MS Dhoni ने रांची नहीं अपनी कर्मभूमि चेन्नई से की रिटायरमेंट की घोषणा
MS Dhoni चाहते तो रांची से भी रिटायरमेंट की घोषणा कर सकते थे लेेकिन उन्होंने इसके लिए चेन्नई का चयन किया।
निखिल शर्मा, नई दिल्ली। रांची में जन्मे माही चेन्नई में थलाइवा (नेतृत्वकर्ता) बन गए। रांची धौनी की जन्मभूमि बनी तो क्रिकेट के उभार में चेन्नई उनकी कर्मभूमि बनी। यही कारण है कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा चेन्नई पहुंचकर की। वह तीन दिन पहले रांची में थे और वहां भी ऐसा कर सकते थे लेकिन उन्होंने इस फैसले के लिए चेन्नई को चुना।
सचिन-सचिन से गुंजायमान होने वाले भारतीय स्टेडियमों को माही-माही के शोर से भरने वाले धौनी ने 16 साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में गुजारने के बाद संन्यास लिया। क्रिकेट में धौनी शब्द का मतलब है धैर्य, हौसला, ओजस्वी, निर्भीक और इंसानियत। इन पांच शब्दों में धौनी का करियर समाया है।
धौनी को चाहने की वजह : सचिन भारतीय क्रिकेट के मसीहा बने। उन्होंने रनों के अंबार से दुनियाभर के प्रशंसकों को अपना दीवाना बना लिया लेकिन धौनी ने क्या किया? दरअसल, धौनी में अपनी ताबड़तोड़ बल्लेबाजी से पहाड़ जैसे लक्ष्य का पीछा करने की काबिलियत और दबाव को तमाचा मारने की हिम्मत दिखाई। एडम गिलक्रिस्ट, वीरेंद्र सहवाग और क्रिस गेल जैसे बल्लेबाज अपनी आक्रमक बल्लेबाजी से दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजों के कंधे झुका देते थे, लेकिन असल में निचले क्रम पर तो माइकल बेवन, अजय जडेजा जैसे खिलाड़ी आंखों के तारे थे, जो पहली पारी में गिरती टीम को संभालते थे, लेकिन 2006 में भारत के पाकिस्तान दौरे ने दूसरी पारी के फिनिशर की असल झलक पूरी दुनिया को दिखाई। ऐसा फिनिशर जिसकी तारीफ पाकिस्तान में तब के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ तक ने की। नम्र मुस्कान और सुनहरे लंबे बालों वालें इस माही ने एक समय दोनों देशों की राजनीति में हलचल मचा दी थी।
चाहत के साथ बढ़ने लगा भरोसा : एक समय था जब आठ रनों के औसत से लक्ष्य का पीछा करने की स्थिति में भारत में टीवी का बटन बंद कर दिया जाता था, लेकिन धौनी ने अपने हेलीकॉप्टर शॉट और मैच फिनिशिंग की नई तकनीक विकसित करके 12 के रिक्वॉयर्ड रन रेट को भी बौना साबित कर दिया।
कप्तानी की समझ : पाकिस्तान के खिलाफ 2007 टी-20 विश्व कप में टाई मैच में धौनी ने अपनी कप्तानी की समझ दिखाई। उन्होंने टाई मैच में सुपर ओवर में वीरेंद्र सहवाग और रॉबिन उथप्पा जैसे बल्लेबाजों से गेंद फिंकवाकर भारत को जीत दिलाई तो फाइनल में अंतिम ओवर जोगिंदर शर्मा को देकर देश को पहला टी-20 विश्व कप दिलाया। क्या कोई 2013 चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल को भूला पाएगा? जहां लगातार पिट रहे इशांत शर्मा को अंतिम ओवरों में लगाकर धौनी ने तीनों आइसीसी ट्रॉफी पहली बार जीतने वाले कप्तान का सहरा पहना था।
भरोसा जीतने के बाद आई जिम्मेदारी : जब लोगों को लगा कि धौनी सबसे बड़े मैच फिनिशर बन गए हैं तो उन्होंने जिम्मेदारी की चादर को ओढ़ ली। 2009 में श्रीलंका को हराकर भारत को पहली बार टेस्ट में नंबर एक रैंकिंग दिलाने वाले धौनी ने 2014 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बॉक्सिंग डे टेस्ट खत्म होने के बाद अपनी सफेद जर्सी टांग दी। दरअसल, उन्हें पता था कि वह सफेद गेंद के लिए ही बने हैं।
यह तो धौनी ही कर सकते थे : क्रिकेट को प्यार करने वाले इस देश ने सचिन जैसी खूबसूरत शख्सियत मैदान पर देखी थी। हां उस समय क्रिकेटरों की जिंदगी को निहारने के लिए सोशल मीडिया नहीं था लेकिन धौनी ने जो सीख मैदान के बाहर दी, वह शायद ऐसा करने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर रहे। उनके चर्चे मैदान के बाहर भी थे। लंबे सुनहरे बाल, अपनी मनपसंद बाइकों के लिए खुद मैकेनिक बनने का हुनर, नंबर 7 यानि फुटबॉल के दिग्गज क्रिस्टियानो रोनाल्डो के पसंदीदा नंबर को क्रिकेट की दुनिया में प्रसिद्ध करने का हुनर तो सिर्फ माही में ही था।
आखिरी गेंद पर छक्का लगाकर पूरे देश को एक साल में दो दीपावली देने का मौका तो सिर्फ अपने माही ने ही दिया था। हार्दिंक पांड्या जैसे युवाओं को हेलीकॉप्टर शॉट लगाने की तकनीक तो धौनी ने ही सिखाईं। रोहित शर्मा जैसे बल्लेबाज को ओपनिंग पर निडर होकर खेलने का मौका भी तो धौनी ने ही दिया। अचानक से शादी तक के फैसले को दुनिया के सामने लाने के बाद अचानक संन्यास भी तो धौनी ने ही लिया। आखिरकार, धौनी अब नीली जर्सी में नहीं दिखेंगे, रहेंगी तो 22 गज की पिच पर उतरने वाले क्रिकेटरों के मन में उनके लिए सम्मान और सीख।