सकारात्मक सोच की मिसाल है ये भारतीय खिलाड़ी
उठो जागो और जब तक ध्येय की प्राप्ति न हो प्रयत्न करते रहो..। सफलता की कुंजी कहे जाने वाले इस मंत्र का यदि भारतीय क्रिकेट टीम में सबसे अधिक किसी ने पालन किया तो वह हैं अमित मिश्रा। 2010 में टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने वाले मिश्रा को अपना दूसरा टी-20 मैच खेलने के लिए चार साल के लंब
रूपेश रंजन सिंह, नई दिल्ली। उठो जागो और जब तक ध्येय की प्राप्ति न हो प्रयत्न करते रहो..। सफलता की कुंजी कहे जाने वाले इस मंत्र का यदि भारतीय क्रिकेट टीम में सबसे अधिक किसी ने पालन किया तो वह हैं अमित मिश्रा। 2010 में टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने वाले मिश्रा को अपना दूसरा टी-20 मैच खेलने के लिए चार साल के लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा।
ऐसा नहीं है कि इस बीच उनकी फॉर्म गड़बड़ा गयी। उन्होंने घरेलू सर्किट में लगातार अपनी काबिलियत साबित की। इंडियन प्रीमियर लीग के 2010 और 2011 के संस्करणों में वह सर्वाधिक विकेट लेने वाले शीर्ष पांच गेंदबाजों की सूची में रहे। आइपीएल में कुल विकेट लेने के मामले में उनसे आगे सिर्फ लसिथ मलिंगा का नाम है, जिन्होंने 73 मैच में 103 विकेट लिए हैं और मिश्रा ने 76 मैच में 95 विकेट अपने नाम किए हैं।
31 वर्षीय मिश्रा का घरेलू क्रिकेट का या 13वां सत्र चल रहा है। प्रथम श्रेणी में खेले अभी तक 127 मैचों में उन्होंने 457 विकेट लिए हैं, जबकि कुल खेले 120 टी-20 मैच में 18.81 की औसत से 154 विकेट ले चुके हैं। ये आंकड़े यहां यह बताने के लिए दिए गए हैं कि टी-20 विश्व कप में मिश्रा ने पाकिस्तान के खिलाफ जो पहला मैच खेला था वह उनके करियर का केवल दूसरा टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच था।
घरेलू सर्किट में जोरदार प्रदर्शन के बावजूद उन्हें मौका नहीं मिल रहा था, इसकी मुख्य वजह धौनी की पसंद थी। धौनी ने अपने टीम संयोजन में अश्विन और जडेजा को हमेशा ही मिश्रा पर वरीयता दी। यहां तक कि पीयूष चावला को भी धौनी ने मिश्रा से ज्यादा मौके दिए। आम गेंदबाज का ऐसे हालात में मनोबल टूट सकता था, लेकिन कहते हैं कि यदि सफल होना तो हर हालात में आपको अपनी सोच को सकारात्मक रखना चाहिए और मिश्रा ने भी यही किया। उन्होंने सकारात्मक सोच को बनाए रखा। पिछले साल जिंबाब्वे के दौरे पर उन्हें राष्ट्रीय टीम में मौका मिला और उन्होंने पांच वनडे मैचों की सीरीज में 18 विकेट लेकर रिकॉर्ड की बराबरी की। इसके बावजूद उन्हें अपना अगला वनडे मैच खेलने के लिए तीन महीने का इंतजार करना पड़ा, जिसके बाद उन्हें फिर सें बेंच पर बिठा दिया गया।
2003 में ढाका में वनडे में पदार्पण करने वाले मिश्रा को इसी ढाका में 2014 में दोबारा जिंदगी मिली, जब टीम इंडिया के कार्यवाहक कप्तान विराट कोहली ने एशिया कप में उन्हें पाकिस्तान के खिलाफ मैच में मौका दिया। करीब पांच महीने बाद अंतरराष्ट्रीय मैच खेल रहे मिश्रा ने एक बार फिर खुद को साबित किया। दस ओवर में 28 रन देकर दो विकेट लिए।
इस प्रदर्शन के बूते उन्होंने टी-20 विश्व कप की अंतिम एकादश में भी जगह बनाई। मिश्रा ने बड़े प्लेटफॉर्म पर मिले मौकों को इस बार भी जाया नहीं जाने दिया और जोरदार प्रदर्शन करते हुए भारत की सफलता में अहम किरदार निभाया। हालात पहली बार मिश्रा के पक्ष में दिखे। लोगों की जुबान पर उनका नाम बार-बार दोहराया गया। अब मिश्रा और उनके प्रशंसकों को यही उम्मीद होगी कि लंबे समय से अंदर-बाहर हो रहे दायें हाथ के इस लेग स्पिनर की जगह टीम इंडिया में सुनिश्चित हो जाएगी।