियम में देखने को मिल रहा है। इसकी कीमत इस समय करीब 400 करोड़ रुपये है, लेकिन यह बात जानकर आप चौंक जाएंगे कि यह हीरा कभी हैदराबाद के छठे निजाम महबूब अली पाशा की जूती में रहता था।
जैकब हीरे की तुलना अगर कोहिनूर से की जाए तो पता लगता है कि कोहिनूर हीरे का वजन 186.06 कैरेट (37.2 ग्राम) था। कोहिनूर की चमक बढ़ाने के लिए उसे तराशा गया और अब इसका वजन 106.6 कैरेट (21.6 ग्राम) है। वहीं, जैकब हीरा इस समय 184.75 कैरेट (36.9 ग्राम) है। जैकब हीरे को पहले इंपीरियल या ग्रेट व्हाइट डायमंड के रूप में जाना जाता था। यह विक्टोरिया डायमंड है, जो वर्तमान में भारत सरकार के पास है। यह एक आयताकार कुशन-कट में कटा हुआ है। इसकी लंबाई 39.5 मिमी चौड़ाई 29.25 मिमी और ऊंचाई 22.5 मिमी है।
जैकब हीरा करीब 125 वर्ष पहले अफ्रीका की किसी खान में कच्चे रूप में मिला था। वहां से इसे एक व्यवसाय संघ द्वारा एमस्टरडम लाया गया और कटवा कर इसे नया रूप दिया गया। जैकब हीरे को भारत लाने का श्रेय अलेक्जेंडर मैल्कोन जैकब को जाता है। जैकब रहस्यमयी व्यक्ति था, लेकिन भारतीय राजाओं के विश्वासपात्रों में से एक था। वह इटली में एक रोमन कैथोलिक परिवार में पैदा हुआ था।
नेशनल म्यूजियम में आयोजित निजाम के आभूषणों की प्रदर्शनी के आयोजकों ने बताया कि 1890 में जैकब ने इस हीरे को बेचने की बात छठे निजाम महबूब अली पाशा से की। उस समय इसका दाम एक करोड़ 20 लाख रुपये आंका गया था, लेकिन इसका सौदा 46 लाख रुपये में तय हुआ।
निजाम ने 20 लाख रुपये उसे हीरे को हिन्दुस्तान लाने के लिए दिए, लेकिन बाद में निजाम ने लेने से मना कर दिया। ब्रिटिश लोगों की तरफ से विवाद होने के कारण कलकत्ता (अब कोलकाता) हाई कोर्ट में मुकदमा चला और सुलह के बाद यह हीरा निजाम को मिल गया।
महबूब अली पाशा ने जैकब हीरे पर कोई खास ध्यान नहीं दिया। यह भी कहा जाता है कि हीरे को चोरी होने से बचाने के लिए वह इसे अपनी जूती के अंदर रखते थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे और अंतिम निजाम उस्मान अली खान को जूती के अंदर से यह हीरा मिला और इसे एक पत्थर मानते हुए उन्होंने इसे पेपरवेट की तरह से प्रयोग किया था।
एक बार में सिर्फ 50 दर्शकों को एंट्री
अधिकारियों का कहना है कि एक बार में सिर्फ 50 दर्शकों को एंट्री मिलेगी और आभूषण देखने के लिए सिर्फ 30 मिनटों का समय दिया जाएगा। इस कलेक्शन के लिए अलग से 50 रुपये का टिकट लगेगा। निजाम का कलेक्शन विश्व में सबसे महंगे और बड़े कलेक्शन्स में से एक है। भारत सरकार ने 1995 में इसे 218 करोड़ रुपए में खरीदा था।
आभूषणों को सुरक्षित रखने के लिए बनाए थे ट्रस्ट
इससे पहले यह कलेक्शन दो ट्रस्टों के पास थी, जिन्हें निजाम उस्मान अली खान ने तैयार करवाया था। पुश्तैनी आभूषणों को सुरक्षित रखने के लिए खान ने 1951-52 में ट्रस्ट बनाए थे। ट्रस्टीज ने खजाने को हॉन्गकॉन्ग बैंक की तिजोरियों में रखा था। एक लंबी कानूनी लड़ाई के बाद भारत ने इसे खरीदा और मुंबई में आरबीआई की तिजारी में शिफ्ट किया। 29 जून, 2001 तक यह खजाना आरबीआई के पास मुंबई में रहा, लेकिन बाद में दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया।