भोले की नगरी देख संन्यासिनी निहाल
कुंभ स्नान के बाद काशी पहुंचीं महिला संन्यासिनी, औघड़दानी भोलेनाथ की नगरी देख निहाल हो उठीं। गंगा घाटों की मन मोह लेने वाली रौनक और जगमग उन्हें यहां खींच लाई है। हनुमानघाट के निकट सीढि़यों पर बैठ गंगा को अपलक निहार रही संन्यासियों की नजर में बाबा की नगरी अद्भुत है। जूना अखाड़े में डेरा जमाए मीरा गिरि के अनुसार प्रयाग का कुंभ दान के लिए होता है लेकिन उस दान का पुण्य काशी में ही मिलता है। धर्म-कर्म की पूर्णता के लिए हम काशी आए हैं और शिवरात्रि का स्नान कर अपने आश्रम रवाना हो जाएंगे।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। कुंभ स्नान के बाद काशी पहुंचीं महिला संन्यासिनी, औघड़दानी भोलेनाथ की नगरी देख निहाल हो उठीं। गंगा घाटों की मन मोह लेने वाली रौनक और जगमग उन्हें यहां खींच लाई है। हनुमानघाट के निकट सीढि़यों पर बैठ गंगा को अपलक निहार रही संन्यासियों की नजर में बाबा की नगरी अद्भुत है। जूना अखाड़े में डेरा जमाए मीरा गिरि के अनुसार प्रयाग का कुंभ दान के लिए होता है लेकिन उस दान का पुण्य काशी में ही मिलता है। धर्म-कर्म की पूर्णता के लिए हम काशी आए हैं और शिवरात्रि का स्नान कर अपने आश्रम रवाना हो जाएंगे।
अब तक करीब तीन हजार महिला संन्यासिनों का जत्था यहां आ चुका है। इन्होंने विभिन्न अखाड़ों में डेरा जमाया है। अभी इनके आने का क्रम बना हुआ है। यह जत्था भोर में तीन बजे गंगा की ओर उमड़ता है।
स्नान-ध्यान के बाद पूर्वाह्न आठ बजे बालभोग (नाश्ता) के बाद भजन में लग जाता है। मध्याह्न में प्रसाद (भोजन) ग्रहण कर कुछ विश्राम करती हैं तो अधिकतर गंगा और घाट की अद्भुत छटा देखने निकल पड़ती हैं। शिवाला घाट के निकट घाट की सीढ़ी पर बैठ ओम् नम: शिवाय का जप कर रही लक्ष्मी पुरी ने बताया कि लंबे अरसे बाद बाबा का दर्शन हुआ। मां गंगा के साथ मंदिर-मठ, आश्रम और घाटों पर धूनी जमाए भूतभावन बाबा के गणों को भी देखा। बड़ा अद्भुत दृश्य है।
बताया, कुंभ में जिन 10 हजार महिला संन्यासियों का संस्कार हुआ है, उनमें से कुछ काशी आ गई हैं लेकिन अधिकतर वहीं हैं। शिवरात्रि तक इनमें से अधिकांश काशी आ जाएंगी। इनके लिए अग्नि अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा और जूना अखाड़ों में व्यवस्था की गई है।
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