भारतीय क्रिकेटर्स पर नाराज हुआ ये दिग्गज कहा, विश्व की किसी भी गेंद से कम नहीं SG बॉल
हम वेस्टइंडीज, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम को यहां बुलाकर हराते हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ खिलाड़ी इन दिनों भारत में इस्तेमाल होने वाली एजसी गेंद को लेकर नकारात्मक रवैया अपनाए हुए हैं। वे वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज में गेंद की क्वालिटी से खळ्श नहीं थे। हालांकि पूर्व भारतीय कप्तान और बायें हाथ के दिग्गज स्पिनर बिशन सिंह बेदी इससे इत्तेफाक नहीं रखते और पूरी तरह से एसजी गेंद के इस्तेमाल के पक्ष में हैं। 67 टेस्ट मैचों में 266 विकेट लेने वाले बिशन सिंह बेदी से एसजी गेंद और अन्य मुद्दों पर उमेश राजपूत ने बात की। पेश हैं मुख्य अंश-
आजकल एसजी गेंद की काफी खिलाफत हो रही है। इस गेंद को लेकर आपका क्या नजरिया है?
चाहे कूकाबुरा हो या ड्यूक, मेरे विचार से एसजी गेंद दुनिया भर में किसी भी गेंद से कम नहीं है। अश्विन, जडेजा या हमारे कोई भी स्पिनर या तेज गेंदबाज इसी का इस्तेमाल करते रहे हैं। गेंद की गुणवत्ता पर जो सवाल उठ रहे हैं, मैं उसका पक्षधर नहीं हूं क्योंकि गेंद को कुछ भी नहीं करना होता है। सब गेंदबाज को करना होता है। गेंदबाज में दमखम होगा तो किसी भी गेंद से अच्छा करेगा। बीसीसीआइ ने एसजी गेंद वालों के साथ अनुबंध किया हुआ है।
ऐसे में वह दूसरी गेंद कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं। कोई मुझे बताए कि जब बोर्ड अनुबंध कर रहा है तो गेंद की गुणवत्ता कैसे गिर सकती है। हां, कई बार ऑस्ट्रेलिया में भी गेंद का आकार खराब हो जाता है, इंग्लैंड में ऐसा होता है, कभी-कभी कोई गेंद खराब आ जाती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पूरा स्लॉट ही खराब हो। मेरा विचार है कि खिलाड़ियों का काम सिर्फ खेलना है।
यह बीसीसीआइ या आइसीसी तय करेंगे कि किस गेंद से खेलना है। जहां तक बल्ले की बात है तो उसे निर्माता अपने हिसाब से चुनते हैं, क्योंकि उसमें व्यवसायिकता शामिल है, जबकि गेंद में व्यवसायिकता शामिल नहीं है।
आपके समय में किस तरह की गेंद से मैच होते थे?
(हंसते हुए) हमें तो ये पता ही नहीं होता था कि गेंद कौन सी होती थी। भारत हो या ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड या कहीं भी हमें तो जो गेंद मिलती थी, हम उसी से खेलते थे। हम तो शुक्र मनाते थे कि हमें गेंद करने को मिली। उस वक्त आज की तरह के नखरे नहीं थे।
हम लोग उतने पेशेवर नहीं थे जितने कि आज के खिलाड़ी हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी खेल के प्रति लगन किसी से कम थी। हमें भी खराब गेंद मिली हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसा हो जाता है। मैं कहना चाहूंगा कि यह गनीमत है कि हमें एसजी टेस्ट गेंद जैसी गुणवत्ता वाली गेंद मिली।
उमेश यादव ने शिकायत की कि वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट में पुरानी एसजी गेंद से विकेट लेने में दिक्कत हुई और इसलिए निचले क्रम ने रन बनाए?
हमारे जमाने में आज की तरह बेहतरीन तेज गेंदबाज होते ही नहीं थे। रिवर्स स्विंग का तो बिलकुल भी जिक्र नहीं होता था। अरे आप रिवर्स स्विंग की बात करते हो, पहले गेंद को स्विंग तो ठीक से करना सीखो। जो नई गेंद है उसका तो फायदा उठाना सीखो। गेंद नई है, कठोर है, उसमें चमक है तो पहले इनस्विंग-आउटस्विंग तो करो, रिवर्स स्विंग तो बहुत बाद की बात है।
हमारी टीम सीमित ओवर क्रिकेट में विदेशों में भी अच्छा कर रही है, लेकिन उसे टेस्ट में क्या हो जाता है?
हम वेस्टइंडीज, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसी कमजोर टीम को यहां बुलाकर हराते हैं। घर में कोई भी शेर होता है। एक तरफ आप यह कहते हो कि हम घर में लगातार 10 सीरीज जीते हैं और दूसरी तरफ यह भूल जाते हो कि ये सभी सीरीज एसजी गेंद से ही जीती हैं। किसी और गेंद से नहीं। एसजी गेंद में खराबी है तो ये सीरीज कैसे जीते। हां, हमारे अंदर कुछ खामियां हैं, खासतौर से तकनीकी खामियां। जब हम ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका जाते हैं तो वे खामियां उजागर हो जाती हैं। इंग्लैंड में गेंद हिलती है तो वहां परेशानी आई।
ऑस्ट्रेलिया में बाउंस ज्यादा मिलता है, लेकिन मुझे लगता है कि इस बार हम ऑस्ट्रेलिया में बेहतर प्रदर्शन करेंगे, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया की टीम इतनी अच्छी नहीं है। हालांकि इतनी अच्छी तो इंग्लैंड भी नहीं थी, लेकिन उसने हमें बुरी तरह से हराया। सिर्फ कोहली के दम पर सीरीज नहीं जीत सकते। कोहली के स्तर और बाकी खिलाड़ियों के स्तर में जमीन-आसमान का फर्क है। बाकी खिलाड़ियों को भी अपना स्तर बढ़ाना होगा।
ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए हमें किन क्षेत्रों में सुधारों की जरूरत है?
सारी खामियां तकनीक की ही हैं, उनमें ही सुधार करने की जरूरत है। आज आइपीएल या टी-20 में कोई खिलाड़ी अच्छा करता है तो उसे टेस्ट में खिला लिया जाता है। मेरा मानना है कि आइपीएल का प्रदर्शन चयन का आधार नहीं होना चाहिए। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में जो खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करते हैं आप उन्हें टेस्ट टीम में जगह दीजिए।
विदेशों में टेस्ट सीरीज खेलने से पहले कुछ अभ्यास मैच भी होने चाहिए। हम जब खेलते थे तो वहां की हर टीम के साथ मैच खेलते थे। आज के खिलाड़ियों के पास इसके लिए समय ही नहीं है। इनको काफी क्रिकेट खेलनी होती है। जब तक इन्हें अभ्यास मैच की अहमियत समझ आती है तब तक दौरा खत्म हो जाता है।
आप 1977-78 के ऑस्ट्रेलिया दौरे में ना सिर्फ कप्तान थे, बल्कि दोनों टीमों की ओर से सबसे सफल गेंदबाज साबित हुए थे। आज के युवा आपकी उन यादों से जरूर रूबरू होना चाहेंगे?
आज की पीढ़ी आइपीएल की पीढ़ी है। वो जमाना गुजर चुका है। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के दो-तीन दौरे ऐसे हैं जहां अगर किसी ने लुत्फ नहीं उठाया तो उसका दोष किसी और को नहीं दिया जा सकता।
टीम में जडेजा और कुलदीप के रूप में बायें हाथ के स्पिनर हैं। उन्हें क्या सलाह देना चाहेंगे?
हमारे गेंदबाजी विभाग में कोई कमी नहीं है। चाहे तेज गेंदबाज हों या स्पिनर सभी अच्छा कर रहे हैं। विदेशों में 20 विकेट ले रहे हैं, लेकिन ये तो बल्लेबाजों की जिम्मेदारी होती है कि स्कोर बोर्ड पर कम से कम 350-400 रन तो टांगें। कोहली को छोड़कर कोई रन ही नहीं बना रहा है।
दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड में हार के बाद ऑस्ट्रेलिया में बतौर कप्तान कोहली की प्रतिष्ठा दांव पर होगी?
जब बाकी खिलाड़ी कुछ नहीं करेंगे तो अकेला कप्तान क्या कर लेगा। कप्तान उतना ही अच्छा होगा जितनी कि टीम। जब भी हम हारेंगे तो कप्तानी पर सवाल उठेंगे।
टीम में पृथ्वी शॉ, रिषभ पंत और जसप्रीत बुमराह जैसे नए खिलाड़ी आए हैं। उनके बारे में क्या कहेंगे।
अभी इन्हें विदेशों में खेलने दीजिए, वहां प्रदर्शन करने दीजिए, तब इनके बारे में बात करेंगे।
हाल में कुछ खिलाड़ियों का टीम प्रबंधन व चयनकर्ताओं के साथ संवाद को लेकर विवाद रहा?
(बीच में सवाल काटते हुए) माफ कीजिए, मैं इसमें कोई दखल नहीं दूंगा।
आपने मुथैया मुरलीधरन को चकर कहा था। वह अब टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज हैं। क्या आप अब भी अपनी बात पर कायम हैं?
यह बहुत पुरानी बात है, लेकिन मैं अपनी बात से क्यों पीछे हटूंगा। मैं कहना चाहूंगा कि किसी व्यक्तिगत खिलाड़ी के पीछे मत जाइए, जो क्रिकेट का सही तरीका और सलीका है उसके पीछे जाइए।