बड़ा दिन यानी दिल बड़ा
ईसा मसीह ने मानव को जगत की ज्योति कहा। उन्होंने कहा कि दीया दीवार पर रखा जाए, ताकि सबको प्रकाश मिले। वे कहते हैं कि इंसान का दिल बड़ा होना चाहिए। ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाए जाने वाले क्रिसमस या बड़े दिन (25 दिसंबर) पर विशेष..
समस कहें या बड़ा दिन, यह एक ऐसा त्योहार है, जिसमें सबके लिए खुशियां हैं। यह ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। ईसा मसीह की शिक्षाओं में समानता और भाईचारे के संदेश के कारण भी यह त्योहार हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति के साथ पूरी तरह घुल-मिल गया है। यह हमारे सामाजिक परिवेश का प्रतिबिंब है, जो विभिन्न वर्गो और धर्मो के लोगों के बीच भाईचारे को मजबूती देता है।
हमारे देश में सदियों से क्रिसमस का त्योहार लोगों को खुशियां बांटता और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम करता रहा है। क्रिसमस का अर्थ मानव-मुक्ति और समानता है। जीवन भर ईसा मसीह मानव-उद्धार अर्थात आम लोगों की बेहतरी के अपने सिद्धांतों पर कायम रहे। कहा जाता है कि ईसा के जन्म की सबसे पहली खबर इस संसार के सबसे निर्धन, गरीब और भोले-भाले लोगों को ही मिली थी। ये वे लोग थे, जो दिन भर कड़ी मेहनत एवं परिश्रम से अपनी भेड़ों को चराने के बाद सर्दियों की रात में खुले आसमान के नीचे मैदान में खतरों से बेखबर सोती हुई भेड़ों की रखवाली कर रहे थे। मान्यता है कि स्वर्गदूतों के एक दल ने चरवाहों को यह खबर दी थी कि तुम्हारे लिए एक बालक ने जन्म लिया है, जो भविष्य में तुम्हारा मुक्तिदाता बनेगा।
यह ध्यान देने की बात है कि ईसा मसीह ने मानव के रूप में जन्म लेने के लिए किसी संासारिक माता-पिता के घर जन्म नहीं लिया। दरअसल वे गरीबों, लाचारों एवं वंचितों को ढांढस बंधाने ही तो आए थे, इसीलिए उन्होंने एक गरीब व्यक्ति के घर की गौशाला में जन्म लिया। ईसा ने अपने जन्म से ही विनम्रता रखी और ऐसे ही लोगों के बीच में अपना स्थान चुना। यह बहुत बड़ा संदेश था-गरीब और लाचार लोगों के लिए।
पहले लोग सर्दियों में सूर्य को देखकर क्रिसमस मना लेते थे। चौथी सदी में चर्च ने इसके लिए 24 और 25 दिसंबर की तरीख तय कर दी, तब से यह त्योहार इसी तारीख को मनाया जा रहा है, क्योंकि 23 दिसंबर से ही दिन बड़ा होने लगता है। इसलिए इसे बड़ा दिन भी कहते हैं। इस दिन का संदेश भी यही है कि इंसान का दिल बड़ा होना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि आज दिल के बजाय अपना स्वार्थ ही बड़ा हो गया है।
ईसा ने दीन-दुखियों और लाचारों की सहायता करने, प्रेमभाव से रहने, लालच न करने, ईश्वर और राज्य के प्रति कर्त्तव्यनिष्ठ रहने, जरूरतमंदों की जरूरत पूरी करने, अवश्यकता से अधिक धन संग्रह न करने के उपदेश दिए हैं। ईसा ने मानव को जगत की ज्योति बताया और कहा कि कोई दीया जलाकर नीचे नहीं, बल्कि दीवार पर रखना चाहिए, ताकि सबको प्रकाश मिले। इसका अर्थ यह है कि हम अपने आसपास के परिवेश को नजर-अंदाज न करें। जिसके भी घर में अंधेरा (समस्याएं) हो, हमारा फर्ज है कि हम वहां तक उजाला ले जाएं और उसका अंधेरा भी दूर करें।
क्रिसमस पर चर्च और ईसाइयों के घरों में ईसा की झांकी सजाई जाती है। लोग अपने घरों में गौशाला सजाते है, जिसमें ईसा और उसके सांसारिक माता-पिता, चरवाहों और स्वर्गदूतों की मूर्तियों को सजाया जाता है और ईसा के जन्म को याद करते हुए उनकी आराधना की जाती है। युवा ईसाई लड़के-लड़कियां क्रिसमस से दो सप्ताह पूर्व ही घरों में जा-जाकर केरोल (ईसाइयों के भजन) गाते हैं, इन गीतों में क्रिसमस के आने की सूचना दी जाती है। यह अधिकतर यूरोपीय देशों में गाया जाता है।
इस दिन लोग ईसा-मसीह की शिक्षाओं को याद रखते हैं। लोग एक-दूसरे के सुखद भविष्य की कामना के लिए फलों और केक का अदान-प्रदान करते हैं और अपने घरों को फूलों और क्रिसमस ट्री से सजाते हैं और मोमबतियां जलाते हैं। अपनी खुशियों के बीच में जब हम गरीब और लाचार लोगों के दुख-दर्द को समझेंगे और अपनी कोशिशों से उनके चेहरों पर थोड़ी मुस्कान लाएंगे, तभी हमें भी क्रिसमस की वास्तविक खुशियां मिलेंगी। तभी हम अपने सभी साथियों, मित्रों, रिश्तेदारों, और आसपास के लोगों से कहेंगे, मैरी क्रिसमस! बड़ा दिन आप सबको मुबारक हो। क्योंकि यह हमारे लिए ईसा के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाने का त्योहार है।
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