Ind vs Aus: सबसे बड़ी वनडे सीरीज और बराबरी की लड़ाई के लिए हो जाइये तैयार
India vs Australia भारत को ऑस्ट्रेलियाई टीम से कड़ी टक्कर मिलने की पूरी उम्मीद है और ये सीरीज बेहद रोमांचक साबित होगी।
अभिषेक त्रिपाठी, नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलियाई टीम मंगलवार से शुरू होने वाली तीन वनडे मुकाबलों की सीरीज खेलने के लिए भारत पहुंच चुकी है। विराट कोहली की टीम भी श्रीलंका को तीन टी-20 मैचों की सीरीज में 2-0 से हराकर एक नई सीरीज के लिए तैयार है। एक के बाद एक सीरीज की आपाधापी से भले ही कुछ लोग खुश नहीं हों लेकिन भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बराबरी की लड़ाई देखने के लिए सभी तैयार होंगे। ऑस्ट्रेलिया ने पिछले साल वनडे विश्व कप से पहले भारत में खेली पांच वनडे मुकाबलों की सीरीज में मेजबान टीम को 3-2 से पराजित किया था।
आरोन फिंच की कप्तानी में एक बार फिर कंगारू वही करिश्मा दोहराने को तैयार हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस बार फिंच की टीम में डेविड वार्नर और स्टीव स्मिथ भी हैं जो पिछली बार प्रतिबंध के कारण भारत नहीं आ सके थे। भारत आइसीसी वनडे रैंकिंग में दूसरे और ऑस्ट्रेलिया तीसरे नंबर पर है और इसी कारण इसे बैटल ऑफ इक्वल यानी बराबरी का मुकाबला कहा जा रहा है।
गावस्कर की टीम से विराट की सेना तक का सफर : भारतीय प्रशंसकों के लिए भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया मैच सालों तक अंडरडॉग और चैंपियन के बीच मुकाबला रहा। भारत को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कोई सीरीज जीतने में 31 साल लग गए, जब सुनील गावस्कर के नेतृत्व में भारतीय टीम ने 1979 में ऑस्ट्रेलिया को अपने घर में टेस्ट सीरीज में 2-0 से शिकस्त दी थी। सात साल बाद दोनों देशों ने भारत में यादगार सीरीज खेली जहां पर चेन्नई का टाई टेस्ट शामिल था।
यह दोनों टीम भले ही अभी सिर्फ तीन वनडे मैचों की सीरीज खेल रही हों लेकिन सबकी नजर इस साल ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी-20 विश्व कप और इस साल के आखिरी में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर है। टी-20 विश्व कप के बाद भारत ऑस्ट्रेलिया में चार टेस्ट तीन वनडे और तीन टी-20 खेलेगा। पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में अपनी कप्तानी में पहली बार भारत को टेस्ट सीरीज में जीत दिलाने वाले विराट इस कारनामे को दोबारा दोहराना चाहेंगे।
बॉर्डर भी हैं दीवाने : भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच गावस्कर-बॉर्डर ट्रॉफी खेली जाती है जो दोनों देशों के दिग्गज कप्तानों के नाम पर है। पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एलन बॉर्डर ने 2016 में कहा था कि दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा शानदार रही है। यह 1986 में टाई टेस्ट से शुरू हुई। हम इससे पहले एक दूसरे के खिलाफ ज्यादा टेस्ट नहीं खेले थे। मैं यहां 1979 में आया और अगली बार 1986 में। 1990 से सचिन तेंदुलकर का उभरना भी दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा का कारण बना, जहां सचिन बनाम शेन वॉर्न की मैदानी जंग को कौन भूल सकता है। तेंदुलकर के नेतृत्व में भारतीय टीम ने 1996-97 और 1997-98 में अकेले दम पर टेस्ट सीरीज जीती।
1997-98 में चेन्नई टेस्ट में उनके दूसरी पारी के शतक ने भारत की झोली में हारा हुआ मैच डाल दिया। मार्क टेलर ने इस हार के बाद कहा था कि हम किसी टीम से नहीं एक इंसान सचिन से हार गए। इसके बाद सौरव गांगुली के नेतृत्व में भारतीय टीम ने नए आयाम खड़े किए। 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने घर में 2-1 से टेस्ट सीरीज जीतना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सही मायनों में 2001 की जीत ने भारत के बारे में दुनिया के विचार बदलकर रख दिए। 2001 टेस्ट सीरीज हारने के बाद रिकी पोंटिंग ने कहा कि वह सीरीज मेरे जीवन की सबसे यादगार सीरीज रही। हम सीरीज हारे जरूर लेकिन क्रिकेट का स्तर शानदार था। 2004 में पोंटिंग की टीम ने बदला लिया और 25 साल बाद यहां टेस्ट सीरीज जीती। इस सीरीज में माइकल क्लार्क ने पदार्पण किया और बेंगलुरु में शानदार शतक जड़ा।
रन, विकेट और स्लेजिंग: भारत और ऑस्ट्रेलिया जब भी आपस में भिड़े हैं तो रनों और विकेट का अंबार लगने के साथ जमकर स्लेजिंग भी हुई। दोनों देशों के बीच बढ़ती इस प्रतिस्पर्धा में हर बार सीरीज में कोई ऐसा नाम आया जिसने दमदार प्रदर्शन किया। जो भारत की जीत में अकेला योद्धा बना या किसी ने मैच जिताने वाला स्पेल डाला। ऐसे ही खिलाडि़यों पर नजर डालते हैं, जिन्होंने ऑस्ट्रेलियाई टीम को अकेले कड़ी चुनौती दी।
रवि शास्त्री : भारत को 1985 बेंसन एंड हेजेस विश्व सीरीज का खिताब दिलाने में टीम इंडिया के वर्तमान मुख्य कोच रवि शास्त्री ने अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने उस सीरीज में 182 रन और आठ विकेट लिए। पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में नाबाद 63 रन बनाने से पहले शास्त्री ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ग्रुप मुकाबले में 51 रनों की अहम पारी खेली थी। भारत को चैंपियन बनाने वाले शास्त्री को मैन ऑफ द सीरीज के साथ ही ऑडी-100 सिडान कार मिली थी।
सचिन तेंदुलकर : भारत के 1991-92 ऑस्ट्रेलिया दौरे पर सभी की निगाहें सचिन तेंदुलकर पर थीं पहले दो टेस्ट हारने के बाद भारतीय टीम तीसरा टेस्ट ड्रॉ कराने में कामयाब रही थी जिसमें शास्त्री के शानदार दोहरे शतक के अलावा सचिन की 148 रनों की बेहतरीन पारी भी शामिल थी, लेकिन पांचवें टेस्ट में सचिन ने शतक लगाकर अपने पहले ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर छाप छोड़ी। एक छोर से गिरते विकेटों के बीच सचिन ने ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजी आक्रमण मर्व हयूज, क्रेग मैकडरमोर्ट और पॉल रिफिल का सामना किया और 114 रन बनाए।
युवराज सिंह : अंडर-19 विश्व कप में शानदार प्रदर्शन करने के बाद युवराज सिंह को वर्ष 2000 में आइसीसी नॉकआउट कप के लिए भारतीय टीम में जगह मिली। अपने करियर के मात्र दूसरे वनडे और क्वार्टर फाइनल जैसे अहम मुकाबले में युवराज ने ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजी आक्रमण ग्लेन मैक्ग्रा, ब्रेट ली और जैसन गिलेस्पी का डटकर सामना किया और 80 गेंद में 84 रन बनाकर टीम इंडिया को 265 रनों तक पहुंचाया। इस पारी के बाद युवराज ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
वीवीएस लक्ष्मण : जब भी 2001 के कोलकाता टेस्ट के बारे में पूछा जाता है तो सौरव गांगुली कहते हैं कि यह भगवान का टेस्ट मैच था। मैच पर नजर डालें तो वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ ने कुछ ऐसी ही पारियां खेली थी। पहली पारी में 171 रन पर ढेर होने के बाद भारतीय टीम को फॉलोऑन खेलने के लिए मजबूर होना पड़ा। भारतीय टीम की दूसरी पारी में भी हालत खराब थी, लेकिन लक्ष्मण और द्रविड़ ने चौथे दिन एक भी विकेट नहीं गिरने दिया और 376 रनों की साझेदारी कर दी, जिससे भारत ने कंगारुओं को 384 रनों का लय दिया। लक्ष्मण ने 281 और द्रविड़ ने 180 रनों की पारी खेली।
हरभजन सिंह : ऑस्ट्रेलिया 2001 में भारत का दौरा करने पहुंची तो चोट के कारण अनिल कुंबले सीरीज से बाहर हो गए। इसके बाद हरभजन सिंह ने भारतीय स्पिन विभाग की कमान संभाली। भज्जी ने मौका को भुनाते हुए कोलकाता टेस्ट में एक हैट्रिक समेत 13 विकेट निकालकर भारत को जीत दिला दी। उन्होंने पूरी सीरीज में 32 विकेट लिए। फाइनल टेस्ट में उन्हें मैन ऑफ द मैच, वहीं पूरी सीरीज में दमदार प्रदर्शन करने के लिए उन्हें मैन ऑफ द सीरीज का पुरस्कार भी मिला।