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क्या से क्या हुआ और यूं पलट गई भारतीय क्रिकेट की सियासत

आज भारतीय क्रिकेट की सत्ता में बड़ा बदलाव हुआ। वैसे हवा में ज्यादा बदलाव तो नहीं है लेकिन मौसम का मिजाज थोड़ा जरूर बदला है। लंबे समय से बीसीसीआइ अध्यक्ष पद की कुर्सी पर जमकर बैठे एन.श्रीनिवासन की जगह आखिरकार कोई और (जगमोहन डालमिया) इस कुर्सी पर काबिज हुआ है।

By ShivamEdited By: Published: Mon, 02 Mar 2015 02:09 PM (IST)Updated: Mon, 02 Mar 2015 03:23 PM (IST)
क्या से क्या हुआ और यूं पलट गई भारतीय क्रिकेट की सियासत

(शिवम् अवस्थी), नई दिल्ली। आज भारतीय क्रिकेट की सत्ता में बड़ा बदलाव हुआ। वैसे हवा में ज्यादा बदलाव तो नहीं है लेकिन मौसम का मिजाज थोड़ा जरूर बदला है। लंबे समय से बीसीसीआइ अध्यक्ष पद की कुर्सी पर जमकर बैठे एन.श्रीनिवासन की जगह आखिरकार कोई और (जगमोहन डालमिया) इस कुर्सी पर काबिज हुआ है। यूं तो डालमिया को भी श्रीनि गुट का ही समर्थन था लेकिन उनकी प्रशासक क्षमता को देखते हुए वो निर्विरोध चुने गए लेकिन सचिव पद पर भी उलटफेर हुआ और गैर-श्रीनिवासन गुट के अनुराग ठाकुर ने संजय पटेल की जगह इस पद पर विजय हासिल की। आखिर जिस क्रिकेट बोर्ड में श्रीनिवासन और उनके गुट की इतनी मजबूत पैठ और सत्ता पर काबिज रहने की ललक थी, वो मौसम बदला कैसे। आइए एक नजर डालते हैं, क्यों, कब और कैसे हुआ ये।

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- आइपीएल स्पॉट फिक्सिंग विवादः

आइपीएल में स्पॉट फिक्सिंग विवाद ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। 16 मई 2013 को दिल्ली पुलिस ने आइपीएल के तीन खिलाड़ियों को गिरफ्तार किया जिसके बाद बोर्ड ने राजस्थान रॉयल्स के इन तीन खिलाड़ियों को बर्खास्त कर दिया।

- निकलकर आया वो बड़ा नामः

इसी बीच फिक्सिंग जांच के दौरान एक ऐसा नाम निकलकर सामने आया जिसने सभी के होश उड़ा दिए। ये नाम था श्रीनिवासन के मालिकाना हक वाली आइपीएल टीम चेन्नई सुपरकिंग्स के टीम प्रिंसिपल गुरुनाथ मयप्पन का। मयप्पन श्रीनिवासन के दामाद हैं, बस यहीं से बीसीसीआइ अध्यक्ष पद पर काबिज श्रीनिवासन के लिए मुश्किलें शुरू हो गईं।

- तीन बड़े अधिकारियों के इस्तीफेः

इसी बीच मई 2013 में बीसीसीआइ के दो बड़े अधिकारियों, सचिव संजय जगदले और कोषाध्यक्ष अजय शिरके ने इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि वो इस बात से खुश नहीं थे कि बीसीसीआइ पर फिक्सिंग मामले की सही जांच न कराए जाने के लिए कीचड़ उछाला जा रहा था। ये दोनों ऐसी संस्था से दूर रहना चाहते थे जिसकी छवि बिगड़ रही हो.....लेकिन सफर यहीं नहीं थमा, तमाम आलोचनाओं और दबाव के बीच आइपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला ने भी अपने पद से इस्तीफा दे डाला और फिर इन इस्तीफों की खबर आग की तरह फैली, साथ ही बीसीसीआइ की बिगड़ती छवि भी।

- दबाव के बीच आया एक बड़ा ट्विस्ट, हुई डालमिया की पहली एंट्रीः

जो श्रीनिवासन कभी अपने अध्यक्ष पद से टस से मस नहीं होना चाहते थे, आखिर दबाव के बीच उन्होंने इस पद से कुछ समय दूर रहना बेहतर समझा और उन्होंने तय किया कि जब तक आइपीएल मामले की जांच पूरी नहीं होती तब तक वो दूर रहेंगे। इस बीच पूर्व बीसीसीआइ अध्यक्ष और बंगाल क्रिकेट संघ के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया को बोर्ड के दैनिक मामलों की देखरेख करने की जिम्मदारी दी गई।

- बोर्ड की बिगड़ती छवि और बॉम्बे हाइकोर्ट का वो फैसलाः

बोर्ड की छवि लगातार बिगड़ रही थी। एक तरफ आइपीएल विवाद था, दूसरी तरफ खेल मंत्रालय बीसीसीआइ को आरटीआइ के तहत काम करने का दबाव बना रहा था। इसी बीच बॉम्बे हाइकोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान फैसला सुनाया कि आइपीएल फिक्सिंग विवाद की जांच के लिए बीसीसीआइ ने जो पैनल बनाया है वो गैरकानूनी है। इसके साथ ही स्पॉट फिक्सिंग मामला एक बाद फिर लाइमलाइट में आ गया जिसकी वजह से बीसीसीआइ को अपनी एक बैठक भी अचानक रद्द करनी पड़ी।

- बिहार क्रिकेट एसोसिएशन का वार और सुप्रीम कोर्ट का नोटिसः

इसी बीच बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के आदित्य वर्मा भी बोर्ड के मामलों पर तीखी नजर रखे हुए थे और उसने एक याचिका में कोर्ट से मांग की, कि एक नया जांच पैनल बनाकर आइपीएल मामले की जांच हो जिससे श्रीनिवासन दूर रहें। इसके बाद अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने भी बीसीसीआइ, एन.श्रीनिवासन, श्रीनि की कंपनी इंडिया सीमेंट्स और राजस्थान रॉयल्स को नोटिस जारी किया कि एक नया जांच पैनल अब तक क्यों नहीं बनाया गया। इसी बीच सवानी रिपोर्ट में चार खिलाड़ियों को आइपीएल फिक्सिंग मामले में दोषी पाया गया जिनमें श्रीसंत और चवान को आजीवन प्रतिबंध झेलना पड़ा। जबकि दूसरी तरफ जमानत पर बाहर गुरुनाथ मयप्पन एक बार फिर चर्चा में आए क्योंकि उन पर सट्टेबाजी का आरोप लगा।

- मुद्गल जांच समिति की 'एक्टिव' भूमिकाः

कोर्ट ने जस्टिस मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता वाली एक जांच समिति को हरी झंडी दी थी और इस जांच समिति ने अपना काम तेजी से शुरू किया जिससे श्रीनि और बोर्ड की मुश्किलें और तेज हो गईं। नए साल में मुद्गल समिति ने सौरव गांगुली को भी अपने काम के साथ जोड़ा। मुद्गल समिति ने जब अपनी पहली रिपोर्ट सौंपी तो इससे श्रीनि की मुश्किलें और इसलिए बढ़ गईं क्योंकि इसमें साफ तौर पर उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन को सट्टेबाजी का दोषी पाया गया जिससे श्रीनि, उनकी कंपनी इंडिया सीमेंट्स और बीसीसीआइ की भूमिका भी संहेद के घेरे में आ गई।

- सुप्रीम कोर्ट ने श्रीनिवासन को हटने का सुझाव दियाः

बीसीसीआइ की हालत बिगड़ चुकी थी और इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए श्रीनिवासन को बीसीसीआइ के अध्यक्ष पद व बोर्ड से दूर रहने का सुझाव व नसीहत दी ताकि जांच का रुख निष्पक्ष रह सके।

- कोर्ट ने गावस्कर को दी नई एंट्री, किए बड़े बदलावः

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अद्भुत फैसले में पूर्व भारतीय दिग्गज कप्तान सुनील गावस्कर को श्रीनिवासन की जगह बीसीसीआइ अध्यक्ष पद और बाद में आइपीएल प्रमुख की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी भी कुछ समय के लिए सौंप डाली। जाहिर तौर पर ये श्रीनि के लिए बड़ा झटका था। इसके साथ ही श्रीनि की कंपनी इंडिया सीमेंट्स से जुड़े हर इन्सान को बीसीसीआइ से दूर रहने का आदेश दिया गया। इसके बाद 15 अप्रैल 2014 में श्रीनि की बेचैनी बढ़ी और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि उनको बीसीसीआइ में लौटने की इजाजत दी जाए। ये बिहार क्रिकेट संघ की याचिका के खिलाफ अर्जी थी लेकिन कोर्ट ने श्रीनि की इस मांग को नहीं माना।

- मुद्गल समिति की फाइनल जांच रिपोर्ट और श्रीनि की आफतः

नवंबर 2014 में मुद्गल समिति ने आइपीएल फिक्सिंग मामले में अपनी रिपोर्ट सौंपी और इस रिपोर्ट में आइपीएल सीओओ सुंदर रमन, राजस्थान रॉयल्स के सह-मालिक राज कुंद्रा, चेन्नई सुपरकिंग्स के टीम प्रिंसिपल और श्रीनि के दामाद गुरुनाथ मयप्पन के साथ-साथ खुद श्रीनिवासन का नाम भी दोषियों में शामिल था जिस वजह से अब श्रीनिवासन पर गाज गिरना तय थी क्योंकि आइपीएल फिक्सिंग के दौरान उन्होंने अपनी आंखों के सामने सब गलत होते देखा था पर नजरअंदाज किया था। इसी बीच बीसीसीआइ की वार्षिक बैठक एक बार फिर टल गई और उसे जनवरी 2015 तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

- सुप्रीम कोर्ट का सख्त फैसलाः

सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2015 के अंत में अपने एक फैसले के दौरान श्रीनि से कहा कि या फिर वो बीसीसीआइ को चुनें या फिर चेन्नई सुपरकिंग्स को क्योंकि दोनों नाव पर पैर रखने की इजाजत उनको नहीं दी जाएगी। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि श्रीनि बोर्ड के चुनावों में हिस्सा तो ले सकते हैं लेकिन सिर्फ वोट डालने में सक्षम होंगे न कि खुद चुनाव में खड़े हो सकेंगे। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआइ को आदेश दिया कि छह हफ्ते के अंदर-अंदर बीसीसीआइ के चुनाव कराए जाएं। इसी बीच फरवरी में जब बीसीसीआइ की एक बैठक में श्रीनिवासन ने अध्यक्ष्ता की तो इस पर भी बवाल उठा और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन ने इस पर सवाल उठाए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी श्रीनि को फटकार लगा दी।

- आखिरकार हुआ वो फैसलाः

बीसीसीआइ की बैठक की अध्यक्ष्ता करने को लेकर श्रीनिवासन ने लिखित तौर पर सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी और ये भी तय हो गया कि श्रीनि अब चुनाव नहीं लड़ेंगे यानी वो दोबारा बीसीसीआइ अध्यक्ष पद पर नहीं काबिज हो सकेंगे। अंत में 2 मार्च 2015 को बीसीसीआइ की चर्चित एजीएम (वार्षिक आम बैठक) हुई, चुनाव हुए और जगमोहन डालमिया को श्रीनि और गैर-श्रीनि गुट के समर्थन के बाद निर्विरोध नया बीसीसीआइ अध्यक्ष चुना गया जबकि सचिव पद पर भारतीय जनता पार्टी के युवा नेता व हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन के अनुराग ठाकुर ने जीत हासिल की। कुल मिलाकर भारतीय क्रिकेट के प्रशासन में शीर्ष स्तर पर लंबे समय बाद बदलाव देखने को मिला।


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