भारत का ये शहर, जहां मिलते हैं गेंदबाज ही गेंदबाज
दिल्ली से यही कोई 70 किमी. दूर बसे इस शहर के साथ मेट्रो विशेषण जोडऩे की काफी वजहें हैं, लेकिन मेरठ की सुबह एक कस्बाई उनींदेपन से भरी होती है, आंख मिचमिचाती हुई। ऐसे ही किसी उबासी भरी सुबह में आप भामाशाह पार्क, कैलाश प्रकाश जैसे स्टेडियमों का रुख करें
अनुराग शुक्ल, मेरठ। दिल्ली से यही कोई 70 किमी. दूर बसे इस शहर के साथ मेट्रो विशेषण जोडऩे की काफी वजहें हैं, लेकिन मेरठ की सुबह एक कस्बाई उनींदेपन से भरी होती है, आंख मिचमिचाती हुई। ऐसे ही किसी उबासी भरी सुबह में आप भामाशाह पार्क, कैलाश प्रकाश जैसे स्टेडियमों का रुख करें तो नेट पर पसीना बहाते हुए लड़कों को देखकर ऐसा लगेगा कि जैसे वे मौजूदा टीम इंडिया से किसी न किसी को बेदखल करके ही मानेंगे।
इस समय क्रिकेट की सुर्खियां, सचिन की आत्मकथा, चैपल, गांगुली से सचिन की नजदीकी और द्रविड़ से मनमुटाव तक सिमटी हुई हैं। ऐसे में आस्ट्रेलिया जाने वाले टेस्ट टीम में मेरठ के दो लड़के हैं, यह खबर भले सुर्खियों के दूसरे पायदान पर रह जाती हों, लेकिन इसका संदेश दूर तक देखने वाला और देर तक सोचने वाला है। प्रवीण कुमार (पीके) फिलहाल टीम से बाहर हैं, लेकिन ठीकठाक वक्त के लिए उनके पास टेस्ट कैप रही। भुवनेश्वर, करन शर्मा मौजूदा टेस्ट टीम में हैं। सुदीप त्यागी भी खुद को साबित कर चुके हैं और लगातार टीम इंडिया का दरवाजा खटखटा रहे हैं।
- 'स्विंग के सुल्तान, फिरकी के फरिश्ते':
भामाशाह पार्क, कैलाश प्रकाश या करन पब्लिक स्कूल के मैदानों की किस्मत शिवाजी पार्क जैसी नहीं है। जहां दस ग्यारह साल की उम्र में ही नेट पर खेलते हुए आपको सुनील गावस्कर और दिलीप वेंगसरकर जैसे लोग देखें और किसी खूबसूरत कवर ड्राइव पर रीझ कर आपको अपने पैड बख्शीश में दे दें। ये लड़के महान टेनिस खिलाड़ी जान मैकनरो (सचिन अपनी कोचिंग के दिनों से मैकनरो के प्रशंसक हैं) के फैन भले ही न हों, लेकिन इनके क्रिकेट जीवन की शुरुआत टेनिस बॉल से ही होती है। इसी टेनिस बॉल के सहारे मेरठ के ये स्थानीय 'स्विंग के सुल्तानÓ और 'फिरकी के फरिश्तेÓ अपने गुरुओं तक पहुंचते हैं। ये गुरु अचरेकर सर जैसे ख्यातिलब्ध नहीं होते। प्राथमिक स्तर पर संसाधनों के घोर अभाव में भी अपने गली क्रिकेट के शिष्यों को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए गढऩा कोई हंसी खेल नहीं होता। हर सुबह नेट पर क्रिकेटरों की अलग-अलग पीढिय़ों को प्रशिक्षण देते संजय रुस्तगी, विपिन वत्स और अतहर अली जैसों की भूमिका मेरठ को क्रिकेट के नक्शे में चमकाने में नींव की ईंट जैसी है। सचिन की आत्मकथा (प्लेइंग इट माई वे) को अगर हर मध्यमवर्गीय भारतीय की सफलता का औपन्यासिक चित्रण माना जा रहा है, तो मेरठ के मैदानों पर गेंद और बल्ले के साथ खेलते लड़के उसी मध्यमवर्गीय आकांक्षा का लघु संस्करण हैं, जिन्हें अपने अपने स्तर पर विस्तार लेना है।
- 'बॉल इट लाइक भुवी'
मेरठ की रोजमर्रे के जबान में अंग्रेजी ज्यादा इस्तेमाल नहीं होती, वर्ना बॉल इट लाइक भुवी और कॉट इट लाइक करन, बेंड इट लाइक बेकहम के देशी संस्करण होते। टीम में मेरठ से हर चयन एक नई संभावना को जन्म देता है और धुंधले जमाने की कड़वी यादों से भी राहत देता है। जब यूपी के क्रिकेट की दुनिया बहुत हद तक कानपुर के ग्रीन पार्क के रिवर एंड और पैवेलियन एंड तक सिमटी हुई थी। गोपाल शर्मा, आशीष विस्टन जैदी, ज्ञानेंद्र पांडे की कहानी तब तक सालती रही, जब तक कैफ, आरपी और रैना टीम में नहीं आ गए। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ के मुख्यालय के पते पर अभी भी ई-23, 24 कमलानगर टाउनशिप, कानपुर दर्ज है, लेकिन हालात बहुत बदल चुके हैं। मेरठ अब सिर्फ गजक, रेवड़ी, खेल उद्योग, अपराध और दंगों के लिए ही नहीं जाना जाता। पिछले 21 सालों से भले ही इस शहर को केंद्रीय मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी न मिली हो, लेकिन शहर ने खुद को अभिव्यक्त करने और प्रतिनिधित्व देने के नए तरीके निकाल लिए हैं। एक छोर से भुवनेश्वर की स्विंग और दूसरे छोर से करन की फिरकी ऑस्ट्रेलिया में बताएगी कि सत्ता केवल राजनीतिक चेहरा लिए नहीं होती है। मेरठ अब भारतीय क्रिकेट की नई शक्तिपीठ है। क्रिकेट का सामाजिक इतिहास लिखने वाले राम चंद्र गुहा जैसे इतिहासकारों की उलझन यह होगी कि वे इस प्रक्रिया को क्या नाम दें? क्रिकेट की टेनिस बॉल वाली हरित क्रांति?