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नन्हें क्रिकेटरों के सपनों को उड़ान दे रहे कोच ज्वाला सिंह

16 वर्ष की उम्र में यशस्वी को भारतीय अंडर 19 टीम में जगह मिली है।

By Sanjay SavernEdited By: Published: Fri, 08 Jun 2018 08:24 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jun 2018 10:37 AM (IST)
नन्हें क्रिकेटरों के सपनों को उड़ान दे रहे कोच ज्वाला सिंह
नन्हें क्रिकेटरों के सपनों को उड़ान दे रहे कोच ज्वाला सिंह

उमेश राजपूत, नई दिल्ली। दिग्गज बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के बेटे अर्जुन तेंदुलकर के चयन की वजह से भारतीय अंडर-19 टीम सुर्खियों में है। अर्जुन को श्रीलंका दौरे के लिए चार दिवसीय मैचों की टीम में चुना गया है। इस दौरे के लिए वनडे टीम भी चुनी गई, जिसमें ऑलराउंडर यशस्वी जायसवाल को भी जगह मिली। भदोही के रहने वाले यशस्वी का 16 साल की उम्र में अंडर-19 भारतीय टीम में चुना जाना उनकी प्रतिभा बताने के लिए काफी है, लेकिन इसका श्रेय उनके कोच ज्वाला सिंह को जाता है। ज्वाला का भारत के लिए खेलने का सपना कभी सच नहीं हुआ लेकिन वह कई लड़कों के सपने पूरा करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

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चुनौतियों का सामना : 36 वर्षीय ज्वाला मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के रहने वाले हैं और 1995 में 13 साल की उम्र में भारत के लिए खेलने का सपना लेकर मुंबई गए। उन्हें वहां कई बार भूखा रहना पड़ा तो कई बार फुटपाथ पर भी सोए। घर से मैदान दूर था इसलिए वह एक रात पहले ही दादर स्टेशन आते थे और वहीं रात बिताते थे और फिर सुबह अभ्यास के लिए मैदान पर पहुंच जाते थे। ज्वाला सचिन के कोच रमाकांत आचरेकर से कोचिंग लेना चाहते थे। आचरेकर ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन उनका जज्बा देखकर बाद में तैयार हो गए। सचिन जिस शारदाश्रम स्कूल में पढ़ते थे वहीं ज्वाला ने भी एडमिशन ले लिया। उन दिनों आचरेकर की तबीयत कुछ ठीक नहीं रहती थी, इसलिए उनसे दो-ढाई महीने तक ही ज्वाला ने क्रिकेट के गुर सीखे। ज्वाला बल्लेबाज बनना चाहते थे, लेकिन कोचों ने उन्हें तेज गेंदबाजी करने की सलाह दी। कोचों की चेतावनी के बावजूद गेंदबाजी का ज्यादा अभ्यास करना ज्वाला के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। इसके चलते वह बार-बार चोटिल हुए। चोटों ने उनका अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर बनने का सपना तोड़ दिया।

नई पारी शुरू की : कुछ समय बाद उन्होंने कोच के रूप में अपनी नई पारी शुरू की और 2011 में अपनी क्रिकेट अकादमी और ज्वाला फाउंडेशन की शुरुआत की। ज्वाला कहते हैं कि यह अच्छा ही हुआ क्योंकि यदि मैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलता तो मैं अकेला ही खेलता, लेकिन अब मेरी अकादमी के जरिये कई लड़के अपने सपनों को पूरा करेंगे। कोच के रूप में सफल होने पर भी ज्वाला अपने शुरुआती संघर्ष को नहीं भूले। मुंबई के आजाद मैदान में उन्हें पहली बार यशस्वी मिला। यशस्वी भी क्रिकेटर बनने 10 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश के भदोही से मुंबई आया था। यशस्वी को ज्वाला अपने साथ ले आए। उसे न सिर्फ क्रिकेट की बारीकियां सिखाईं, बल्कि उसका पूरा खर्चा उठाया। यशस्वी और उनका परिवार ज्वाला के कसीदे पढ़ते नहीं थकता। वहीं, अंडर-19 विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान पृथ्वी शॉ भी अपनी सफलता का बहुत बड़ा श्रेय ज्वाला को ही देते हैं।

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