टी-20 कप्तानों को हार से घबराना नहीं चाहिए
आइपीएल में कप्तानी कमजोर दिल वालों के वश की बात नहीं है। यहां धुरंधर से धुरंधर खिलाडि़यों के होते हुए भी टीम हार जाती है। शतक लगाकर और विपक्षी टीम के पांच विकेट 50 रन पर गिराकर भी हार झेलनी पड़ जाती है। कुछ कप्तान इसे गलत तरीके से लेते
(रवि शास्त्री का कॉलम)
आइपीएल में कप्तानी कमजोर दिल वालों के वश की बात नहीं है। यहां धुरंधर से धुरंधर खिलाडि़यों के होते हुए भी टीम हार जाती है। शतक लगाकर और विपक्षी टीम के पांच विकेट 50 रन पर गिराकर भी हार झेलनी पड़ जाती है। कुछ कप्तान इसे गलत तरीके से लेते हैं। वो बेवजह खुद के प्रति या साथियों के प्रति कठोर बन जाते हैं। टी-20 कप्तान को हार से ज्यादा घबराना नहीं चाहिए। गंभीर का गुस्सा कभी-कभी जाहिर हो जाता है। जल्द आउट होने पर वार्नर भी हथियार डाल देते हैं। असामान्य तौर पर धौनी भी इस बार फीके दिख रहे हैं। विरोधी खिलाडि़यों के शॉट्स को कोहली आंखे तरेर कर देखते हैं। मिलर काफी खुश होंगे कि उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है।
तीन चीजें कप्तान को बेहतर बनाती हैं। पहला, विषम परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखना। दूसरा, खिलाडि़यों पर विश्वास और तीसरा, मुश्किल समय में खिलाडि़यों के अंदर जोश भरना। उदाहरण के तौर पर कृणाल पांड्या को प्रमोट करके बल्लेबाजी के लिए ऊपर भेजना कप्तान का मास्टर स्ट्रोक फैसला साबित हुआ।
इस सत्र में सुरेश रैना की कप्तानी से मैं काफी प्रभावित हूं। नए रोल में वह काफी उत्साहित दिखे। गंभीर अपने स्पिनरों पर काफी विश्वास करते हैं यही वजह है कि वह स्लिप और शॉर्ट लेग पर फील्डर खड़ा करते हैं। जहीर खान भी अपने अनुभवहीन खिलाडि़यों के साथ तालमेल बैठाने में सफल रहे हैं।
कानपुर में गुरुवार को गुजरात लायंस और कोलकाता नाइटराइडर्स के बीच होने वाले मैच में रैना और गंभीर की कप्तानी पर नजर रहेगी। दोनों बायें हाथ के खिलाड़ी जीत के साथ प्लेऑफ में जाना चाहेंगे। आंद्रे रसेल की कमी को भुलाकर गंभीर की टीम मैदान पर उतरेगी। जबकि टीम में वापसी कर रहे रैना बेंगलूर के खिलाफ पिछले मैच में मिली करारी शिकस्त से उबरकर टीम को एकजुट करना चाहेंगे। पिच से अनजान दोनों कप्तान टॉस जीतकर फील्डिंग करना पसंद करेंगे।
(टीसीएम)