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Birthday Special: यहां पढ़िए, आखिर इतनी शायरी कैसे कर लेते हैं 'नवजोत सिंह सिद्धू'

नवजोत सिंह सिद्धू का जन्म 20 अक्टूबर 1963 को पंजाब के पटिलाया जिले में हुआ।

By Lakshya SharmaEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 10:52 AM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 10:57 AM (IST)
Birthday Special: यहां पढ़िए, आखिर इतनी शायरी कैसे कर लेते हैं 'नवजोत सिंह सिद्धू'
Birthday Special: यहां पढ़िए, आखिर इतनी शायरी कैसे कर लेते हैं 'नवजोत सिंह सिद्धू'

नई दिल्ली, जेएनएन।  नवजोत सिंह सिद्धू, ये नाम सुनकर आपको जेहन में सबसे पहले क्या आता है, क्रिकेटर, राजनेता या हर छोटी बड़ी बात पर शायरी सुनाने वाला इंसान। अब अगर उनके फेमस होने का कारण जाने तो शायद पहले क्रिकेट और अब शायरी। हालांकि राजनीति की पिच पर भी वह कामयाब ही है और इस समय पंजाब सरकार में मंत्री के पद पर भी काबिज है। आज यानी 20 अक्टूबर को सिद्धू का 55वां जन्मदिन है। 

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नवजोत सिंह सिद्धू का जन्म 20 अक्टूबर 1963 को पंजाब के पटिलाया जिले में हुआ। उनके पित भी एक क्रिकेटर थे और वह सिद्धू को भी एक सफल क्रिकेटर बनाना चाहते थे। सिद्धू ने पटियाला में ही अपनी शिक्षा पूरी की। आपको बता दें कि क्रिकेट के साथ सिद्धू पंजाब यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई कर चुके हैं।

सिद्धू भारत के सफल क्रिकेटर्स में से एक है। साल 1983 से लेकर 1999 तक उन्होंने क्रिकेट के मैदान में खूब नाम कमाया। इस क्रिकेटर ने अपने करियर का आगाज साल 1983 में किया लेकिन उनके करियर की शुरुआत काफी खराब रही। अपने पहले दो टेस्ट मैच में वह फेल रहे और उसके बाद उन्हें टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। 

जब एक अखबार के आर्टिकल ने बदली सिद्धू की जिंदगी

एक इंटरवियू में सिद्धू ने बताया था कि अपने करियर के शुरुआती दिनों में जब वह फ्लॉप हुआ तो उनकी हर तरफ आलोचना हो रही थी। उस वक्त इंडियन एक्सप्रेस के मशहूर पत्रकार राजन बाला ने उन पर एक आर्टिकल लिखा, जिसका शीर्षक दिया उन्होंने सिद्धू, द स्ट्रोकलेस वंडर। सिद्धू ने बताया कि वह हवाई जहाज में बैठे थे और किसी साथी ने उन्हें यह आर्टिकल दिखाया। 

सिद्धू ने जैसे ही वह दिखा उन्हें काफी दुख हुआ। उस आर्टिकल की वजह से उनके पिता की आंखों में आंसू थे, सिद्धू ने बताया उस दिन से पहले मैंने अपने पिता को कभी रोता हुआ नहीं देखा था। अब इसके बाद यहां से सिद्धू की जिंदगी बदल गई, वह लापरवाह लड़का अचानक क्रिकेट के प्रति दीवाना हो गया। इसके बाद उन्होंने दिन रात मेहनत की और दोबारा टीम इंडिया में जगह बनाई। 

सिद्धू की वापसी भी बड़ी धमाकेदार हुई, साल 1987 के वर्ल्डकप में उन्होंने 7 मैच की 5 पारियों में 4 अर्धशतक ठोक दिए। इस दौरान उन्होंने सबसे ज्यादा 276 रन बनाए। इस टूर्नामेंट में इस बल्लेबाज के बल्ले से 10 छक्के लगे। वर्ल्डकप के बाद उसी पत्रकार यानी बाला साहेब ने एक बार फिर सिद्धू पर आर्टिकल लिखा, जिसका शीर्षक उन्होंने दिया ‘सिद्धू, फ्रोम स्ट्रोकलेस वंडर टू ए पामग्रोव हिटर’

सिद्धू ने 51 टेस्ट में 42 से ज्यादा की औसत से 3202 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने 9 शतक भी लगाए। वनडे में भी उनका प्रदर्शन शानदार रहा। 136 वनडे में उन्होंने करीब 37 की औसत से 4413 रन बनाए। वनडे में भी उन्होंने 6 शतक जमाए थे।

मोहम्मद अजहरुदीन से नाराज होकर बीच में छोड़ आए दौरा

वैसे तो सिद्धू उस समय एक समझदार क्रिकेटर माने जाते थे लेकिन साल 1996 में वह मोहम्मद अजहरुदीन से नाराज होकर दौरा बीच में छोड़ आए। सुनील गावस्कर ने इस बात का जिक्र एक बार किया था, उन्होंने बताया कि सभी ने नवजोत से पूछा कि क्या हुआ लेकिन उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया। यहां तक की उन्होंने जांच समिति के सामने भी कुछ नहीं कहा। उस जांच कमेटी में मोहिंदर अमरनाथ भी थे, उन्हें सिर्फ इसलिए शामिल किया गया था क्योंकि वह भी पंजाबी ही थे।

इसके बाद लंच टाइम में अचानक अमरनाथ हंसते हुए बाहर निकले और सभी से कहने लगे कि मामला खत्म हो गया है। दरअसल बाद में पता चला कि मोहम्मद अजहरुद्दीन हैदराबादी भाषा में कुछ बोलते थे जो पंजाबी भाषा में गाली थी। लेकिन हैदराबादी भाषा में वह गाली नहीं होती थी।

बिना शायरी बात क्यों नहीं करते सिद्धू?

साल 1999 में सिद्धू का करियर खत्म हो गया और इसके बाद साल 2001 में उन्हें बतौर कमेंटेटर अपना करियर शुरू किया। कमेंटरी के दौरान सिद्धू काफी मशहूर हो गए, उनके वन लाइनर की तारीफ होने लगी। लगातार बोलते रहना और शायरी से हर बात को बताना सिद्धू का स्टाइल बन गया। सुनील गावस्कर बताते हैं कि खेलने के दौरान सिद्धू बिल्कुल चुपचाप रहते थे, यहां तक की मैन ऑफ द मैच बनने के बाद भी वह काफी डरते थे कि वहां क्या बोलना है। 

दरअसल ये भी माना जाता है कि करियर के अंतिम पड़ाव में उन्होंने स्वामी विवेकानंद की किताब पढ़ना शुरू कर दिया, इसके बाद तो उनकी जिंदगी ही बदल गई। अब ज्यादा बोलना और शायरी ही उनकीं पहचान बन चुकी है। 

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