अब देखना होगा आइपीएल खेल के हित में है : बांबे हाई कोर्ट
बांबे हाई कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है जब देखना होगा कि क्या यह टूर्नामेंट क्रिकेट के खेल के हित में है।
जस्टिस एससी धर्माधिकारी और जस्टिस भारती डांगरे की खंडपीठ ने इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी की याचिका पर आदेश देते हुए यह कड़ी टिप्पणी की। इस याचिका में मोदी ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के जुलाई 2015 के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उन्हें फेमा मामले में गवाहों से जिरह करने की अनुमति नहीं दी गई थी। प्रवर्तन निदेशालय ने दक्षिण अफ्रीका में 2009 में खेले गए आइपीएल मैचों के दौरान विदेशी मुद्रा नियमों के कथित उल्लंघन का आरोप लगाया है।
कोर्ट ने मोदी की याचिका को मंजूरी दी और उनके वकील को गवाहों से जिरह करने की अनुमति दी, लेकिन साथ ही टूर्नामेंट को लेकर कड़ी टिप्पणी भी की। कोर्ट ने कहा, 'अगर आइपीएल में गंभीर उल्लंघन किए गए हैं, तो यही समय है, जबकि आयोजक यह अहसास करें कि पिछले दस वर्षों में टूर्नामेंट के आयोजन से क्या हासिल किया गया, जिसे खेल कहा जा सकता है..., क्योंकि यह अवैधता और कानून के उल्लंघन से भरा है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, 'आइपीएल ने हमें मैचों में सट्टेबाजी और फिक्सिंग जैसे शब्दों से परिचित कराया। केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) और आयोजकों के लिए विचार करने का समय है कि क्या आइपीएल का आयोजन खेल के हित में है।
पीठ ने मोदी की याचिका को मंजूरी देते हुए कहा कि यह अनुचित आदेश नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, क्योंकि निर्णय करने वाले प्राधिकारी ने मोदी के खिलाफ गवाहों के बयानों पर भरोसा करने जा रहे थे। कोर्ट ने इसके साथ ही कहा कि यह कार्रवाई काफी लंबी खिंच गई है। कोर्ट ने आदेश दिया, 'हम निर्णय करने वाले प्राधिकारी को गवाहों को दो मार्च को उपस्थित होने के लिए सम्मन जारी करने का निर्देश देते हैं। जिरह हर हाल में 13 मार्च तक समाप्त हो जानी चाहिए। कार्रवाई 31 मई तक पूरी हो जानी चाहिए।