थी गोलकीपर बनने की चाह, मगर बन गए विकेटकीपर
ये दिसंबर 2004 का समय था. भारतीय टीम वनडे मैच खेलने के लिए बांग्लादेश जाने वाली थी। थोड़े पहले ही प्रथम श्रेणी क्रिकेट में झारखंड के महेंद्र सिंह धौनी ने अपनी आक्रामक बल्लेबाजी से चयनकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा था। चयनकर्ताओं ने उन्हें उस टीम में चुन लिया जो
नई दिल्ली । ये दिसंबर 2004 का समय था, भारतीय टीम वनडे मैच खेलने के लिए बांग्लादेश जाने वाली थी। थोड़े पहले ही प्रथम श्रेणी क्रिकेट में झारखंड के महेंद्र सिंह धौनी ने अपनी आक्रामक बल्लेबाजी से चयनकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा था। चयनकर्ताओं ने उन्हें उस टीम में चुन लिया जो बांग्लादेश का दौरा करने वाली थी। इसके बाद धौनी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
कराची के अपने स्कूल में वह बचपन में फुटबॉल की टीम में थे। कभी-कभार बैडमिंटन खेल लेते थे। क्रिकेट से कोई नाता नहीं था। वह क्रिकेट खेलना भी नहीं चाहते थे। फुटबॉल में वह गोलकीपर थे। स्थानीय कोच के तौर पर महेंद्र सिंह धौनी को तराशने में भूमिका निभाने वाले चंचल भट्टाचार्य कहते हैं, 'मैं अक्सर उनके फुटबॉल कोच से कहता था। अरे भई, इस लड़के को क्रिकेट में भेजो। एक दिन हमारा क्रिकेट मैच था। हमारा विकेटकीपर नहीं आया।
ये उनकी किस्मत ही थी कि हमने उनसे विकेटकीपर बनने के लिए कहा। मुझे लगा कि वह फुटबॉल की गोलकीपिंग करते हैं, इसलिए यहां भी विकेटकीपिंग कर लेंगे। उन्होंने अच्छा खेल दिखाया। इस काम में खूब हिम्मत चाहिए थी और हिम्मत उनके भीतर शुरू से ही कूट-कूटकर भरी हुई थी।' इसके बाद उनका क्रिकेट का सफर शुरू हो गया और उन्होंने सफलता की नई इबारत लिख डाली।
विवादों से भी रहा कैप्टन कूल का नाता
आज तक धौनी ने कोई बड़बोला बयान नहीं दिया. न ही कभी उन्होंने ऐसी बात की, जिससे लगा हो कि सफलता का नशा उनके सिर पर सवार हो गया हो। लेकिन विवादों से उनका नाता नहीं रहा हो, ऐसा भी नहीं है. उन पर हमेशा अपने पसंदीदा खिलाडि़यों को टीम में जगह देने के आरोप लगते रहे हैं।
कुछ लोग उन्हें हठी और जिद्दी कहते हैं। ये बात उनके नजदीकी भी स्वीकार करते हैं। वह बेशक रिएक्ट नहीं करते। सबकी बात सुनते भी हैं लेकिन जो एक बार सोच लेते हैं, करते वही हैं। जब टीम में सीनियर खिलाड़ी हुआ करते थे, तो उनमें कई के साथ धौनी के संबंध कोल्डवार सरीखे बताए जाते हैं।
टकराने वालों का हुआ करियर खराब
धौनी की एक छवि एक कूटनीतिज्ञ की भी है। चालें चलते हैं लेकिन चुपचाप। उनकी पसंद और नासंपद भी एकदम तय है। टीम इंडिया में ऐसा कोई भी नहीं रह पाया, जिसने उनका विरोध किया। एक जमाने में जिन स्टार क्रिकेटरों के बारे में माना जाता था कि उन्हें टीम से हटाना मुश्किल होगा और जिन क्रिकेटरों को कप्तान की दौड़ में उनका प्रतिद्वंद्वी माना जाता रहा, वो अब टीम में नहीं हैं और इस तरह बाहर हुए हैं कि उनके अंतरराष्ट्रीय करियर पर भी पूर्ण विराम लग गया सा माना जा सकता है।
बन गए अकूत संपति के मालिक
धौनी की जीवनशैली समय के साथ बदलती गई। वह भारतीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाले खिलाड़ी हैं। उनके पास प्रचुर संपत्ति है। तमाम जगहों पर धन निवेश कर रखा है। महंगी कारों और बाइक का काफिला है उनके पास। देश के महानगरों में उनके पास आलीशान फ्लैट हैं। रांची में उनका नया बंगला वहां के सबसे शानदार घरों में है। इसके बावजूद उनके दोस्त कहते हैं कि वह आज भी नहीं बदले हैं। जमीन से उतने ही जुड़े हैं, जितना पहले थे। सफलता के बावजूद उनका व्यक्तित्व सामान्य लोगों सरीखा ही है। आज भी वह उतने ही शर्मीले हैं,जितना पहले थे।
सचिन के बाद सबसे बड़ा नाम
देश की बहुराष्ट्रीय कंपनियों, कॉरपोरट जगत और खेल प्रेमियों को सचिन तेंदुलकर के बाद जिस बड़े आयकन की तलाश थी, वो धौनी पर आकर खत्म होती हुई लगी। ब्रांड धौनी को और बड़ा बनाने का काम कभी उनके साथ रणजी ट्रॉफी में खेल चुके वाराणसी के एक युवक अरुण पांडे ने किया। करीब 16 साल पहले अरुण पांडे उन्हें लेफ्ट आर्म स्पिन गेंद कर रहे थे। अब वह उनके दोस्त, विश्वसनीय, मैनेजर और बिजनेस पार्टनर हैं।
ब्रांड धौनी को सबसे बेशकीमती बनाने का काम अगर धौनी ने मैदान में कामयाबियों के सिलसिले के साथ किया तो अरुण पांडे ने उनकी कीमत को चार चांद लगाने का काम मैदान के बाहर काम किया। अरुण पांडे की रिती स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के साथ जब धौनी जुलाई 2010 में जुड़े तब वह एक अनुबंध के लिए तीन करोड़ लेते थे। इसके बाद उनकी करार की कीमत दस करोड़ तक पहुंच गई। पहले वह एक साल में अगर विज्ञापन अनुबंधों से 40 करोड़ कमा रहे थे, तो अब उनकी कमाई सालाना 100 करोड़ रुपये हो गई। कीमत बढ़ने के बावजूद ब्रांड्स के करार भी बढ़ते चले गए।
कैसे याद करेगा उन्हें इतिहास
इतिहास उन्हें किस तौर पर याद करेगा ये भविष्य बताएगा, हालांकि ये तय है कि वह हमेशा भारत के सबसे कामयाब कप्तान माने जाएंगे। लेकिन विदेशी दौरों में लगातार लग रहे झटकों ने उनकी कप्तानी के कमजोरियों को भी बखूबी जाहिर कर दिया है। पहले लगातार कूल रहने वाले धौनी अब अक्सर झल्ला जाते हैं। वह प्रेस कांफ्रेंस में आना नहीं चाहते। मीडिया से रूबरू नहीं होना चाहते। उनके पास कभी 43 ब्रांड के करार थे जो अब कम हो रहे हैं। वर्ष 2012 में पांच ब्रांड्स ने उनसे नाता तोड़ लिया। इसके बाद ये संख्या फिर और कम हो गई।
पिछले साल उनके कोई बड़े करार नहीं हुए। आइपीएल-6 के मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी विवाद ने उनके यशगाथा के साथ नकारात्मक पहलू जोड़ दिए। पहले तो लोगों को लगता था कि गुरुनाथ मयप्पन बेशक दोषी हो सकते हैं, लेकिन धौनी शायद उनके साथ जुड़े हों, लेकिन मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट के साथ एसपी संपत कुमार की बातों ने उन्हें ऐसी स्थितियों में ला दिया है, जिसका सामना इससे पहले शायद ही उन्होंने किया हो। ये मुश्किल स्थिति है जो और दुरुह बन सकती है।
उनकी ताजा तस्वीरों में मुस्कुराहट के पीछे छिपी परेशानियां, तनाव और उदासी साफ झलकती है। उन्हें भी मालूम है कि फिलहाल वह ऐसे महानायक हैं कि जिस पर ऊंगलियां उठी हुई हैं। हालांकि उनके पहले कोच चंचल चक्रवर्ती को विश्वास है कि इन सब आरोपों से वह पाक-साफ निकलेंगे।