जब दुर्लभ बीमारी का इलाज कराते समय इरफान खान को याद आया क्रिकेट का मक्का...
दो साल पहले इंग्लैंड में दुर्लभ बीमारी का इलाज कराने गए इरफान खान को याद आया था क्रिकेट का मक्का और वेस्टइंडीज के दिग्गज विवियन रिचर्ड्स।
नई दिल्ली, जेएनएन। बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री के हरफनमौला कलाकार इरफान खान ने 29 अप्रैल 2020 को अपनी अंतिम सांस ली। वैसे भी इरफान खान बीते दो साल से जिंदगी और मौत की एक महीन डोर से बंधे हुए थे, क्योंकि उनको एक दुर्लभ बीमारी थी, जिसका इलाज तो छोड़िए बीमारी के बारे में भी बहुत कम रिसर्च हुई थी। इरफान खान 2018 से न्यूरोएंड्रोक्राइन नामक कैंसर से जूझ रहे थे, जिसके लिए वे इंग्लैंड गए थे। इस बीमारी और क्रिकेट को उन्होंने अनिश्चितताओं का खेल बताया था।
इंग्लैंड में जब वे इलाज करा रहे थे तो उन्हें जिंदगी के कई रूप नजर आ रहे थे। उनके लिए उसी समय संसार ठहर गया था जब उनको ये पता चला कि जिस बीमारी से वे पीड़ित हैं उसका इलाज ही नहीं है। हालांकि, हिम्मत के साथ उन्होंने आगे बढ़ना जारी रखा, लेकिन बुधवार 29 अप्रैल 2020 को उनका निधन हो गया। इरफान खान जब अपनी इस दुर्लभ बीमारी का इलाज करा रहे थे तो उन्होंने क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड का जिक्र किया था। आज हम उसी किस्से को आपके साथ शेयर करना चाहते हैं।
दरअसल, इरफान खान ने बीमारी से जूझते समय एक पत्र कुछ मीडिया घरानों को लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि सिर्फ अनिश्चितता ही इस दुनिया में निश्चित है। अपनी बीमारी को दुर्लभ बताते हुए उन्होंने लिखा था, "जैसा कि मैं सूखा, थका हुआ, सूचीहीन तरीके से अस्पताल में प्रवेश कर रहा था, मुझे शायद ही एहसास हुआ कि मेरा अस्पताल लॉर्ड्स स्टेडियम के ठीक सामने था। मेरे बचपन के सपने का मक्का। दर्द के बीच, मैंने विवियन रिचर्ड्स का एक मुस्कुराता हुआ पोस्टर देखा। कुछ नहीं हुआ, मानो वह दुनिया कभी मेरी थी ही नहीं।"
"इस अस्पताल में मेरे ठीक ऊपर कोमा वार्ड भी था। एक बार जब मैं अस्पताल के कमरे की बालकनी पर खड़ा हुआ था तो एक अजीबोगरीब चीज ने मुझे झकझोर दिया। जीवन के खेल और मौत के खेल के बीच, बस एक सड़क है। एक तरफ, एक अस्पताल, दूसरी तरफ, एक स्टेडियम। जैसे कि कोई भी ऐसी चीज का हिस्सा नहीं है जो निश्चितता का दावा कर सकती है - न तो अस्पताल और न ही स्टेडियम। जिसने मुझे तोड़ दिया।"
मैं ब्रह्मांड की प्रचंड शक्ति और बुद्धिमत्ता के इस विशाल प्रभाव से बचा हुआ था। मेरे अस्पताल के स्थान की ख़ासियत मुझे प्रभावित करती थी कि सिर्फ अनिश्चितता ही निश्चित थी। मैं बस इतना कर सकता था कि मैं अपनी ताकत का एहसास करूं और अपना खेल बेहतर खेलूं।" उन्होंने आगे लिखा। इरफान खान के इस पत्र से साफ लग रहा था कि वे आस छोड़ चुके थे और मान चुके थे कि मुझे कोई दूसरा नहीं जिता सकता, मुझे खुद इससे लड़ना होगा और इस पर विजय प्राप्त करनी होगी, लेकिन दुर्भाग्य से ये संभव नहीं हो सका।