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न्यूजीलैंड से मैच और सीरीज तो जीता भारत, लेकिन कितने काम की है यह जीत?

इस तरह के मैच करवाकर जीतने का क्या फायदा है?

By Bharat SinghEdited By: Published: Wed, 08 Nov 2017 01:08 PM (IST)Updated: Wed, 08 Nov 2017 05:54 PM (IST)
न्यूजीलैंड से मैच और सीरीज तो जीता भारत, लेकिन कितने काम की है यह जीत?
न्यूजीलैंड से मैच और सीरीज तो जीता भारत, लेकिन कितने काम की है यह जीत?

नई दिल्ली, भारत सिंह। भारत और न्यूजीलैंड के बीच तिरुअनंतपुरम में तीन मैचों की टी-20 सीरीज का आखिरी और निर्णायक मैच भारत के पक्ष में रहा। बारिश के कारण 20-20 ओवरों के इस मैच को घटाकर 8-8 ओवरों का कर दिया गया था। इस मैच में छह रनों से जीत की बदौलत भारत ने न्यूजीलैंड के खिलाफ पहली बार टी-20 सीरीज जीतने का कमाल किया और यह करीब तीन दशकों बाद तिरुअनंतपुरम में हुआ कोई अंतरराष्ट्रीय मैच भी था। 

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इस मैच में जीत के साथ ही भारत ने टी-20 क्रिकेट रैंकिंग में नंबर 1 पर विराजमान न्यूजीलैंड की टीम को दूसरे नंबर पर धकेलने का भी काम किया। इन सब उपलब्धियों के बावजूद एक खेल प्रेमी होने के नाते आपके दिमाग में एक सवाल आ सकता है कि 8-8 ओवरों के मैच से क्रिकेट का क्या भला हुआ!

खेलों में शर्तिया नतीजों के मायने

खेल विश्लेषक इस बात पर एकमत रहते हैं कि क्रिकेट के प्रारूप के छोटे होते जाने से इसकी गुणवत्ता से समझौता हुआ है। अब भी पांच दिवसीय टेस्ट मैचों को असली क्रिकेट कहा जाता है। हालांकि, अब टेस्ट मैचों पर भी संकट छाया हुआ है और खिलाड़ियों के विरोध के बावजूद आइसीसी इसे चार दिन का करने की योजना बना रही है। वनडे क्रिकेट भी 60 से घटकर 50 ओवरों का हो गया और इसके बाद ईजाद हुआ टी-20 क्रिकेट का जो आने वाले दिनों में 10-10 ओवरों का होने जा रहा है। क्रिकेट के इस छोटे होते प्रारूप की वजह यह है कि हम मैचों के शर्तिया नतीजे देखना चाहते हैं और वह भी कम से कम समय में। समाजशास्त्री आशीष नंदी खेलों में नतीजा देखने की उत्सुकता को खेलों में हिंसा से जोड़कर देखते हैं। 

टेस्ट में 400 रन बनाने के बाद ब्रायन लारा और 50वें टेस्ट शतक के बाद सचिन तेंदुलकर की प्रतिक्रिया

हिंसक होता क्रिकेट का खेल

क्रिकेट को भले ही "जेंटलमेन्स गेम" कहा जाता रहा हो, पर इसमें भी दूसरे खेलों सी हिंसकता शुमार हो गई है। यही वजह है कि अब आइसीसी ने अंपायरों को फुटबॉल और हॉकी के मैच रेफरी की तरह खिलाड़ियों को मैदान से बाहर करने के अधिकार दे दिए हैं। आइसीसी को उम्मीद है कि शायद इससे खिलाड़ियों के उग्र व्यवहार पर अंकुश लगाया जा सकेगा। बहुत दिन नहीं हुए जब टेस्ट क्रिकेट में शतक लगाने के बाद कोई बल्लेबाज शालीन तरीके से अपना हेल्मेट उतार कर आसमान की ओर देखता या जमीन को चूमता नजर आता था। अब वनडे और टी-20 में ही नहीं, टेस्ट मैचों में भी शतक लगाने के बाद बल्लेबाज इस आक्रामक अंदाज में उछलते और बल्ला चलाते नजर आते हैं मानो हवा में मौजूद अपने दुश्मन को बल्ले से ही मार डालेंगे। लगता है कि ये खिलाड़ी टीवी का पर्दा फाड़कर बाहर आ जाएंगे और लोग उन्हें गले लगा लेंगे। 

टेस्ट शतक बनाने के बाद ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी डेविड वॉर्नर 

कमजोर होती क्रिकेट की तकनीक

क्रिकेट पर नजर रखने वाले लोग जानते हैं कि हाल के सालों में बल्लेबाजी की कलात्मक विधा निरंतर कमजोर होती गई है। इसके साथ ही अब न तो पहले के जैसे तेज गेंदबाज सामने आ रहे हैं और न ही स्पिन गेंदबाज। कुछ सालों पहले तक ही वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, इंग्लैंड और न्यूजीलैंड और को तेज और स्विंग गेंदबाजों का अड्डा माना जाता था और एशिया में स्पिनर्स का बोलबाला रहा है। लेकिन ये सभी अब रिटायर हो चुके हैं। कई विश्लेषक तो यह भी कहते हैं कि क्रिकेट में महानतम गेंदबाजों का दौर चला गया। यानी अब पहले के जैसे गेंदबाज कभी देखने को नहीं मिलेंगे। बल्लेबाजी की बात करें तो तमाम सेफ्टी गियर्स आने के बावजूद बल्लेबाजों ने अपने बल्ले से मनमानी छेड़खानियां कीं। अब आइसीसी ने अब बल्ले की सीमा तय कर दी है। क्रिकेट में कलात्मकता के बजाए ताकत के आने के बाद अब इसके हर प्रारूप में किसी बल्लेबाज के कलात्मक जमीनी शॉट यानी चौकों से ज्यादा अहम उसके हवाई शॉट यानी छक्के माने जाते हैं। 

महानतन स्पिनर्स मुथैया मुरलीधरन और शेन वार्न 

बदला खेल, खिलाड़ियों का नुकसान

खेल के तीन प्रारूपों- टेस्ट, वनडे और टी-20 क्रिकेट खेलने से खिलाड़ियों की फिटनेस और खेल से समझौता हो रहा है। जो खिलाड़ी तीनों प्रारूपों में खेलते हैं, उनके लिए तकनीक से सामंजस्य बिठाना काफी मुश्किल है, क्योंकि तीनों तरह की सीरीज के बीच समय काफी कम मिलता है। मान लीजिए, 8-8 ओवर के मैच में कोई खिलाड़ी चोटिल हो जाता है तो उसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए। आपको याद होगा कि पिछले साल (2016) रांची टेस्ट मैच में फील्डिंग करते वक्त भारतीय कप्तान विराट कोहली चोटिल हो गए थे। तब ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों और विदेशी मीडिया ने टेस्ट मैचों में चार रन बचाने के चक्कर में कोहली के इस तरह चोटिल होने का मजाक भी उड़ाया था। तब कोहली एक बल्लेबाज और कप्तान के तौर पर अपने पीक पर थे, अगर वह उस चोट के बाद वापसी नहीं कर पाते तो यह खेल का कितना बड़ा नुकसान होता। शुक्र मनाइए कि इसके बाद कोहली को भारत में ही आइपीएल और लंबा घरेलू सीजन खेलना था, जिसमें वह शुरुआत में असफल रहने के बाद लय में आ गए थे। 

रांची टेस्ट में चोटिल कोहली

निर्णायक मैच का ऐसा हाल, तौबा-तौबा

तिरुअनंतपुरम में हुए 8-8 ओवरों के इस मैच ने सीरीज का नतीजा तय किया, लेकिन आठ ओवरों के खेल में न तो गेंदबाज अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं और न ही बल्लेबाज। रिकॉर्डबुक में यह दर्ज हो गया कि भारत के लिए इस मैच में सबसे ज्यादा रन मनीष पांडे (17 रन) ने बनाए। वह भले ही मैच के हीरो रहे हों, पर इस स्कोर से उनके करियर औसत पर अच्छा नहीं, बुरा असर ही पड़ेगा। आपने गौर किया होगा कि भारत के सभी पांच विकेट एक ही तरीके से आउट हुए, बड़ा शॉट खेलने के चक्कर में कैच आउट। गेंदबाजों के लिए इस मैच में करने को कुछ नहीं था। गेंदबाज को सबसे ज्यादा खुशी किसी बल्लेबाज को बोल्ड, एलबीडब्ल्यू या विकेट के पीछे कैच करवाने में मिलती है। अगर पिच से मदद न मिले तो आप फील्डिंग की मदद लेकर बल्लेबाज को आउट करवाने की कोशिश करते हैं। यह दूसरे स्तर की गेंदबाजी होती है। यही इस मैच में भी हुआ। भारत केवल 67 रन बनाकर जीत गया, जो आसान लक्ष्य लग रहा था, लेकिन भारतीय गेंदबाजों ने अविश्वसनीय प्रदर्शन से जीत हासिल की। 

रोहित के शानदार कैच लपकने पर खुशी मनाते विराट

किसके लिए है क्रिकेट का खेल?

खेल को मानवीय जीवन का अहम पहलू इसलिए माना जाता है, क्योंकि खेल हमें स्वस्थ रखते हैं। लेकिन आज खेलने की बजाए खेल देखने वालों की संख्या ज्यादा है। इन देखने वालों का दबाव इतना ज्यादा है कि कई दिनों से हो रही बारिश के बाद टी-20 मैच दो-ढाई घंटे देरी से करवाया जाता है। स्टेडियम में मौजूद जिन दर्शकों के लिए यह मैच आयोजित किया गया, यह उन क्रिकेट प्रेमियों के साथ भी धोखा ही था। चूंकि उन्होंने 20-20 ओवर का मैच देखने के लिए टिकट खरीदा था और उन्हें 8-8 ओवर का मैच देखने को मिला। इसके अलावा, विज्ञापनदाताओं का इतना दबाव है कि मैच का होना और उसको टीवी पर दिखाना भी मजबूरी है। आज टीवी कॉमेंटेटर किसी भी खिलाड़ी को एक ही मैच में विलेन या हीरो बना सकते हैं।

टी-20 सीरीज जीतने के बाद टीम इंडिया

यह सारी चीजें खेल और खिलाड़ियों को डिस्टर्ब करने लगी हैं। इसलिए, बीसीसीआइ के टेस्ट मैचों को बचाने के नारे से ही इस खेल का भला नहीं होगा, इसे मैदान के बाहर के तत्वों और तनावों से मुक्त करना होगा। वरना, आठ ही नहीं कभी एक-एक ओवर का मैच भी देखने को मिल सकता है और इसमें किसी टीम को उसकी योग्यता और खेल से नहीं बल्कि संयोग से ही जीत मिलेगी। और ऐसी जीत से खिलाड़ियों के मनोबल पर खास असर नहीं पड़ेगा।

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